अब पूरे साल होगा मोदी-मोदी
17-Feb-2016 06:26 AM 1234832

देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कम होते क्रेज को देखते हुए भाजपा और संघ का थिंक टैंक एक रणनीति तैयार कर रहा है। इसके तहत विदेशी भूमि पर जिस तरह मोदी की यात्राओं को इवेंट बनाया जाता है उसी तरह देश में भी कार्य किया जाएगा। ताकि कुछ प्रमुख मौकों पर ही नहीं बल्कि पूरे साल मोदी-मोदी की गूंज सुनाई दे। दरअसल, भाजपा संगठन और संघ का मानना है कि बिहार चुनाव में भाजपा को मिली हार के बाद से देश में मोदी का ग्राफ गिरता जा रहा है। ऐसे में आने वाला समय भाजपा के लिए कठिन हो सकता है। इसलिए रणनीतिकार चाहते हैं कि अमेरिका के न्यूयार्क शहर के  मैडिसन स्क्वॉयर पर मोदी के लिए जैसा क्रेज लोगों में दिखा वैसा ही नजारा भारत में भी दिखे।
ये सब मुमकिन होता रहा विदेशों में मौजूद भाजपा पार्टी के एक पदाधिकारी बताते हैं कि मोदी की विदेश यात्राओं को बड़े इवेंट में तब्दील करने की जिम्मेदारी इन्हीं समर्थकों पर होती है। लेकिन ये हरकत में तभी आते जब मोदी का विदेश दौरा होता। बाकी समय ये अपने अपने काम में लग जाते लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। विदेशों में भाजपा के समर्थकों को ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी के नाम से जाना जाता है। जब भी प्रधानमंत्री का दौरा होना होता है भाजपा के समर्थक काफी पहले से तैयारी शुरू कर देते हैं, लेकिन दौरा खत्म होते ही उनकी सक्रियता शून्य हो जाती है। प्रवासी भारतीय समर्थकों को एक्टिव रखने के लिए भाजपा नई रणनीति तैयार कर रही है। असल में, ऐसी संभावना है कि 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश दौरों की संख्या काफी कम रहने वाली है। प्रधानमंत्री द्वारा इस साल सिर्फ जरूरी विदेश यात्राएं किए जाने की संभावना है। ऐसी स्थिति में भाजपा चाहती है कि विदेशों में मोदी के कार्यक्रम की देखरेख से जुड़ी टीम प्रवासी भारतीय भाजपा समर्थकों को ज्यादा सक्रिय और संगठित करने पर फोकस करे। ये टीम अब विदेशों में सत्ता के गलियारों में भारत का दबदबा बढ़ाने के लिए अपनी गतिविधियां बढ़ाएगी।
अब तक प्रवासी भारतीय समुदाय राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के वक्त ही सक्रिय देखा जाता रहा है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इसमें काफी तेजी आई। विदेशों में जहां जहां भी प्रवासी भारतीयों की जमात है वहां होने पर मोदी उनसे अलग से जरूर मिलते और हर बार मुलाकात को बड़े इवेंट में तब्दील करने की कोशिश होती। इस तरह मैडिसन स्क्वॉयर ही नहीं बल्कि चीन से लेकर संयुक्त अरब अमीरात तक जहां भी प्रधानमंत्री पहुंचे-मोदी-मोदी के नारे गूंजे। अब अगर प्रधानमंत्री अपने विदेश दौरों में कटौती करते हैं तो न तो ऐसे इवेंट होंगे न मोदी-मोदी के नारों की कोई गुंजाइश बचेगी। इसलिए भाजपा अब इस लाइन पर काम कर रही है कि प्रधानमंत्री का दौरा न होने की स्थिति में भी भाजपा समर्थकों में मोदी-मोदी जैसा जोश बरकरार रहे।
संघ के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि मोदी के विदेश दौरों को सफलतापूर्वक अंजाम देनेवाली टीम अब प्रवासी भारतीय भाजपा समर्थकों के बीच ऐसे काम करेगी कि वो उन देशों में किसी प्रेशर ग्रुप की तरह काम करे। ये प्रेशर ग्रुप वहां के असरदार पेशेवरों, सक्रिय संस्थाओं, राजनीतिक पार्टियों और सरकारों में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश करेगा। प्रवासी भारतीय समुदाय के ये लोग उन देशों के लोगों और सरकारों को अपनी एक्टिविटी से भारत की ताकत जताने की कोशिश करेंगे। इनका फोकस अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात जैसे मुल्कों में होगा। इस भाजपा ऐसा इंतजाम चाह रही है कि बस मौके पर ही नहीं, बल्कि मोदी का विदेश दौरा न होने की स्थिति में भी पूरे साल मोदी-मोदी का नारा गूंजता रहे। दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों तथा विभिन्न उपचुनावों के परिणामों से भी यह बात सिद्ध होती है कि भाजपा की हार का कारण पार्टी की ओर से सिर्फ रणनीतिक खामी नहीं थी बल्कि जनता की केंद्र सरकार से बढ़ रही नाराजगी से भी पार्टी को नुकसान हुआ। प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि उनकी सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2015 में कोयला, बिजली, यूरिया फर्टिलाइजर और मोटर वाहन का सबसे ज्यादा उत्पादन हुआ है। यही नहीं वर्ष 2015 में गांवों में गरीबों को सबसे ज्यादा कुकिंग गैस कनेक्शन दिये गये, प्रतिदिन के हिसाब से राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने का औसत बढ़कर 30 किमी हो गया, मंदी के दौर में भी देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 39 प्रतिशत बढ़ गया। डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया-स्टैण्डअप इंडिया जैसी रोजगारपरक पहलें की गयीं। यकीनन यह सभी पहलें सराहनीय हैं लेकिन आम आदमी को तत्काल अपनी झोली में कुछ नजर नहीं आ रहा है। यही नहीं स्टार्टअप इंडिया जैसी पहलों से बड़े शहरों के युवा तो खुश हैं लेकिन किसान को अभी तक अपने लिए भी स्टार्टअप या स्टैण्डअप जैसी सरकारी पहलों का इंतजार है।
मंत्रियों के भरोशे नहीं पीएम
चमकते भारत और अच्छे दिनों का जो ख्वाब लोकसभा चुनावों में दिखाया गया था वह अभी आम जनता के लिए दूर की कौड़ी बना हुआ है। प्रधानमंत्री मंत्रियों के भरोसे ही सब कुछ नहीं छोड़ देना चाहते इसलिए हाल ही में उन्होंने सभी विभागों के सचिवों की बैठक बुलाई जिसमें मंत्रिमंडल के कुछ वरिष्ठ सदस्य ही मौजूद थे। देर रात तक चली इस बैठक में प्रधानमंत्री ने शासन के विभिन्न क्षेत्रों में बदलाव करने के लिए सचिवों को सुझाव एवं विचार पेश करने को कहा और सचिवों के आठ समूहों का गठन किया। बैठक में सचिवों ने अपने मंत्रालय के कामकाज के बारे में प्रस्तुतिकरण के बारे में सवाल पूछे तथा कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए। प्रधानमंत्री ने बैठक में सचिवों को निर्देश दिये कि अयोग्य अधिकारियों या शिकायतों पर कार्रवाई नहीं करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। मंत्रिमंडल बैठक में मंत्रियों द्वारा अपने कामकाज की प्रेजेन्टेशन से प्रधानमंत्री का संतुष्ट नहीं होना दर्शाता है कि प्रधानमंत्री निचले स्तर तक महसूस की जा रही उन भावनाओं को समझ रहे हैं कि आम आदमी राजग सरकार से धीरे धीरे निराश हो रहा है।
अपनी सरकार के प्रदर्शन से प्रधानमंत्री भी चिंतित

अब तक काफी आशान्वित नजर आते रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के माथे पर भी अब चिंता की लकीरें साफ नजर आने लगी हैं। सरकार की ओर से उठाए जा रहे कदमों और बनायी जा रही योजनाओं से भले वह खुश हों लेकिन उन पर अमल की गति और सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार की खराब स्थिति प्रधानमंत्री की चिंता का प्रमुख कारण है। प्रधानमंत्री को यह नजर आ रहा है कि देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार लाने के प्रयास रंग लाते नहीं दिख रहे हैं जोकि आने वाले चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सहित राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए नुकसानदायी सिद्ध हो सकता है। प्रधानमंत्री ने मंत्रिमंडल की हालिया बैठक में इन चिंताओं को मंत्रियों के समक्ष रखते हुए अपनी अपेक्षाओं को भी दोहराया और अब हर महीने के अंतिम बुधवार को मंत्रियों के साथ कामकाज की समीक्षा बैठक होना तय कर दिया है। प्रधानमंत्री सिर्फ मंत्रियों के भरोसे ही सब कुछ नहीं छोड़ देना चाहते इसलिए लगातार सभी मंत्रालयों के सचिवों से भी संपर्क बनाए रहते हैं और उनके साथ बैठकें भी करते हैं।


मंत्रिमंडल बैठक में मंत्रियों द्वारा अपने कामकाज की प्रेजेन्टेशन से प्रधानमंत्री का संतुष्ट नहीं होना दर्शाता है कि प्रधानमंत्री निचले स्तर तक महसूस की जा रही उन भावनाओं को समझ रहे हैं कि आम आदमी राजग सरकार से धीरे धीरे निराश हो रहा है। दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों तथा विभिन्न उपचुनावों के परिणामों से भी यह बात सिद्ध होती है कि भाजपा की हार का कारण पार्टी की ओर से सिर्फ रणनीतिक खामी नहीं थी बल्कि जनता की केंद्र सरकार से बढ़ रही नाराजगी से भी पार्टी को नुकसान हुआ
बजट सत्र को लेकर चिंता
संसद का बजट सत्र निकट है। इसको लेकर सरकार चिंतित है। यदि सरकार जीएसटी सहित अन्य महत्वपूर्ण विधेयकों पर आगे नहीं बढ़ पाई तो इसे सरकार की राजनीतिक नाकामी के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि जनता यह भले जानती है कि राज्यसभा में राजग के पास बहुमत नहीं है लेकिन उसने जो भाजपा को पूर्ण बहुमत दिया था उसका सही राजनीतिक उपयोग अभी तक नहीं हो पाया है। सरकार से अपेक्षा है कि वह विपक्ष से मेलजोल बढ़ाकर विधेयकों की राह में आ रही अड़चनों को दूर करे। कुछ समय पहले खबरें थीं कि प्रधानमंत्री वित्त मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और रेलवे मंत्रालय के कामकाज से नाखुश हैं और इन विभागों के मंत्रियों को बदला जा सकता है लेकिन अभी बजट सत्र के निकट आने को देखते हुए ऐसे किसी फेरबदल की संभावना कम ही है।
-राजेंद्र आगाल

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