16-Feb-2016 09:05 AM
1234772
भारत के रहमो-करम पर आश्रित नेपाल को भारत को आंख दिखाना भारी पडऩे लगा है। चीन की शरण में जाकर अपने आपको सुरक्षित मानने की नेपाल की कोशिश तार-तार हो गई है। आलम यह है कि मधेसियों का विरोध झेल रही नेपाल

सरकार अब अन्य वर्गों के विरोध का शिकार होने लगी है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली बुरी तरह से अलग-थलग पड़ गए हैं। ऐसे में यह संकट गहरा गया है कि इस बसंत ऋतु में यह सरकार कहीं गिर ना जाए।
लेफ्टिस्ट कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के ओली ने दक्षिणी मैदानी इलाकों में संविधान को लेकर बने तनाव को खत्म करने का वादा किया था। इसे लेकर भारतीय सीमा पर महीनों से मधेसियों ने नाकेबंदी की है। ओली के सत्ता में आए करीब चार महीने हो चुके हैं। अब भी इस मामले में छिटपुट हिंसक घटनाएं जारी हैं। इस हिमालयी देश में पिछले साल अगस्त से लेकर अब तक 50 लोग मारे जा चुके हैं। पुलिस के साथ झड़प अब भी जारी है और पिछले महीने पुलिस की गोलीबारी में तीन लोगों की मौत हो गई थी। प्रदर्शनकारियों के नेताओं का कहना है कि भारी पुलिस बलों की तैनाती से साफ है कि सरकार हमारी मांगों को लेकर गंभीर नहीं है। इन समस्याओं के बीच काठमांडू के निवासी ईंधन और गैस के लिए लंबी कतारों में खड़े होकर इंतजार कर रहे हैं और उन्हें बेहिसाब कीमत चुकानी पड़ रही है।
जिस माओवादी पार्टी के सहारे ओली का नाजुक गठबंधन चल रहा है, उसके प्रवक्ता दीनानाथ शर्मा ने कहा, रिपोर्ट आ रही है कि भ्रष्टाचार बेशुमार तरीके से बढ़ रहा है और सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरी उतरने में नाकाम रही है। 63 वर्षीय ओली एक झगड़ालु कैबिनेट के प्रमुख हैं, जिसमें कम से कम छह उपप्रधानमंत्री हैं। इनमें से एक राजशाही के समर्थक हैं और दूसरे अल्पसंख्यक मधेसियों के प्रतिनिधि हैं। इन्होंने अभी तक संविधान पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। दूसरी तरफ भारत के साथ नेपाल के संबंध नाजुक स्थिति में हैं। नई दिल्ली की सारी कोशिश नेपाल में संविधान संकट को सुलझाने में नाकाम रही है। नेपाल भारत पर आरोप लगा रहा है कि उसने अघोषित रूप से नाकेबंदी लगा रखी है। एक पूर्व डिप्लोमेट ने बताया कि ओली को लेकर नई दिल्ली में भी नाराजगी है। यहां तक कि नेपाल और भारतीय अधिकारियों के बीच सहयोग बढऩे के बाद भी नाकेबंदी खत्म नहीं हुई।
भारत की सहानुभूति प्रदर्शनकारी मधेसियों के साथ है। ओली के सत्ता में आने के बाद से नेपाल की स्तिति और बिगड़ी है। मधेसी भी चाहते हैं कि भारत उनका खुलकर साथ दे। मधेसी प्रदर्शनकारियों के नेता विजय के कर्ण ने नई दिल्ली में कहा कि मधेसी नेपाल में शासक वर्गों के लिए एक बस्ती की तरह है। उन्होंने कहा कि हम यह रंगभेद के शिकार हैं। कर्ण ने कहा कि ओली प्रमुख समस्या है। उन्होंने कहा कि नेपाल का संवैधानिक संकट हल नहीं होने में ओली की अहम भूमिका है। हालांकि ओली के राजनीतिक सलाहकार बिष्णु रिमल को नहीं लगता है कि ओली सरकार संकट में है। उन्होंने कहा कि यह सरकार 2018 के चुनाव तक चलेगी।
पूरी दुनिया के लिए मिसाल रहे भारत-नेपाल के संबंध को नजर लग गई है। सेना मुक्त भारत-नेपाल सीमा पर तकरीबन तीन माह से डर, भय, हिंसा, आक्रोश, आंदोलन और दहशत का प्रदर्शन जारी है। नेपाल में बनाए गए नए संविधान मसौदे में नेपाल की तराई में रहने वाले मधेसियों की उपेक्षा ने आक्रोश का ऐसा बीजारोपण कर दिया है कि इसकी दहकती चिंगारी के धुएं से भारतीय क्षेत्र में भी लोग घुटन महसूस करने लगे हैं। आलम यह है कि मधेसी जहां नेपाल में सरकार के संविधान मसौदे का विरोध कर संशोधन की मांग कर रहे हैं, वहीं भारतीय क्षेत्र में नेपाल सरकार के तानाशाही रवैये और भारत सरकार की कूटनीतिक विफलता पर रोष गहराता जा रहा है। ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि दोनों देशों के लोग संकट के दौर से गुजर रहे हैं। अब देखना है कि नेपाल के प्रति हमदर्दी दिखाने वाले भारत के प्रधानमंत्री को दहकते नेपाल की चिंता है या पड़ोसी का घर जलता देखने की मंशा है।
-विशाल गर्ग