समाज को धर्म ने सबसे अधिक कमजोर किया
16-Feb-2016 08:27 AM 1234768

भारतीय अध्यात्म में वह जादू है जो किसी को भी अपनी ओर मोड़ सकता है। पाश्चात्य संस्कृति में पले-बढ़े विदेशी भी हिन्दू धर्म और आस्था के कायल हैं। लेकिन जहां विश्वभर के लोग ध्यान के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं वहीं भारत के लोग पौराणिक कथाओं में ही व्यस्त हैं। हमारे अंदर बुद्धिमता नहीं अंधविश्वास है। इस कारण धर्म ने भारतीय समाज को सबसे ज्यादा कमजोर किया है। यह कहना है जूना अखाड़े से बहिष्कृत संत महायोगी पायलट बाबा का। सिंहस्थ महाकुंभ में शामिल होना उज्जैन आए पायलट बाबा से राष्ट्रीय पाक्षिक पत्रिका अक्स के संपादक ने सिंहस्थ की तैयारियों के साथ ही देश-दुनिया के हालात पर चर्चा की। यहां प्रस्तुत हैं उसके प्रमुख अंश:-
सवाल: सिंहस्थ की तैयारियों से आप संतुष्ट हैंं?
जवाब:  वर्ष 2004 की अपेक्षा इस बार यहां  तैयारियां व्यापक स्तर पर की जा रही हैं। अभी तैयारियों का प्रथम चरण है इस लिए कुछ अव्यवस्था नजर आ रही है। इस बार मेले की पूरी व्यवस्था ऑन लाईन की गई है। फिर भी कुछ साधु-संत जगह को लेकर झंझट कर रहे हैं। यह उनकी अज्ञानता का दर्शाता है। प्रशासन अच्छा काम कर रहा है। लेकिन साधु-संत झंझट करके उसे भी परेशान कर रहे हैं। प्रशासन को तगड़ा होना चाहिए ताकि झंझट करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठा सके।
सवाल: देश में भ्रष्टाचार और आपसी संघर्ष बढ़ रहा है इसकी वजह क्या है?
जवाब: यह तो लॉजिक है कि हम विकास की ओर बढ़ेंगे तो विनाश होगा ही। विकासशील देश को संघर्ष करना ही पड़ता है। हमारे यहां जाति-धर्म की राजनीति होती है, इसलिए देश टूट रहा है। कांग्रेस 60 साल तक देश को चूसती रही। अब भाजपा राष्ट्रीय पार्टी बन कर सामने आई है। इसके नेताओं को चाहिए की देश को संतुलित कर विकास के पथ पर आगे बढ़ाएं। देश में आर्थिक विकास हो रहा है, लेकिन इसका फायदा सभी को एक समान नहीं मिल पा रहा है। अभी हम आर्थिक रूप से पिछड़े हैं, कई देशों में ऐसी व्यवस्था है कि बेरोजगारों को भत्ता दिया जाता है, लेकिन हम इतने सशक्त नहीं हैं। आलम यह है कि हमारे यहां आम आदमी तक सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है। विकास का पैसा कई स्तरों पर बंट जाता है। यहां तक कि अपना पेंशन लेने के लिए भी घूस और कमीशन देनी पड़ती है। डेमोक्रेसी का मतलब करप्शन हो गया है।
सवाल: किवदंती है कि जो मुख्यमंत्री सिंहस्थ करवाता है उसका शासन चल जाता है कहां तक सत्य है?
जवाब: सिंहस्थ कुंभ भाग्य और संस्कृति का पर्व है। हम कुंभ विश्वशांति के लिए करते हैं। जहां तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का सवाल है तो वे समय से आगे निकल गए हैं। उनको प्रदेश में शासन करते हुए 10 साल हो गए हैं। जबकि भाजपा के शासन को 12 साल हो गए हैं। बारह साल में तो युग बदल जाता है।
सवाल: साधु-संतों के चरित्र पर भी सवाल उठने लगे हैं ऐसा क्यों?
जवाब: मैंने अपने 40 साल के साधुकाल में यही पाया है कि साधु शिक्षित नहीं है। सरकार को भी साधुओं की देख-रेख करनी चाहिए। क्योंकि बाहर दादागिरी करने वाले लोग भी इन दिनों साधु बन रहे हैं। इसलिए साधु बनने के बाद भी उनकी प्रवृत्ति नहीं बदलती है और वे गलत काम करते रहते हैं। मेरा मानना है कि सरकार की कमी से साधु भी अराजक होते जा रहे हैं। दादा टाइप जो लोग साधु बनते हैं वे अपने को सुरक्षित करने के लिए सबसे पहले अपने आसपास अफसरों और नेताओं का घेरा बनाते हैं ताकि कोई उनके खिलाफ आवाज न उठा सके। पहले लोगों का काम, समाज के प्रति उनके समर्पण और धार्मिकता को देखकर महामंडलेश्वर बनाया जाता था जबकि अब तो पैसा दीजिए और महामंडलेश्वर बन जाइए। ऐसे में धर्म का क्या होगा यह तो सर्वविदित है।
सवाल: आजकल जगह-जगह कुंभ मेला आयोजित कर दिया जाता है, जैसे छत्तीसगढ़ का राजिम कुंभ, ऐसा क्यों?
जवाब: कुंंभ सृष्टि से जुड़ा है। अब आप ही बताइए कि अब दोबारा समुद्र मंथन कब हो गया? जिससे राजिम कुंभ या अन्य जगह ऐसे मेले आयोजित किए जा रहे हैं। दरअसल यह दिखावे और स्वार्थपूर्ति के आयोजन हैं।
्रसवाल: आपके अधिक अनुयायी विदेशी हैं ऐसा क्यों?
जवाब: भारत में लोग पौराणिक कथाओं में व्यस्त हैं। जबकि विश्वभर में लोग ध्यान के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। मैंने विश्वभर में मेडिटेशन केंद्र खोला है जिसका संचालन हरिद्वार से किया जा रहा है। विश्वभर के लोगों का आकर्षण मेडिटेशन की ओर है। इसलिए विदेशी मेरे अनुयायी अधिक है।
सवाल: नई टेक्नॉलोजी यानी फेसबुक और वाट्सअप का हमारी युवा पीढ़ी पर क्या असर डाल रहे हैं?
जवाब: हमारे यहां टेक्नॉलोजी का दुरुपयोग हो रहा हैं। विदेशियों ने जिस टेक्नॉलोजी को रिजेक्ट कर दिया है। उसे हमने सिलेक्ट कर लिया है। इससे हमारी युवा पीढ़ी भ्रमित हो रही है।

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