16-Feb-2016 08:55 AM
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करीब पांच साल से मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल और व्यावसायिक राजधानी इंदौर में मैट्रो चलाने का सपना दिखाया जा रहा है। इसके लिए कई बार देशी और विदेशी कंपनियां सर्वे भी कर चुकी है। लेकिन 4 फरवरी को जापानी कंपनी के

प्रतिनिधियों ने मुख्य सचिव अंटोनी डिसा के सामने जापान मेट्रो रेल का प्रजेंटेशन दिया। इसके बाद शहरी आवास एवं पर्यावरण विभाग ने भोपाल और इंदौर में मेट्रो प्रोजेक्ट का प्रजेंटेशन दिया। दोनों प्रजेंटेशन देखने के बाद मुख्य सचिव ने जापानी कंपनियों से वित्तीय समझौते को मंजूर किया। तय किया गया कि 20 फीसदी राशि केंद्र सरकार देगी और 20 फीसदी राज्य सरकार देगी। शेष 60 प्रतिशत रकम के लिए कर्ज लिया जाएगा। राज्य सरकार अपने हिस्से की 20 फीसदी राशि के लिए भी कर्ज लेगी। इस कारण जापान की कंपनी कुल 80 फीसदी ऋण देगी।
प्रजेंटेशन के बाद सरकार ने दावा किया है कि दो साल बाद भोपाल और इंदौर के लोग मेट्रो में सफर कर सकेंगे। दोनों शहरों में कम से कम एक रूट पर मेट्रो जरूर दौड़ेगी। पहले चरण का काम 15 हजार करोड़ रुपए में होगा। प्रजेंटेशन के बाद अधिकारी जिस तरह उत्साहित दिख रहे हैं, उससे एक बार फिर आस जगी है कि जल्द ही भोपाल और इंदौर के लोगों को मैट्रो से सफर करने के सपना साकार होगा। लेकिन सरकारी दावों के उलट सवाल यह भी खड़े हो रहे हैं कि दोनों शहरों में मेट्रो परियोजना को शुरू हुए पांच साल हो गए, लेकिन अभी तक केवल कागजों पर ही काम हो रहा है। अफसरों ने यह तो बता दिया कि 2018 में पहले रूट पर मैट्रो चलेगी, लेकिन पहला रूट कितने किमी का होगा, यह कोई नहीं बता पाया है। सरकारी दावों पर सवाल इसलिए भी उठ रहे है कि डीपीआर में भी 2021 तक मेट्रो चलाने की बात कही गई है।
प्रजेंटेशन में मेट्रो रूट पर बिजनेस हॅब से लेकर एक्स्ट्रा एफएआर के जरिए आमदनी के पहलू तक बताए गए। इस दौरान जापान की तरह मेट्रो को कम्युनिकेशन बेस्ड कंट्रोल सिस्टम पर चलाना तय किया गया। यह सिस्टम दिल्ली मेट्रो में अपग्रेड किया जा रहा है। प्रजेंटेशन में जापान की निप्पोन, ईस्ट जापान रेलवे कंपनी, हिताची, कावासाकी व मिट्सुबिसी कंपनी ने अपने सिस्टम व प्रोड्क्ट्स बताएं। मेट्रो के लिए सिग्नल सिस्टम किस तरह काम करेगा इसे भी समझाया गया। भोपाल और इंदौर में पहले रूट से ही मेट्रो को ड्राइवर लैस रखने की कोशिश है, इसीलिए ऑटोमैटिक कंट्रोल सिस्टम लाया जाएगा। हालांकि ड्राइवर को मानीटरिंग के लिए रखा जाएगा। बताया जा रहा है कि मैट्रो के परिचालन के निर्माण के लिए टेंडर निकाले जाने से पहले एक और सर्वे किया जाएगा। उसमेें देखा जाएगा कि इसके लिए क्या-क्या करना होगा। बताया जाता है कि जापानी कंपनियों ने प्रजेंटेशन के दौरान जो शर्ते रखी हैं उसके अनुसार टेंडर से पहले हमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खरीदी भी करनी होगी। यानी कुल मिलाकर देखा जाए तो मैट्रो से सफर करने का अभी मील का पत्थर ही बनकर रह गया है। मेट्रो को लेकर रूट तैयार हो गया है। जिस रूट पर मेट्रो चलेगी वह जमीन सरकारी है या निजी संबंधित विभाग को अभी तक नहीं पता। इसके लिए नगरीय प्रशासन विभाग ने भोपाल कलेक्टर से चार महीने पहले जानकारी मांगी थी। लेकिन अभी तक यह जानकारी विभाग को नहीं मिल पाई। इस कारण काम अभी सिर्फ कागजों तक सिमटा है। अब यह देखने वाली बात होगी कि हमारे अफसर इस परियोजना को किस तरह साकार करवा पाते हैं।
पांच साल में सिर्फ कंपनी ही बनी
( भोपाल और इंदौर में मेट्रो चलाने योजना 2010 में बनी थी।
( फिजिबिलिटी सर्वे का काम पूरा हो गया है।
( मेट्रो का प्रकार तय हो गया, लाइट मेट्रो चलनी है।
( डीपीआर बनाने का काम चल रहा है।
( शासन मेट्रो रेल कंपनी बना दी है, पंजीयन होना बाकी है।
-भोपाल से सुनील सिंह