एक और तमाशे की तैयारी?
16-Feb-2016 08:20 AM 1234812

संसद का बजट सत्र 23 फरवरी से आरंभ हो रहा है। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी संसद के दोनों सत्रों का संयुक्त अधिवेशन को पहले दिन संबोधित करेंगे। 25 फरवरी को रेल बजट और 29 फरवरी को आम बजट पेश किया जाएगा। इसी के साथ सत्ता पक्ष की ओर से उम्मीद जताई जाएगी कि इस सत्र में रेल बजट-आम बजट पेश होने के साथ ही लंबे समय से अटके विधेयकों को भी संसद की मंजूरी मिल जाए। उसकी ओर से यह अपील भी की जा रही है कि विपक्षी दल जनहित और राष्ट्रहित में जीएसटी और अन्य अनेक विधेयकों को पारित कराने में सहयोग करें। इसके जवाब में विपक्षी दलों की ओर से सरकार को तरह-तरह की नसीहत और हिदायत देने के साथ ही यह कहा जा रहा है कि वह अपना अहंकारी रवैया छोड़े। सत्र के पहले मिले संकेत इस ओर इशारा  कर रहे हैं कि संसद में आगामी दिनों में एक और तमाशा देखने को मिलेगा।
देशवासी भी यह मान कर चल रहे हैं कि संसद के बजट सत्र का भी वही हश्र होगा जो शीतकालीन सत्र और उससे पहले के सत्रों का हुआ। यानी बजट सत्र में जैसे-तैसे बजट भले पास हो जाए क्योंकि वह संवैधानिक आवश्यकता है लेकिन और कुछ नहीं होगा। न जीएसटी सहित अन्य विधेयक पास होंगे और ना ही ज्वलंत राष्ट्रीय मुद्दों पर हमारे सांसद कोई सार्थक बहस कर पाएंगे। बजट सत्र की तारीखों की घोषणा के महज चौबीस घंटे के भीतर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और प्रमुख विपक्षी पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बयान तो कम से कम यही निष्कर्ष निकालने को मजबूर कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने जो कहा उसका मतलब है कि लोकसभा चुनावों की हार से गांधी परिवार तिलमिलाया हुआ है और हार का बदला लेने के लिए संसद नहीं चलने दे रहा। उधर राहुल गांधी ने कहा है कि प्रधानमंत्री 18 माह से बहानेबाजी कर रहे हैं। वे इसे छोड़ काम करके दिखाएं। दोनों के हमले सरकार या कांग्रेस पर नहीं व्यक्तिगत हैं और इसी से लगता है कि संसद इस बार भी नहीं चल पाएगी। राष्ट्रपति उसके दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को सम्बोधन देंगे, सभी मिलकर उसके लिए रस्मी धन्यवाद देंगे, रेल और आम बजट पास करेंगे और फिर दोनों सदन सांसदों की कुश्ती का अखाड़ा बन जाएंगे। बैठकें पूरी होने पर सत्तापक्ष और विपक्ष मिलकर अपने वेतन-भत्ते का मुद्दा उठाएंगे और अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों अथवा पांच राज्य विधानसभा चुनावों की रणभूमि में लौट जाएंगे।
बजट सत्र में जिन मसलों को लेकर संसद बाधित होने की आशंका है, उनमें एक तो हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या है। यह एक ऐसा मसला है, जिस पर संसद में बहस होनी ही चाहिए और इस मकसद से होनी चाहिए कि भविष्य में अन्य कोई रोहित सरीखा सामने न आने पाए, लेकिन इसमें शायद ही किसी की दिलचस्पी हो। रोहित की आत्महत्या की तरह तमिलनाडु की तीन छात्राओं की आत्महत्या का मामला भी गंभीर है, लेकिन उसकी सुध शायद इसलिए न ली जाए, क्योंकि एक तो वे दलित नहीं थीं और दूसरे उनकी आत्महत्या के लिए केंद्र सरकार को निशाने पर नहीं लिया जा सकता। नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया-राहुल एवं अन्य को 20 फरवरी को फिर अदालत में पेश होना है। अगर उन्हें राहत नहीं मिली तो संसद ठप रखने के लिए हर दिन नया बहाना खोजा जा सकता है। आज देश के समक्ष गंभीर चुनौतियां हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से संसद में राजनीतिक दलों का व्यवहार एक बड़ी चुनौती बन गया है। संसद अव्वल तो चलती नहीं है और चलती भी है तो गंभीर मसलों पर बहस के नाम पर या तो गड़े मुर्दे उखाड़े जाते हैं या फिर तू-तू, मैं-मैं होती है। संसदीय प्रणाली अपने मौजूदा स्वरूप में देश के लिए बोझ बन गई है, फिर भी इस तरह की बातें करके लोगों को बहलाया जा रहा है कि संसद महान है, सर्वोपरि है। संसद संविधान की सबसे बड़ी संस्था है। अगर ऐसी संस्था का एक हिस्सा यानी राज्यसभा दूसरे हिस्से यानी लोकसभा से बदला लेने पर आमादा दिखे तो वह देश का भला कैसे कर सकती है? राज्यसभा तो ऐसे बर्ताव कर रही जैसे 2014 में देश की जनता ने एक बड़ी गलती कर दी थी और उसे ठीक करने का दायित्व उसके सिर पर आ गया है। मौजूदा संसदीय प्रणाली को दुरुस्त करने का समय आ गया है, लेकिन हम इतने सुस्त शिथिल राष्ट्र हैं कि सड़ी-गली व्यवस्था को तब तक ढोते रहते हैं, जब तक उसमें सड़ांध न पैदा हो जाए।
संसद और संविधान का सम्मान कब करेंगे माननीय

हम दुनिया को दिखाने और दलितों को लुभाने के लिए संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर का 125वां जयंती वर्ष मनाते हैं लेकिन उन्हीं के द्वारा बनाई संसद और संविधान का सम्मान नहीं करते? क्या इसी के लिए मतदाता इन सांसदों को निर्वाचित करते हैं? दोनों पक्षों के नेताओं को यह स्मरण रखना चाहिए कि भारतीय लोकतंत्र भले ब्रिटेन और अमरीका जितना पुराना नहीं हो लेकिन विश्व में उसकी अपनी प्रतिष्ठा है। जब 80 करोड़ मतदाता शांति से वोट डालते हैं तब दुनिया हमारी वाह-वाह करती है लेकिन जब 750 सांसद संसद नहीं चलने देते, हंगामा और मारपीट करते हैं तब वही थू-थू करती है। तय हमें करना है, हम क्या चाहते हैं?
-अक्स ब्यूरो

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