सीएस की कुर्सी पर नजर
16-Feb-2016 09:01 AM 1234784

प्र के मुख्य सचिव एंटोनी डिसा के रिटायर (31 अक्टूबर 2016 को रिटायर होंगे) होने में अभी  आठ माह से अधिक का वक्त बाकी है, लेकिन उनकी कुर्सी पाने के लिए अफसरों में अभी से दौड़ शुरू हो गई है। यानी मप्र में प्रशासनिक जमावट के लिहाज से अगले कुछ महीने उथल-पुथल भरे होंगे। प्रशासनिक गलियारों में इसकी आहट महसूस की जाने लगी है। आलम यह है कि मुख्य सचिव बनने और बनवाने के लिए तरह-तरह के उपक्रम भी किए जा रहे हैं। इससे एक अनार और सौ बीमार वाली स्थिति निर्मित हो गई है। यह देखना रोचक होगा की किस आईएएस के भाग्य का छीका फूटता है। मुख्य सचिव की दौड़ में शामिल पंचायत एवं ग्रामीण विकास की अपर मुख्य सचिव अरुणा शर्मा के केंद्र में आईटी सचिव बन कर जाने से नए मुख्य सचिव के लिए कुर्सी दौड़ और रोचक हो गई है, क्योंकि उनके जाते ही 85 बैच के दीपक खांडेकर को अपर मुख्य सचिव बना दिया गया है और वे भी इस दौड़ में शामिल हो गए हैं। दरअसल, डिसा के रिटायरमेंट के पहले ही मुख्य सचिव वेतनमान के तीन अफसरों का अपर मुख्य सचिव बनाना जाना तय है। जिसमें से एक खांडेकर को तो तोहफा मिल गया है और जून में राकेश अग्रवाल की सेवानिवृत्ति के बाद  वर्ष 85 बैच के अफसर प्रभांशु कमल का भी अपर मुख्य सचिव बनना तय है। वहीं जुलाई में सुरंजना रे की सेवानिवृत्ति से अपर मुख्य सचिव के लिए वर्ष 85 बैच के  इकबाल सिंह बैंस का रास्ता खुल सकता है अगर केंद्र में पदस्थ अफसर राघवचंद्रा, स्नेहलता श्रीवास्तव, विजया श्रीवास्तव, आलोक श्रीवास्तव, रश्मि शुक्ला शर्मा और जयदीप गोविंद इनमें से कोई वापस नहीं आता है तो इकबाल सिंह बैस का इसी वर्ष अपर मुख्य सचिव बनना तय है। ऐसे में नए मुख्य सचिव के लिए कुर्सी दौड़ और रोचक होने वाली है। राघवचंद्रा, स्नेहलता श्रीवास्तव, विजया श्रीवास्तव, आलोक श्रीवास्तव, रश्मि शुक्ला शर्मा और जयदीप गोविंद और हाल ही में अरुणा शर्मा दिल्ली में पदस्थ हैं। ऐसे में भारत सरकार से किसकी वापसी होगी यह तो पता नहीं परंतु सूत्र बता रहे हैं कि इनमें से कोई भी मुख्य सचिव के लिए सरकार की पसंद नहीं हो सकता। वहीं अरुणा शर्मा प्रदेश की पसंद हो सकती थी, परंतु केंद्र सरकार में उन्हें आने वाले समय पर या तो रक्षा, गृह, डीओपीटी का सचिव बनाया जा सकता है। वहीं इन तीनों जगह के लिए दो वर्ष की अतिरिक्त सेवाओं का प्रावधान है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि आने वाले समय में कैबिनेट सेक्रेट्री मध्यप्रदेश राज्य का हो सकता है। यानी आने वाले समय में प्रशासनिक वीथिका में बड़ी हलचल मचने वाली है। वैसे प्रदेश के अगले मुख्य सचिव की दौड़ में इकबाल सिंह बैस का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। परंतु उन्हें 18 अफसरों की वरिष्ठता को चुनौती देकर यह पद हासिल करना होगा। इसमें से 9 अफसर तो भारत सरकार में पदस्थ हैं।
बने रहे कई समीकरण
वहींं प्रदेश के कई आईएएस अफसर भी इस साल रिटायर होंगे। दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ राजन कटोच इसी माह रिटायर हो रहे हैं। वहीं प्रवेश शर्मा ने वीआरएस मांग लिया है। ऐसे में आगामी दिनों में नए और महत्वपूर्ण समीकरण बनेंगे और कुछ पुराने समीकरण बिगड़ भी सकते हैं। मुख्यसचिव का मामला इसलिए चर्चा में है, क्योंकि वर्ष 2018 में राज्य सरकार को विधानसभा चुनाव का सामना करना है। अक्टूबर में सेवानिवृत्त होने वाले डिसा के बाद वर्ष 80 बैच के अफसरों में सिर्फ पीडी मीना शेष रहेंगे, लेकिन उनकी सेवानिवृत्ति जुलाई 2017 में हो जाएगी, यानि उन्हें काम के लिए महज नौ महीने मिलेंगे। ऐसी स्थिति में 82 बैच की अरूणा शर्मा का नाम उभर रहा है। उनकी सेवानिवृत्ति अगस्त 2018 में होगी। सरकार की मुश्किल यह है कि इस बैच में भी प्रवेश शर्मा के अलावा कोई ऐसा अफसर नहीं है, जिसका कार्यकाल नवंबर- दिसंबर 2018 में संभावित विधानसभा चुनाव के बाद तक हो। 2019 तक कार्यकाल वाले शर्मा ने वीआरएस मांग लिया है।
इन हालात में वर्ष 84 बैच के बीपी सिंह जुलाई 2018 व आलोक श्रीवास्तव का कार्यकाल चुनाव के बाद तक है। समीकरणों से परेशान अफसर वर्ष 83 बैच के सिर्फ एक अफसर मनोज गोयल ही कॉडर में मौजूद हैं, लेकिन समीकरण फिलहाल उनके पक्ष में नहीं हैं। यही स्थिति वर्ष 82 बैच के एसआर मोहंती की है, जिनका कार्यकाल 2020 तक है।  मुख्य सचिव की दौड़ में पहले स्थान पर चल रही 82 बैच की आईएएस अरुणा शर्मा के भारत सरकार में जाने से राजनीतिक ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक समीकरण भी बदल गए हैं। इससे सीएस की दौड़ में नहीं शामिल अफसरों को भी मौका मिल सकता है। मुख्य सचिव के पद से एंटोनी डिसा 31 अक्टूबर 2016 को रिटायर होने जा रहे हैं। पहले चर्चा थी कि आर परशुराम की तरह डिसा को भी सरकार एक्सटेंशन दे सकती है, लेकिन डीओपीटी के नियम इसमें आड़े आ रहे हैं और इसके बाद सीएस बनने की दौड़ में शामिल अन्य अफसरों ने हाथ-पैर मारना तेज कर दिया है।

शुक्ला बनेंगे डीजीपी?
उधर प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया के साथ ही पुलिस के मुखिया सुरेंंद्र सिंह भी इसी साल सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उनकी जगह पर 1983 बैच के आईपीएस अफसर ऋषि कुमार शुक्ला पुलिस महानिदेशक हो सकते हैं। उनका कार्यकाल 2020 में समाप्त होगा।
...तो क्या बैंस के लिए इतिहास दोहराएंगे शिवराज
म  प्र काअगला मुख्य सचिव कौन होगा यह तो अक्टूबर में पता चलेगा, लेकिन प्रदेश की प्रशासनिक और राजनीतिक वीथिकाओं में यह चर्चा जोरों पर है कि इकबाल सिंह बैंस को उपकृत करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राकेश साहनी का इतिहास दोहरा सकते हैं। अगर चर्चा को मान भी लिया जा तो सवाल उठता है कि क्या मुख्यमंत्री उन 17 आईएएस अफसरों को नाराज करके ऐसा कदम उठाएंगे जो बैंस से वरिष्ठता क्रम में ऊपर हैं। मुख्य सचिव के दावेदारों में बैंस से सीनियर अफसरों में 1980 बैच के पीडी मीना, 1982 बैच की अरूणा शर्मा, एसआर मोहंती, राघवचंद्रा, स्नेहलता श्रीवास्तव, 1983 बैच के मनोज कुमार गोयल, 1984 बैच के वीपी सिंह, कंचन जैन, विजया श्रीवास्तव, आलोक श्रीवास्तव, रश्मि शुक्ला शर्मा, एपी श्रीवास्तव, जयदीप गोविंद, पीसी मीणा 1985 बैच के रजनीश वैश, राधेश्याम जुलानिया, दीपक खांडेकर और प्रभांशु कमल के बाद इकबाल सिंह बैंस का नंबर आता है। लेकिन जानकारों का कहना है कि जिस तरह राकेश साहनी को मुख्य सचिव बनाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनसे वरिष्ठ अफसरों को दरकिनार किया था उसी तरह बैंस के मामले में भी कर सकते हैं। सूत्र बताते हैं कि राकेश साहनी को मुख्य सचिव बनाने के मामले में डीओपीटी ने प्रदेश से जवाब-तलब भी किया था। वैसे इकबाल सिंह के ऊपर वरिष्ठ अफसरों में 9 अधिकारी प्रदेश में ही कार्य कर रहे हैं। शेष दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर हैं। हालांकि अभी तक मुख्यमंत्री की तरफ से ऐसा कोई संकेत नहीं दिया गया है। इसी के चलते बैंस ने भी प्रदेश से अपना बोरिया-बिस्तर बांधना शुरू कर दिया है। सूत्र बताते हैं कि उन्हें लगने लगा है कि मुख्यमंत्री उन्हें जो सपना दिखाकर दिल्ली से प्रदेश वापस बुलाए थे वह पूरा होने वाला नहीं है। इसलिए उन्होंने दिल्ली में भी अपनी संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी है। अगर यहां दाल गलती नजर नहीं आएगी तो उनका दिल्ली जाना तय है।
विधानसभा चुनाव बनेगा चयन का आधार
प्रदेश में वर्ष 2018 में विधानसभा के आम चुनाव होने वाले हैं। इसलिए सरकार मुख्य सचिव के लिए चुनावी समीकरण को ध्यान में रखकर ही कोई फैसला लेगी। अक्टूबर में राज्य को नया मुख्य सचिव मिलगा। सरकार की मंशा है कि वह ऐसे अफसर को मुख्य सचिव बनाए जो उसके प्रति प्रतिबद्ध तो हो ही साथ ही उसका कार्यकाल कम से कम 2019 तक हो। अब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह किस पैमाने पर अफसरों को तौले ताकि उसे अगला प्रशानिक मुखिया मिल सके। मध्यप्रदेश कॉडर के अफसरों को केन्द्र सरकार में भी महत्वपूर्ण पद मिले हुए हैं। अफसरों की कमी से जूझ रही राज्य सरकार समय-समय पर प्रयास करती रहती है कि प्रतिनियुक्ति पर गए अफसर वापस लौट आएं, लेकिन इसमें उसे काई खास सफलता नहीं मिली। केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए ज्यादातर अफसर ऐसे हैं, जो प्रतिनियुक्ति पर जाने के बाद वापस मध्यप्रदेश लौटना ही नहीं चाहते हैं। इसमेें कई तो ऐसे हैं जो अपनी प्रतिनियुक्ति अवधि बढ़वा चुके हैं। जब बात चीफ सेक्रेटरी पद की होती है, तो प्रदेश सरकार केन्द्र में पदस्थ अपने सूबे के अफसरों की ओर देखती है कि ये प्रदेश की कमान संभालें। सरकार चाहती है कि स्वच्छ छवि के साथ बेहतर कार्यशैली के अफसर को सीएस बनाया जाए ताकि आगामी चुनाव में वह सरकार की योजनाओं का सही से क्रियान्वय करा सके।
मौजूदा मुख्य सचिव को 6 महीने के एक्सटेंशन की चर्चा भी है, लेकिन इसमें वह नियम आड़े आ रहा है जिसके तहत दो वर्ष से कम कार्यकाल की स्थिति में ही सेवावृद्धि का लाभ मिलता है। शिवराज सरकार ने 2013 में तत्कालीन मुख्य सचिव आर परशुराम को केंद्र से 6 महीने की सेवावृद्धि दिलाई थी। डीओपीटी का नियम है कि चाहे भारत सरकार में कैबिनेट सचिव हो अथवा राज्यों में मुख्य सचिव, यदि उसे दो साल से अधिक समय का कार्यकाल मिल रहा है, तो उसे एक्सटेंशन नहीं दिया जाएगा। ऐसे में यह बात तो तय है कि डिसा की जगह मप्र में नया मुख्य सचिव किसी मिलेगा।
-कुमार राजेंद्र

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