बांस की ईको फ्रेंडली कुटिया में रहेंगे साधू-संत
02-Feb-2016 07:51 AM 1234887

उज्जैन सिंहस्थ में आने वाले साधु-संत इस बार बांस की बनी ईको फ्रेंडली कुटिया में निवास करेंगे। वैसे सिंहस्थ में आने वाले साधु-संत बांस और घास की बनी कुटियाओं में बसेरा करते हैं। यह कुटियाएं भीषण गर्मी में भी जहां राहत देती है, वहीं उनकी गरिमा को भी बढ़ाती है। इसी बात को ध्यान में रखकर साधु-संतों को सस्ती और टिकाऊ बांस की कुटियाएं उपलब्ध कराने के लिए बेंबू मिशन पर काम करने वाली एक सामाजिक संस्था सामने आई है। संस्था का दावा है कि उनकी बनाई कुटियाएं न केवल बाजार के दाम से सस्ती बल्कि 20 साल तक टिकाऊ भी होंगी।
मेला क्षेत्र में साधु-संतों का बसेरा होने लगा है। जमीन आवंटन के बाद कई साधु संतों ने तैयारी शुरू कर दी है। मेला प्रांगण में उनके पड़ाव स्थलों पर कुटियाओं, यज्ञशालाओं आदि का निर्माण भी हो रहा है। यह काम वे बाजार से कराते हैं, इसके लिए मोटी रकम भी अदा करते हैं। साधु संतों की इस जरूरत को पूरा करने के लिए शहर की एक सामाजिक संस्था सामने आई है। संस्था ने मेला कार्यालय को सस्ती और टिकाऊ कुटियाओं, यज्ञशाला, फैंसिंग आदि के मॉडल उपलब्ध कराए हैं। संस्था वन विभाग के साथ मिलकर यह काम कर रही है। वन विभाग द्वारा संस्था से सड़क किनारे किए पौधारोपण की सुरक्षा के लिए फैंसिंग कार्य कराया जा रहा है।
संस्था का दावा है कि वे बालाघाट से मंगाए खास तरह के बांस से कुटिया, यज्ञशाला, फैंसिंग बनाती हैं। बांस का पहले ट्रीटमेंट किया जाता है। ट्रीटमेंट के बाद बांस इतना मजबूत हो जाता है कि इसमें न तो दीमक लगती है और न ही बारिश, धूप, ठंड का असर इस पर होता है। ऐसे में 20 साल तक इससे बनी कुटिया या अन्य सामग्री खराब नहीं होती। संस्था का दावा है कि साधु संत सिंहस्थ में इनका उपयोग करने के बाद इसे निकाल कर अपने साथ ले जा सकते हैं तथा कहीं और उपयोग कर सकते हैं। यदि वे साथ न ले जाना चाहें तो उसे बेच भी सकते हैं। संस्था इनका निर्माण वन विभाग के देवास रोड स्थित डिपो में कर मौके पर ले जाकर लगा सकती है। बांस से घर, कुटिया, यज्ञशाला, फैंसिंग, कलाकृतियां आदि बनाने वाले बहुत कम कलाकार बचे हैं। इन कलाकारों के सामने भी रोजगार का संकट है। सिंहस्थ में साधु-संतों और अन्य संस्थाओं को बांस से बनी वस्तुओं का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है ताकि इन कलाकारों की मदद हो सके। संस्था संचालकों का कहना है कि बांस से की-चैन से लेकर मकान तक हर तरह की वस्तुएं बनाई जा सकती है। सिंहस्थ के दौरान उपहार और स्मृतिचिन्ह देने के लिए भी बांस की कलाकृतियों का उपयोग किया जा सकता है।
पेड़-पौधों से शिप्रा का आंचल हरा-भरा
ग्रीन सिंहस्थ के लिए वन विभाग द्वारा सिंहस्थ क्षेत्र और नदी किनारे पर करीब पांच हजार पौधे लगाए हैं। सिंहस्थ के पहले इस क्षेत्र में करीब पांच हजार पौधे और रोपे जाएंगे। इसी के साथ शहर में भी कई जगह मुख्य सड़कों पर पौधारोपण किया जाएगा। ग्रीन सिंहस्थ बनाने के लिए सिंहस्थ क्षेत्र सहित शहर को हराभरा किया जा रहा है। इसके लिए वन विभाग ने हजारों की संख्या में पौधारोपण किया है। नदी किनारे वन विभाग ने बांस के पेड़ अधिक लगाए है क्योंकि बांस जमीन की पकड़ मजबूत करता है। इसके अलावा अन्य प्रजातियों के पौधे भी लगाए गए है। वन विभाग अब तक करीब 5 हजार पौधे त्रिवेणी क्षेत्र, भूखीमाता, नृसिंह घाट सुनहरी घाट, वाल्मीकि घाट तक लगा चुका है। इसके आगे मंगलनाथ तक पौधे लगाए जाएंगे। कुल 10 हजार पौधे नदी क्षेत्र में वन विभाग लगाएगा। साधु-संतों ने भी पौधारोपण करने की इच्छा जताई है। शहर में देवास रोड और इंदौर रोड, इंजीनियरिंग कॉलेज के रिंग रोड पर कई प्रदेशों की विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाए गए हैं।
-उज्जैन से श्यामसिंह सिकरवार

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