टाइगर स्टेट की आस
16-Feb-2016 08:34 AM 1234762

2006 में टाइगर स्टेट का दर्जा छीन जाने के बाद से मप्र में बाघों के संरक्षण के लिए प्रदेश सरकार और वन विभाग ने क्रांतिकारी कदम उठाया है। इससे पिछले नौ साल में बाघों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। इससे संभावना जताई जा रही है कि वर्तमान में हुई वन्य प्राणियों की गिनती में बाघों की संख्या को लेकर सुखद खबर मिलने वाली है और मप्र को एक बार फिर से टाइगर स्टेट का दर्जा मिल जाएगा।
दो माह बाद मध्य प्रदेश के बाघों के आकड़े सामने आ जाएंगे। 31 जनवरी से नेशनल पार्क, टाइगर रिजर्व व सेंचुरी में वन्य प्राणियों की गिनती शुरू हुई है। 10 फरवरी से जंगलों में ट्रैप कैमरे सेट कर दिए गए हैं। 45 दिन मॉनीटरिंग के बाद बाघों की गिनती सामने आएगी। राज्य में मांसाहारी और शाकाहारी वन्य प्राणियों का आंकलन 3-3 दिन किया गया है। सांख्यिकीय आधार पर रिपोर्ट तैयार की जा रही है, जबकि 45 दिन तक जंगल में ट्रैप कैमरों से फोटो ली जाएगी और बाघों की धारियों के आधार पर पहचान की जाएगी। इसी प्रकार अन्य वन्य प्राणियों का भी आंकलन होगा। उल्लेखनीय है कि 2006 से पहले यहां देश में सबसे ज्यादा टाइगर थे। बाद में इस स्थान पर कर्नाटक आ गया लेकिन अभी भी टाइगर इस प्रदेश की पहचान बने हुए हैं। एसएफआरआई के डायरेक्टर डॉ. जी कृष्णमूर्ति कहते हैं कि 45 दिन तक ट्रैप कैमरों से वन्य प्राणियों की मॉनीटरिंग होगी। चिप के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जाएगी। दो माह में बाघों की रिपोर्ट तैयार होने की संभावना है। प्रदेश में 31 जनवरी से 6 फरवरी तक चली राज्य स्तरीय वन्य प्राणी गणना में टाइगर की अच्छी-खासी संख्या के संकेत मिले हैं। इस गणना में मध्य प्रदेश के 10 नेशनल पार्क और 25 सेंचुरी में जंगली जीवों की गणना की गई है।
2014 में की गई गणना के अनुसार मध्य प्रदेश में टाइगर की संख्या 308 है और वह तीसरे  स्थान पर है। पहले स्थान पर कर्नाटक है। वहां 400 से अधिक बाघ हैं। दूसरे स्थान पर उत्तराखंड है। वहां पर बाघों की संख्या 346 आंकी गई थी। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार रातापानी सेंचुरी और पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या में काफी हद तक बढ़ोतरी हुई है। रातापानी सेंचुरी की अगर बात की जाए तो 2005 में सेंचुरी में बाघों की संख्या केवल 9 थी, लेकिन 2013 में संख्या बढ़कर 15 से 19 के बीच पहुंच गई। सूत्रों के अनुसार अब यह आंकड़ा 28 के पार पहुंच गया है। ऐसे ही 2009 तक शून्य की कगार पर पहुंच चुके पन्ना टाइगर रिजर्व में अब बाघों की संख्या 30 से 40 के बीच पहुंच गई है। ऐसे ही अन्य टाइगर रिजर्व में भी बाघों की संख्या कुछ बढ़ी ही है। इस संबंध में भोपाल डीएफओ एके सिंह का कहना है कि प्रदेश भर में हुई वन्य प्राणियों की गणना के बाद पूर्व के आंकड़ों को देखते हुए इस बार राजधानी सहित विभिन्न नेशनल पार्वस एवं टाइगर रिजर्व से बाघों के संबंध में आ रही सूचनाओं से अच्छे संकेत मिले हैं। इससे प्रदेश को एक बार फिर से टाइगर स्टेट का दर्जा मिलने की उम्मीद बढ़ गई है।
प्रदेश में 5 टाइगर रिजर्व हैं। सीधी जिले में संजय गांधी, मंडला जिले में कान्हा किसली, सिवनी जिले में पेंच, पन्ना में पन्ना नेशनल पार्क और उमरिया जिले में बांधवगढ़ नेशनल पार्क। इसमें से बांधवगढ़ में टाइगर का घनत्व ज्यादा है तो कान्हा में सबसे ज्यादा टाइगर हैं। भोपाल के पास रातापानी को भी टाइगर रिजर्व बनाने की कोशिशें चल रही हैं लेकिन फैसला अभी भी नहीं हो पाया है। राजधानी के आसपास बाघों की संख्या में बढ़ोतरी अच्छे संकेत हैं। इन्हें बचाने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। वन अधिकारियों का कहना है कि इस बार की बाघों की गणना में निश्चित रूप से प्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा मिल जाएगा। इसकी संभावना मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने व्यक्त की है।
बाघों की संख्या पर उठे थे सवाल
वर्ष 2014 में बाघों के आकड़े आए तो मप्र तीसरे स्थान पर खिसक गया, जबकि उम्मीद भी मप्र फिर टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल कर लेगा। उधर, सतपुड़ा नेशनल पार्क और कान्हा-पेंच कॉरिडोर के बाघों की गणना को लेकर सवाल उठे थे। राज्य वन अनुसंधान संस्थान के जरिए इस बार बाघों की रिपोर्ट तैयार की जा रही है। वन मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों को उम्मीद है कि जो आकड़े आएंगे वे चौंकाने वाले होंगे। यही वजह है कि इस बार सभी वन्य प्राणियों की गणना एक बार कराई गई।
-विशाल गर्ग

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