15-Apr-2013 10:16 AM
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अन्ना हजारे ने हजारों मासूमों की शहीद स्थली जलियावाला बाग से अपनी जनतंत्र यात्रा का श्रीगणेश कर यह संदेश दिया है कि वे अब भ्रष्टाचार के दल-दल में देश के मासूमों को नहीं फंसने देंगे। अन्ना हजारे ने जब यात्रा शुरू की तो दिल्ली में केजरीवाल अनशन कर रहे थे, जिस पर भी सारे भारत की निगाह थी। केजरीवाल ने अनशन तोड़ भी लिया और अन्ना ने यात्रा शुरू भी कर दी, लेकिन इन दोनों घटनाओं के प्रति अब उतना जनसमर्थन जुटता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। अन्ना ने जो यात्रा शुरू की है उसमें भी ज्यादा संख्या में लोग जुट नहीं रहे हैं। जींद में तो अस्वस्थता के कारण अन्ना को यात्रा रोकनी पड़ी हालांकि अगले दिन डॉक्टरों ने उन्हें फिट घोषित कर दिया। सवाल यह है कि मौजूदा राजनीति को अन्ना हजारे किस तरह बदल सकते हैं। राजनीतिक दल बनाने के वे सख्त खिलाफ हैं इसका अर्थ यह है कि वे केवल विरोध करेंगे और उनके विरोध से डरकर यदि राजनीतिक पार्टियों ने अपने रवैये में बदलाव कर लिया तब तो ठीक है अन्यथा हालात वैसे ही रहने वाले हैं। यही कारण है कि अन्ना की यात्रा का उद्देश्य यद्यपि राजनीतिक परिवर्तन लाना है, लेकिन उनकी इस यात्रा से मौजूदा राजनीतिक ढांचे में ज्यादा हलचल होती दिखाई नहीं दे रही। वर्ष 2011 में उन्होंने जिस तरह सारे देश को हिलाकर रख दिया था वैसा कुछ होता अब प्रतीत नहीं हो रहा है। लेकिन अन्ना इसके बावजूद अपनी यात्रा के प्रति बहुत उत्साहित हैं और वे अपने साथियों से कह रहे हैं कि इस यात्रा के पूर्ण होने के बाद देश में एक अलग तरह की राजनीतिक जागरुकता देखने को मिलेगी।
जलियां वाला बाग के बाहर लोगों के समूह को संबोधित करते हुए अन्ना हजारे ने कहा कि जन आंदोलन के माध्यम से ही देश में बदलाव लाया जा सकता है। उनके साथ पूर्व सेना प्रमुख वी. के. सिंह भी थे। उन्होंने कहा कि जनतंत्र यात्रा के बैनर तले 25 सूत्री एजेंडे की मांग के लिए जन रैली का आयोजन किया जा रहा है, ताकि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले यूपीए सरकार के खिलाफ लोगों का समर्थन हासिल किया जा सके और जन लोकपाल बिल पर हुए धोखे से लोगों को अवगत कराया जा सके। अमृतसर में अन्ना हजारे ने मीडिया से कहा, आम लोगों को जन लोकपाल विधयेक जैसे मुद्दों पर जागरुक करने की जरुरत है। देश में बदलाव तभी होगा जब आम आदमी इस आंदोलन से जुड़ेगा। अन्ना हजारे ने ये भी कहा है कि देश की जनता मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था से त्रस्त हो चुकी है। देश के आम लोग भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था से त्रस्त हैं। इसमें बदलाव तभी होगा जब आम जनता एक मंच पर आकर बदलाव की मांग करेगी। अन्ना हजारे के मुताबिक जनतंत्र यात्रा का अंतिम उद्देश्य है आम लोगों को ये बताना कि उनमें सरकारों को उखाड़ फेंकने की ताकत है। इस यात्रा के दौरान आम लोगों को भ्रष्टाचार, लोकपाल के अलावा चुनाव सुधार और जन प्रतिनिधियों को वापस बुलाने के प्रावधानों के बारे में भी बताया जाएगा।
अन्ना हजारे ने इस यात्रा को समर्थन देने के लिए सभी राजनीतिक दलों को खत भेजा था, लेकिन अभी तक कोई राजनीतिक पार्टी इस यात्रा में शामिल होने के लिए सामने नहीं आई है। निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक पांच महीने बाद दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल जन रैली का आयोजन प्रस्तावित है। इसे जन संसद का नाम दिया गया है। अराजनीतिक होने के नाते अन्ना ने यह पहले ही साफ कर दिया था कि उनका जनतांत्रिक मोर्चा चुनाव नहीं लड़ेगा। लेकिन वह यह जरूर बताएगा कि वे कैसे उम्मीदवारों को अपना वोट दें। 18 महीने की अपनी इस यात्रा के दौरान अन्ना यदि जन विरोधी राजनीति के खिलाफ जनमत तैयार कर पाते हैं, तो वह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। उनका मानना है कि देश में परिवर्तन तभी होगा, जब परेशान हाल आम आदमी इस आंदोलन से जुड़ेगा। जब उसे राइट टु रिजेक्ट का अर्थ समझ आ जाएगा। वे चाहते हैं कि लोग खुद पर यह यकीन करें कि वे चाहें तो किसी भी सरकार को अपने दम पर बदल सकते हैं। इस दृष्टि से अन्ना का जोर चुनाव सुधारों पर बराबर बना हुआ है। लेकिन गौरतलब यह है कि किसी भी राजनैतिक दल ने अब तक अन्ना की इस महत्वाकांक्षी यात्रा में शामिल होने की सहमति नहीं दी है। बहरहाल, पंजाब के बाद हरियाणा और उत्तराखंड होते हुए अन्ना तो छह करोड़ लोगों को अपने साथ जोडऩे का सपना संजोए हुए हैं, लेकिन देखना यह है कि जब पांच महीने बाद वह दिल्ली के रामलीला मैदान में जन संसद करेंगे तब तक उनके समर्थन में कैसा माहौल बनता है।
अगर इस आंदोलन का मामूली सा भी असर होता है, तो देश में नए बदलाव की शुरुआत हो सकती है। खैर आगे जो हो सो हो, लेकिन इस यात्रा ने एक बात तो साबित कर ही दी है कि अन्ना का इरादा अभी कमजोर नहीं पड़ा है। आज भी वे देश के हर भाग में अपना जागरण अभियान चलाने की कोशिश कर रहे हैं। यह यकीन कि सरकार कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, एकजुट जन शक्ति के सामने उसे झुकना ही होगा, आंदोलनों की इस नई धारा की ताकत है। किसी जनतंत्र के लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि देश का आम नागरिक अपनी हैसियत को पहचान ले। यदि नागरिक अपनी हैसियत को पहचान लेगा तो उसे अपने वोट का मूल्य भी समझ में आ जाएगा और फिर वह अपने वोट के दम पर सही लोगों को देश की जिम्मेदार संस्थाओं में भेजने में सक्षम होगा।
अरुण दीक्षित