16-Feb-2016 08:57 AM
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विधानसभा चुनाव के ठीक ढाई वर्ष पहले शिवराज सिंह चौहान ने निगम मंडलों के अध्यक्षों की नियुक्ति कर यह खबर दे दी है कि अब मंत्रीमंडल का विस्तार शीघ्र ही होगा। इससे यह लगता है कि भाजपा अब चुनावी मोड में आ चुकी है। परंतु

निगम मंडलों की नियुक्ति को लेकर भाजपा असंतुष्टों से घिर चुकी है। वहीं अपने ही दल के विरोधियों को संतुष्ट करना और संतुलन बनाए रखना। शिवराज के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। पहले मंत्रिमंडल और अब निगम-मंडलों के अध्यक्षों की नियुक्ति में क्षेत्रीय असंतुलन की जो तस्वीर उभरी है उससे भाजपा में असंतोष पनप रहा है। दरअसल,मध्य प्रदेश में पिछले बारह साल से सत्ता और संगठन के लिए जाजिम बिछाने वाले कई नेता आज भी एक अच्छे पद और प्रतिष्ठा के लिए तरस रहे हैं। जबकि पैराशूट से उतरे नेताओं को लगातार पद, प्रतिष्ठा और सुविधाओं से नवाजा जा रहा है। ऐसे सत्ता और संगठन के प्रिय नेताओं को नवाजने के चक्कर में पार्टी में न केवल असंतोष फैल रहा है, बल्कि क्षेत्रीय असंतुलन भी बढ़ रहा है। इसके विरोध में पार्टी के नेता भले ही सार्वजनिक तौर पर कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं, लेकिन अंदुरूनी तौर पर आग सुलग रही है, जिसमें कभी भी धमाका हो सकता है। अभी हाल ही में निगम-मंडलों में हुई नियुक्तियों के बाद अंदरूनी असंतोष और तेजी से बढ़ रहा है। पार्टी के लोग कह रहे हैं कि पहली बार ऐसा हुआ है कि निगम-मंडलों में 19 नियुक्तियां हुईं, लेकिन पार्टी मुख्यालय में जश्न नहीं मनाया गया। निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्तियों के बाद अब मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल की सुगबुगाहट तेज हो गई है। वहीं कांग्रेस से भाजपा में आए विधायक भी अब कहीं न कहीं कहने लगे हैं कि हमारे साथ धोखा हुआ है। वहीं राकेश चौधरी जो सबसे पहले कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा में आए हैं, उनकी पूछ परख तो क्या बल्कि गाहे-बजाहे कोई भाजपा का नेता पूछता भी नहीं है। ऐसे ही हाल संजय पाठक के हैं। उन्हें मंत्री बनाने का लालच देकर भाजपा में शामिल किया था। इन सबके बीच सवाल उठ रहा है कि क्या सत्ता और संगठन मंत्रिमंडल और निगम-मंडलों में नियुक्ति के बाद सामने आए क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने का प्रयास करेगा। इस हिसाब से 12 मंत्री और बनाए जा सकते हैं। इसी आधार पर माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री अपनी टीम में 9-10 लोगों को ला सकते हैं।
मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास में एक नई इबारत लिखने वाले शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल में पहली खेप में शामिल किए गए 23 मंत्रियों में से भोपाल संभाग को पांच, जबकि ग्वालियर, बुंदेलखंड से 4-4, मालवांचल से 3 मंत्री बनाए गए हैं। निमाड़, विंध्य और महाकौशल से 2-2 जबकि नर्मदांचल से एक मंत्री बनाया गया है। मंत्रीमंडल में सबसे भाग्यशाली जैन समाज के विधायक रहे हैं क्योंकि 165 विधायकों में चार जैन जीते हैं और सभी को मंत्री व राज्य मंत्री बना दिया गया है। क्षेत्रीय संतुलन के तौर पर भोपाल और होशंगाबाद संभाग से सर्वाधिक छह विधायकों को मंत्री बनाया गया है जबकि विन्ध्य क्षेत्र की घोर अपेक्षा की गई है। यहां से मात्र दो विधायकों को जगह मिल पाई है। इस असंतुलन की भरपाई के लिए मुख्यमंत्री बार-बार निगम-मंडलों में नियुक्ति और मंत्रिमंडल विस्तार की बात करते रहे। जैसे-तैसे दो साल से अधिक का लम्हा बीत गया और जब निगम-मंडलों में नियुक्ति हुई तो उसमें भी समर्पित और निष्ठावान कार्यकर्ताओं को निराशा हाथ लगी। निगम-मंडलों में हुई नियुक्ति दो पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा और कैलाश जोशी भी खासे नाराज हैं। सूत्रों के अनुसार वरिष्ठ नेता कैलाश जोशी देवास से राय सिंह सेंधव को पाठ्य पुस्तक निगम का अध्यक्ष बनाए जाने से नाराज हैं। वहीं तपन भौमिक की पर्यटन विकास निगम में अध्यक्ष पद की नियुक्ति से सुंदरलाल पटवा नाराज बताए जा रहे हैं। निगम मंडल में नियुक्ति से निराश भाजपाइयों को अब संगठन से उम्मीद है। सत्ता के अंगूर खट्टे होने के बाद वे संगठन में जाने की तैयारी में जुट गए हैं।
निगम मंडलों में नियुक्तियों को लेकर सत्ता और संगठन में भी तकरार
निगम मंडलों में हुई नियुक्तियों को लेकर अब सत्ता और संगठन में तकरार शुरू हो चुकी है, संगठन में काम करने वाले नेताओं के मुताबिक जिस तरह पार्टी ने कर्मठ और निष्ठावान कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करते हुए निगम मंडलों में नियुक्तियां की हैं, उससे तो यह जाहिर होता है कि संगठन की तमाम शक्तियां मुख्यमंत्री में निहित हो गई हैं। यही कारण है कि लाल बत्ती पाने वालों में सबसे ज्यादा संख्या मुख्यमंत्री के चहेतों की है। जिसमें गुरूप्रसाद शर्मा, राजेंद्र सिंह राजपूत, शिवकुमार चौबे, रामकिशान चौहान जैसे निगम-अध्यक्षों के नाम शामिल हैं। तीन बार चेयरमैन रहे नेताओं को रिपीट किया गया। सत्ता के इस बंटवारे में प्रदेश संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन की भी अहम भूमिका रही है। मेनन की वजह से विवादों में घिरी रही लता वानखेड़े को मंत्री का दर्जा मिल गया है। इंदौर और ग्वालियर संभाग के नेता पूरी तरह से साफ हैंवही संघ के दिग्गजों की सिफारिश भी कचरे की टोकरी में डाली गई ऐसा लग रहा है। पहली बार ऐसा हुआ है कि संगठन मंत्रियों को चेयरमैन बनाया गया। कभी प्रभात झा के खास रहे हितेश वाजपेयी का जादू मप्र के प्रभारी विनय सहस्त्र बुद्धे के सिर पर भी चढ़ कर बोल गया और शिवराज सिंह को विनय जी को खुश करने के लिए हितेश बाजपेयी को नागरिक आपूर्ति निगम का चेयरमैन बनाना पड़ा और बाद में उन्हें कैबिनेट से राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया। पार्टी संगठन ने जिस तरह भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के करीबी माने जाने वाले राजेश डोंगरे को पर्यटन विकास निगम में सदस्य बनाया है। बुंदेलखंड, मालवा और विंध्य क्षेत्र के नेता अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे रहे हैं, इससे पार्टी में अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का विरोधी खेमा भी तैयार हो रहा है।
-भोपाल से अजयधीर