02-Feb-2016 07:53 AM
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मोदी सरकार ने पहले फेज में 20 स्मार्ट सिटी के नाम की घोषणा की है। इनमें पहले स्थान पर भुवनेश्वर, दूसरे पर पुणे, तीसरे पर जयपुर, चौथे पर सूरत, पांचवे पर कोच्चि, छठे पर अहमदाबाद, सातवे पर जबलपुर, आठवे पर

विशाखापट्नम, नौवें पर सोलापुर, दसवें पर दावणगेरे, ग्यारहवे पर इंदौर, बारहवे पर नई दिल्ली, तेेरहवे कोयंबटूर, चौदहवे पर काकीनाडा, पंद्रहवे पर बेलगाम, सोलहवे पर उदयपुर, सत्रहवे पर गुवाहाटी, अठारहवे पर चेन्नई, उन्नीसवे पर लुधियाना और बीसवे पर भोपाल का नाम शामिल है। अगले दो चरणों में 40-40 शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जाएगा। मध्य प्रदेश के लिए यह गौरव की बात है कि इस सूची में उसके सर्वाधिक शहरों का चयन हुआ है जिसमें राजधानी भोपाल, संस्कारधानी जबलपुर और व्यावसायिक राजधानी इंदौर शामिल है। इसके पीछे इन शहरों की अफसरशाही की स्मार्टनेस है।
अगर मध्यप्रदेश के संदर्भ में देखें तो हम पाते हैं कि केंद्र सरकार ने जिन तीन शहरों को स्मार्टसिटी बनाने के लिए चुना है उनमें से दो जगह पर डिप्टी कलेक्टर काडर के अफसर निगमायुक्त हैं पर उनकी स्मार्टनेस आरआर अफसरों से कहीं ज्यादा है। इंदौर निगमायुक्त मनीष सिंह को तो लंबा अनुभव हो गया है। उसी का लाभ लेते हुए उन्हें भोपाल के बाद इंदौर में निगमायुक्त बनाया है। इंदौर को तो स्मार्टसिटी बनना ही था परंतु मनीष सिंह की स्मार्टनेश के कारण उन 20 शहरों में इंदौर बारहवें नंबर पर रहा है। उन्होंने जो प्रोजेक्ट तैयार किया था उसे चयन समिति ने सिलेक्ट कर इंदौर को भी स्मार्ट शहर घोषित कर दिया। सातवें नंबर पर आए जबलपुर के नगर निगम आयुक्त वेदप्रकाश शर्मा भी डिप्टी कलेक्टर कैडर के अधिकारी हैं उन्हें भी ग्वालियर निगमायुक्त के बाद संसकार धानी जबलपुर का निगमायुक्त बनाया है। वेदप्रकाश ने ग्वालियर में रहते हुए एक विशाल कार्निवाल कराया था। उसमें विशाल सांस्कृतिक कार्यक्रम में कराकर काफी प्रसिद्ध हासिल की थी। जिसका देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रचार हुआ था। वेदप्रकाश हमेशा से कहते हैं कि काम करने का मौका मिले तो किसी भी कैडर का अफसर अच्छा काम करके दिखा सकता है। 11 वें नंबर पर आए इंदौर के नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह ने साबित कर दिया कि केवल आईएएस अधिकारी ही अच्छा प्रोजेक्ट नहीं बना सकते हैं। यानी उनमें भी स्मार्टनेस है। दरअसल डिप्टी कलेक्टर रैंक के इन अफसरों ने अपनी अधिकतर सेवा नगरीय निकायों में दी है। वे जानते हैं कि किसी नगरीय निकाय की आवश्यकताएं क्या-क्या हो सकती है इसलिए इन दोनों अफसरों ने शहर और वहां के रहवासियों की आवश्यकतानुसार प्रोजेक्ट बनाया जो विशेषज्ञों को भाया। इन दोनों अधिकारियों ने उस भ्रम को भी तोड़ दिया जो राजनीतिक वीथिकाओं में अक्सर गूंजता रहता है कि एक आईएएस अधिकारी ही बेहतर कार्ययोजना बना सकता है। अगर भोपाल के संदर्भ में बात करे तो यहां के नगर निगम आयुक्त युवा आईएएस तेजस्वी एस नायक है। नायक को अपनी पदस्थापना के पहले पड़ाव में ही भोपाल जैसे बड़े शहर की जिम्मेदारी मिली है। हालांकि उनका अनुभव थोड़ा खट्टा रहा है प्रशासनिक अफसर तो वह सख्त हैं परंतु नगर निगम जैसी संस्थाओं में तो झुकने और झुकाने वाला अफसर चाहिए। ईमानदारी का बीड़ा उठाकर इन निगमों में काम करना आसान नहीं है। इसीलिए तेजस्वी नायक को राजनीतिक वीथिकाओं में फ्लाप माना जा रहा है। क्या वह भोपाल के चारों विधायक अब नायक को हटाने की बात करेंगे या स्मार्टसिटी बनाने की। नायक ने अपने प्रशासनिक अनुभव का लाभ उठाते हुए ईमानदारी से वहीं निगम अफसरों के साथ स्मार्टसिटी की लॉटरी भोपाल की झोली में डलवा दी। भले ही वह आखिरी नंबर पर आया पर आया तो सही। इन तीनों अधिकारियों की सफलता ने सरकार को एक संदेश यह भी दिया है कि आईएएस बनने के बाद असिस्टेंट कलेक्टर और एसडीएम के बीच में उनकी सेवाएं नगरीय निकायों में ली जाएं तो उसके लिए कलेक्टरी या अन्य बड़े पदों पर काम करने में सहूलियतें मिल सकती हैं। कहा यह जाता है कि बार-बार नगर निगमों में भेजने के लिए उन्हीं अफसरों का नाम लिया जाता है जिन्हें उनका अनुभव हो। ऐसे में भला नई टीम कैसे तैयार होगी। ग्रामीण, नगरीय का अनुभव युवा अफसरों के लिए बहुत आवश्यक है। कलेक्टरी के पहले अगर उन्हें किसी निकाय में काम करने का अवसर दिया जाए तो बात में उसे मंत्रालय में इसी विभाग में कार्य करने में आसानी होगी। वैसे तो इन तीनों शहरों को स्मार्टसिटी के लिए चयनित होने के पीछे नगरीय प्रशासन विभाग और शहरी विकास प्राधिकरण के अधिकारियों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। विभाग के प्रमुख सचिव मलय श्रीवास्तव ने इसमें महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन इस सफलता के पीछे केवल स्वयं को श्रेय देने की जगह वे कहते हैं कि इसके पीछे पुरानी टीम की मेहनत भी है। वह कहते हैं कि पूर्व प्रमुुख सचिव एसएन मिश्रा और आयुक्त संजय शुक्ला के गाइडेंस पर ही आज की टीम ने काम किया है। साथ में जेएनएनयूआरएम का भी बड़ा रोल है। सौभाग्य से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस विभाग के मंत्री हैं। मप्र के अफसरों की परफारमेंस इतनी बेहतर रही कि कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा और शहरी विकास सचिव मधुसूदन मिश्रा ने मुख्य सचिव एंटोनी डिसा से बातचीत के दौरान अफसरों की पीठ थपथपाई। तीनों शहरों के अफसरों की मेहनत से उनके शहर को स्मार्टसिटी में शामिल तो कर लिया गया है अब इनके सामने इस सपने को साकार करने की चुनौती है। इसको लेकर तीनों शहरों के अफसरों ने कार्ययोजना बनानी शुरू कर दी है। प्रदेश के तीन शहरों को स्मार्ट सिटी घोषित करने के कारण केन्द्र सरकार द्वारा जल्द ही 300 सौ करोड़ रुपए की राशि जारी की जाएगी। बाकी 300 सौ करोड़ राज्य सरकार लगाएगी। केन्द्र सरकार वर्ष 2014-15 और 2015-16 की राशि एक साथ देगी। संभावना है कि तीनों स्मार्ट सिटी को मार्च 2016 तक 200-200 करोड़ रुपए की राशि भारत सरकार से मिल जाएगी। इससे तत्काल कार्य शुरू हो जाएगा।
भोपाल को स्मार्टसिटी की पहली सूची में शामिल किए जाने पर महापौर आलोक शर्मा ने कहा है कि जनता, जनप्रतिधियों और अधिकारियों की सकारात्मक सोच के चलते हमें यह उपलब्धि मिली है। इसमें सबसे ज्यादा योगदान जनता का है। हम आगे भी बेहतर प्लानिंग और सकारात्मक सोच के साथ काम करेंगे, ताकि इसका पूरा लाभ आम जनता तक पहुंचे। स्मार्ट सिटी तुलसी नगर व शिवाजी नगर की 333 एकड़ जमीन पर पर विकसित होगी। इसकी लागत 3 हजार 440 करोड़ रुपए आएगी। इंदौर में स्मार्टसिटी 742 एकड़ में बनाई जाएगी। इसके लिए 5099 करोड़ रुपए का प्रस्ताव बनाया गया है। स्मार्टसिटी की सूची में शामिल होते ही नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह कार्ययोजना बनाने में जुटे गए हैं। वहीं जबलपुर में स्मार्टसिटी 743 एकड़ में बनेगी। इसके लिए 3998 करोड़ रुपए खर्च का प्रस्ताव बनाया गया है। अब अफसरों का कहना है कि वे इसके लिए तीन महीने में कंपनी बना देंगे और तीन साल में स्मार्टसिटी का स्वरूप धरातल पर नजर आने लगेगा। इसके लिए नगर पालिक अधिनियम, नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम, कॉलोनाइजर एक्ट आदि में संशोधन करना होंगे।
स्मार्ट सिटी का चयन
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, विश्व बैंक विशेषज्ञ, एशियन बैंक विशेषज्ञ और शहरी विकास संस्थान के प्रतिनिधि इन चारों ने मिलकर हर शहर के प्रोजेक्ट को देखकर उसको नंबर दिए। वहीं जिन 21 राज्यों का एक भी शहर शामिल नहीं होने पर उनके लिए 15 अप्रैल तक एक नई विन्डों बनाकर उन्हें अपना खाका तैयार कर देने को कहा है।
तो जबलपुर ने ऐसे पहना स्मार्ट सिटी का ताज
स्मार्टसिटी की सूची में 7वें पायदान पर जगह बनाने वाले जबलपुर नगर निगम के आयुक्त वेदप्रताप और उनकी टीम ने बेहतर ढंग से काम करते हैं अपने प्रजेंटेशन में ऐसी बातों को समाहित किया था जो अन्य शहरों के प्रजेंटेशन में नहीं था। नगर निगम ने लोगों के सुझाव पर जो प्रपोजल तैयार किया, उसमें शहर ताकतों को प्रमुखता से रेखांकित किया गया था। बेरोजगारी का दंश झेल रहे संस्कारधानी से युवाओं का पलायन रोकने के लिए जो उद्यमिता स्थापित करने का लक्ष्य रखा। इसी कवायद ने जबलपुर को स्मार्ट सिटी की रेस में सातवीं रैंक दिला दी। निगम ने कंसल्टेंट से उतनी ही जानकारी ली, जितनी उसे चाहिए होती थी। निगमायुक्त वेदप्रकाश ने स्मार्टसिटी को लेकर एक कोर-ग्रुप बनाया गया था। इसमें निगम के सभी विभाग प्रमुखों और इंजीनियरों को रखा गया। समय-समय पर संभागीय अधिकारियों को भी इस कोर ग्रुप में शामिल किया गया। इस कोर ग्रुप के सदस्य रोज सुबह आठ से दस बजे तक निगमायुक्त कार्यालय में बैठक करते थे। रोज के आयोजनों के साथ सबसे अधिक मशक्कत शहर की ताकत को रेखांकित करने की हुई। प्रोजेक्ट में पैदल चलने के लिए अलग पाथवे, स्पोर्ट्स सेंटर, कल्चर सेंटर के अलावा कई पुरानी धरोहरों को पुनर्जीवित करने का प्रस्ताव दिया गया जो चयन समिति में शामिल विश्व बैंक, एशियन बैंक, जर्मन बैंक, ब्रिटिश कंसल्टेंस आदि को पसंद आया। वेदप्रकाश की मेहनत अंतत: रंग लाई और जबलपुर को स्मार्टसिटी बनाने की सूची में शामिल कर लिया गया। वेदप्रकाश ने जिस तरह स्मार्टसिटी के लिए कार्ययोजना बनाई उससे प्रदेश सरकार को एक संदेश भी गया है कि उसके शहरी विकास प्राधिकरण को वेदप्रकाश जैसे अफसरों की जरूरत है।
उज्जैन, ग्वालियर, सागर और सतना भी बनेंगे स्मार्ट
मध्यप्रदेश सात शहरों को केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी योजना में शामिल कर लिया था। इसमें भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, सतना, सागर और उज्जैन शहर शामिल थे। लेकिन पहली सूची में भोपाल, इंदौर और जबलपुर ही शामिल हो सके। लेकिन ऐसा नहीं कि ग्वालियर, सतना, सागर और उज्जैन का परफारमेंस खराब था। दरअसल सरकार को पहली बार में मात्र 20 शहर को ही स्मार्टसिटी के लिए चुनना था। अगर 25 शहरों का चयन किया जाता तो निश्चित रूप से चारों अन्य शहर भी इसमें शामिल हो सकते थे। लेकिन जिस तरह 21वें और 22वें पायदान पर उज्जैन और ग्वालियर रहे हैं उससे उम्मीद जगी है कि अगली सूची में कम से कम इनका नाम तो शामिल कर ही लिया जाएगा। यही नहीं जिन 21 राज्यों के शहर स्मार्टसिटी की सूची में शामिल नहीं किए गए हैं उन राज्यों से फिर से प्रोजेक्ट रिपोर्ट मांगी गई है और 15 अप्रैल में इन शहरों के संदर्भ में सुनवाई होगी। इसके लिए अलग से एक विंडो खोली गई है।
-कुमार राजेंद्र