04-Apr-2013 08:21 AM
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मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने सरकार की चुनावी संभावनाओं को देखते हुए इस बार कुछ इस अंदाज में टैरिफ प्रस्तुत किए हैं कि वे चुनावी प्रतीत हो रहे हैं। चुनावी वर्ष में सरकार उपभोक्ताओं को नाराज नहीं करना चाहती इसीलिए विद्युत नियामक आयोग ने उपभोक्ताओं की जेब पर इस बार रहम कर दिया है, लेकिन यह रहम बड़ी दूरगामी रणनीति के तहत किया गया है। यदि पिछले वर्ष से तुलना की जाए तो पिछले वर्ष जिस तरह से टैरिफ बढ़ाए गए थे उसके चलते आगामी दो-तीन वर्ष कोई बढ़ोत्तरी न भी होती तो पर्याप्त ही था। क्योंकि विद्युत कंपनियों ने वर्ष 2013-14 के लिए कुल 24220 करोड़ रुपए की आवश्यकता ही प्रस्तावित की है। इससे यह तो साफ है कि विद्युत कंपनियों को लाभ हो रहा है क्योंकि उपभोक्ताओं की संख्या और खपत लगातार बढ़ रही है। उपभोक्ताओं की संख्या बढऩे की स्थिति में तथा खपत में लगातार वृद्धि के फलस्वरूप उम्मीद की जा रही थी कि सरकार कम से कम घरेलू उपभोक्ताओं को राहत देगी क्योंकि बिजली उत्पादन का दावा भी सरकार कर रही है और यह कहा जा रहा है कि मध्यप्रदेश ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर होने वाला है। लेकिन आत्मनिर्भर होते मध्यप्रदेश में विद्युत की दरें पिछले वित्तीय वर्ष 2012-13 तक अंधाधुंध तरीके से क्यों बढ़ी। इसका जवाब सरकार के पास नहीं है। इसीलिए जब इस बार विद्युत नियामक आयोग ने रहमदिली दिखाई तो किसी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि पिछले वर्ष ही अच्छी खासी बढ़ोतरी की गई थी। आयोग का कहना है कि विद्युत वितरण कंपनियों ने तो सुझाव दिया था कि विद्युत दरें 9.38 प्रतिशत तक बढ़ाई जाए लेकिन आयोग ने इस सुझाव को नकारते हुए केवल 0.77 प्रतिशत की वृद्धि ही स्वीकृत की है। आयोग ने यह नहीं बताया कि पिछले वित्तीय वर्ष में विद्युत वितरण कंपनियों की लगभग सारी मांगे आयोग ने थोड़े बहुत बदलाव के बाद स्वीकार कर ली थीं। जिसका भार उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ा था। लेकिन इसके बाद भी विद्युत वितरण कंपनियां घाटे में चल रही हैं। पूर्वी क्षेत्र की कंपनी को 23 प्रतिशत घाटा है, पश्चिम क्षेत्र की विद्युत कंपनी को 20 प्रतिशत घाटा है तो मध्यक्षेत्र की विद्युत कंपनी को 23 प्रतिशत घाटा है। घाटे का अर्थ यह है कि वितरण व्यवस्था में कहीं न कहीं खराबी है जिसके चलते ग्राह्य वितरण हानियों का स्तर वर्ष 2013-14 के लिए क्रमश: 23-20 और 23 प्रतिशत इन कंपनियों के लिए रखा गया है। घरेलू उपभोक्ताओं को 500 यूनिट तक कोई अतिरिक्त पैसा नहीं देना पड़ेगा क्योंकि 500 यूनिट से अधिक खपत वाले मासिक उपभोक्ताओं को पांच पैसे प्रति यूनिट की दर से अधिक पैसे चुकाना होगा। 500 यूनिट प्रतिमाह उपयोग करने वाले उपभोक्ता मध्यप्रदेश में कम ही हैं। ज्यादातर इससे कम ही बिजली जलाते हैं इसीलिए नियामक आयोग ने इस दायरे के अंदर प्रदेश की जनसंख्या के एक बड़े भाग को लाभान्वित करने की कोशिश की है। हालांकि पिछले वर्ष ही इन उपभोक्ताओं को बिजली का झटका लगा था जब बिजली की दरें 30 प्रतिशत तक बढ़ा दी गई थीं। इसी प्रकार गैर घरेलू उपभोक्ताओं के लिए विद्युत दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। सार्वजनिक जलप्रदाय हेतु भी दरें पिछले वर्ष की भांति ही रहेंगी। ग्राम पंचायतों, नगर पालिकाओं में जलने वाली स्ट्रीट लाइटों पर कोई अतिरिक्त सरचार्ज नहीं लगेगा, लेकिन नगर पालिका, निगम और छावनी बोर्ड में पांच पैसे प्रति यूनिट तथा स्थायी परिवार में पांच रुपए प्रतिकिलो वाट की वृद्धि की गई है। निम्नदाब वाले उद्योगों को भी वृद्धि से दूर रखा गया है, लेकिन किसानों के साथ इसमें भी ज्यादती हुई है 300 यूनिट प्रतिमाह से अधिक खपत करने पर कृषि उपभोक्ताओं को कृषि उपयोग की विद्युत में पांच पैसे प्रति यूनिट अधिक देने पड़ेंगे। रेलवे, कोयला खदानों आदि की विद्युत दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है, लेकिन अब औद्योगिक और गैरऔद्योगिक शापिंग मॉल चलाने वालों को अधिक पैसे देने पड़ेंगे। थोक आवासीय उपयोग कर्ताओं के विद्युतदर में भी पांच पैसे प्रति यूनिट की दर से वृद्धि की गई है। यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि सरकार ने कृषि कार्यों के लिए जो विद्युत सब्सिडी दी है उसका किस तरह निर्धारण किया जाएगा।
कुल मिलाकर उपभोक्ताओं की जेब पहले ही काफी काट ली थी इसलिए इस बार विद्युत नियामक आयोग ने थोड़ी रियायत दी है। सवाल यह है कि जब किसी चीज की मांग बढ़ती है तो उसकी लागत और आपूर्ति को देखते हुए कीमत में कमी आनी चाहिए। बिजली की मांग उत्तरोत्तर बढ़ रही है, लेकिन दाम भी उत्तरोत्तर बढ़ाए जा रहे हैं। यह समझ से परे है। दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि बिजली की चोरी में पहले की अपेक्षा कमी आई है तो फिर इसका लाभ उपभोक्ताओं को ही मिलना चाहिए क्योंकि चोरी होने की स्थिति में भरपाई ईमानदार उपभोक्ताओं की जेब से ही की जाती रही है।
श्याम सिंह सिकरवार