02-Feb-2016 08:01 AM
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निश्चित रूप से भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत पाकिस्तान के लोगों की उन्नति के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन ये भारत की जरूरत नहीं है और यकीनन इस समय प्राथमिकता पर भी नहीं। पाकिस्तान से बातचीत भारत के राष्ट्रीय हित में

नहीं होती, इससे दोनों देशों के लोगों के बीच की सद्भावना को चोट लगती है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है। आतंकवादी और पाकिस्तानी सेना की आईएसआई यही तो चाहते हैं और ये उन्हें मिलता भी है। आईएसआई का मानना है कि-अगर भारत के साथ शांति से रहना था तो पाकिस्तान बनाने की जरूरत ही क्या थी? उसकी नजर में पाकिस्तान एक इस्लामी देश है, जिसका जन्म इसीलिए हुआ क्योंकि उसका भारत के साथ कोई तालमेल नहीं था। यही कारण है की जब भी दोनों देशों के बीच वार्ता की पहल होती है भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियां बढ़ जाती हैं।
पंजाब के पठानकोट में किए गए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान ने जिस त्वरित गति से आतंकियों के विरोध में अपनी कार्यवाही को अंजाम दिया है, उससे ऐसा ही लगता है कि पाकिस्तान अब यह समझने लगा है कि आतंकवाद किसी भी रूप में हानिकारक ही है। इस कथित गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान से भीतर ही भीतर इस बात के भी संकेत मिलते दिखाई दे रहे हैं कि भारत का मोस्ट वांटेड आतंकी मसूद अजहर को पाकिस्तान ने केवल नाम मात्र के लिए ही गिरफ्तार किया है। इसके पीछे पाकिस्तान की एक सोची समझी साजिश भी हो सकती है। क्योंकि जिस प्रकार वर्तमान में वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान की छवि आतंकी देश के रूप में प्रचारित हो रही है, पाकिस्तान उस छवि को तोडऩे के लिए ही इस प्रकार की कार्यवाही को अंजाम दे रहा हो। यह बात भी सही है कि मसूद अजहर भारत की तमाम आतंकी घटनाओं का मुख्य सूत्रधार है, और वह पाकिस्तान में खुलेआम रूप से रह रहा है। पाकिस्तान को सही तरीके कार्यवाही को आगे बढ़ाना है तो वह मसूद अजहर को भारत के हवाले कर दे, इससे पाकिस्तान की विश्वसनीयता ही बढ़ेगी। लेकिन लगता है कि पाकिस्तान ऐसा कर ही नहीं सकता, क्योंकि पाकिस्तान में रह रहे आतंकियों का नेटवर्क विश्व स्तर पर फैला हुआ है। जिसे तोडऩा पाकिस्तान की सरकार की बस की बात नहीं है।
1947 में पाकिस्तान ने हमसे अलग होना पसंद किया और उन्हें इसी तरह रहने के लिए प्रोत्साहित भी करना चाहिए। बल्कि, अगर वो औपचारिक रूप से सउदी अरब या फिर चीन का हिस्सा बन जाएं तो इससे भारत का राष्ट्रीय हित तो होगा ही, साथ ही ये पाकिस्तान को लोगों की स्वतंत्रता को भी सुरक्षित रखेगा। अंतर्राष्ट्रीय सत्ता प्रणाली में दो तरह की सत्ता होती हैं- तर्कसंगत सत्ता और तर्कहीन सत्ता। तर्कसंगत सात्ता वो होती हैं जो पहले अपने देश के लोगों के लिए जिम्मेदार होती है, और फिर अपने पड़ोसियों और फिर पूरी दुनिया के लिए। ऐसी सत्ता के कुछ अदाहरण हैं भारत, ब्रेटेन और अमेरिका। तर्कहीन सत्ता वो होती है जो पहले धर्म और कुछ खास विचारधाराओं के प्रति जवावदेह होती हैं और अपने लोगों के लिए तो बिल्कुल नहीं। सउदी अरब, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान में ऐसा ही है। तो अगर पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सत्ता समुदाय का सम्मानित सदस्य बनना चाहता है तो, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पाकिस्तान के लोगों के भले के लिए कुछ उपाय कर सकते हैं। पाकिस्तान के संविधान में सुधार किए जाएं जिससे सारे पाकिस्तानी नागरिक,जैसे पाकिस्तानी इसाई, पाकिस्तानी हिंदू, पाकिस्तानी सिख, राष्ट्र में मुख्य स्थान पाने के लिए संवैधानिक रूप से लायक हो सकें। भारत को इसराइल से सीखने की जरूरत है, जो हर रोज अपने दुश्मनों से लड़ता है और आर्थिक रूप से आगे बढ़ रहा है। पिछले कुछ दशकों में, भारत के खिलाफ पाकिस्तान की नापाक कोशिशों के बावजूद भी भारत आर्थिक रूप से मजबूत हुआ है। अत: भारत को अपनी इस कमजोरी को जाहिर नहीं करना चाहिए कि वह पाकिस्तान से हर हाल में दोस्ती करना चाहता है।
सभी रिश्ते तोड़ दे भारत
भारत को पाकिस्तान के साथ सभी रिश्तों को डाउनग्रेड कर देना चाहिए। अगर आप संयुक्त सचिव स्तर से नीचे बातचीत करके भी अच्छे परिणाम पाते हैं, तो भारत के विदेश सचिव, विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री को पाकिस्तान भेजकर क्या मिलेगा? पाकिस्तान से बातचीत नहीं करने पर भारत को कोई नुकसान नहीं है। इसका मतलब ये नहीं है कि पाकिस्तान से की सारी संधियां समाप्त हो जाएं। कश्मीरी पासपोर्ट के बिना हफ्ते में एक बार एलओसी के पार यात्रा करें, पाकिस्तानी और भारतीय ट्रक हफ्ते में चार दिन एक दूसरे की सीमा में प्रवेश करें। ये सच है कि भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार से तीन देश-पाकिस्तान, अफगानिस्तान और भारत के लोग आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे। लेकिन आईएसआई इसी आदर्श स्थिति के खिलाफ चौबीसों घंटे काम करता है। उनका मानना है कि-अगर भारत के साथ शांति से रहना था तो पाकिस्तान बनाने की जरूरत ही क्या थी? उसकी नजर में पाकिस्तान एक इस्लामी देश है, जिसका जन्म इसीलिए हुआ क्योंकि उसका भारत के साथ कोई तालमेल नहीं था। इसलिए वह नहीं चाहता है कि भारत-पाक में दूरी बनी रहे।
-आर.के. बिन्नानी