प्रदेश के आईएएस अफसरों को नहीं मिल रही है तनख्वाह
02-Feb-2016 07:37 AM 1234764

एक तरफ केंद्र सरकार 20 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए 51 हजार करोड़ रुपए खर्च करने जा रही है, वहीं दूसरी तरफ सरकारी एजेंसी डीआरडीए को जिलों में केंद्र सरकार की रोजगार परक, विकास इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट संबंधी योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए भारत सरकार से ग्रांट नहीं मिल रही है। पहले ये ग्रांट का रेशों 75:25 का था अब कुछ महीनों से ग्रांट नहीं मिलने के कारण तीन जिलों के कार्यपालन अधिकारी को वेतन नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने वेतन नहीं मिलने पर शासन को डीओ पत्र और बाद में स्मरण पत्र देकर अपनी तनख्वाह की मांग की है। इसमें से दो तो सीधी भर्ती के आईएएस हैं और एक प्रमोटी है। 2010 बैच के आईएएस अधिकारी होशंगाबाद सीईओ अभिजीत अग्रवाल, 1911 बैच के आईएएस अधिकारी अनूपपुर सीईओ व्ही एस चौधरी और सिवनी सीईओ समीर लकड़ा ने यह पत्र लिखा है।  जो इस बात का संकेत देता है कि सरकार को उसकी तनख्वाह की कोई चिंता ही नहीं है। वैसे तो 51 जिलों में जो सीईओ हैं उनमें से अधिकतरों की जवाबदारी पदेन कलेक्टर के रूप में भी है। परंतु सरकार की बदहाल स्थिति को देखते हुए इन आईएएस अफसरों को तनख्वाह नहीं मिलना अपने आप में यह दर्शाता है कि खजाना खाली है।  
होशंगाबाद सीईओ अभिजीत अग्रवाल कहते हैं कि पिछले डेढ़ साल से केंद्र से फंड नहीं आ रहा है। इस कारण जिला पंचायत के अधिकारियों और कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिल पा रहा है। वह कहते हैं कि जिला पंचायत सीईओ को भी डीआरडीए से ही वेतन मिलता है। इसलिए मैंने सरकार को पत्र लिखकर मांग की है कि हमारे वेतन को ट्रेजरी से दिया जाए ताकि डीआरडीए को सालाना कम से कम सात-आठ लाख की राहत तो मिल सके। वह कहते हैं कि मैंने अन्य जिला पंचायत सीईओ को भी ऐसा करने को कहा है। वहीं सिवनी सीईओ समीर लकड़ा भी स्वीकारते हैं की केंद्र से फंड नहीं आने के कारण वेतन मिलना मुश्किल हो गया है। इस लिए मैंने पत्र लिखकर समस्या से अवगत कराया है। वहीं अनूपपुर सीईओ व्हीएस चौधरी ने भी सरकार को पत्र लिखकर वेतन की व्यवस्था करने को कहा है। बताते हैं की अफसरों की इस समस्या को पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की एसीएस अरुणा शर्मा ने गंभीरता से लेते हुए कहा है कि मैं कुछ नहीं जानती इन अफसरों के वेतन का प्रबंध हर हाल में किया जाए। उनका कहना है कि इस संदर्भ में इनका हेड बदलने की कोशिश की जाएगी। सवाल यह उठ रहा है कि अगर इन सीईओं की बात मानकर सरकार इनका वेतन ट्रेजरी से देने को तैयार होती है तो क्या सभी के साथ ऐसा होगा या फिर उनको ही लाभ मिलेगा जो पदेन अपर सचिव हैं। बताया जाता है कि प्रदेश में 6 सीईओ आरडी यानी विभागीय हैं, जबकि अधिकांश आईएएस हैं।
ज्ञातव्य है कि डीआरडीए को केंद्र सरकार की मनरेगा, इंदिरा आवास योजना, स्वच्छ भारत मिशन, सांसद विकास निधि अनेक योजनाओं को क्रियान्वयन करवाना और उनकी रिपोर्ट सरकार तक पहुंचानी होती है।  लेकिन डीआरडीए को केंद्र से मिलने वाला ग्रांट मांग के हिसाब से नहीं मिल रहा है। इस कारण जिला पंचायतों के डीआरडीए के कर्मचारियों को वेतन लाले पड़ रहे हैं। साथ ही वेतन देने के लिए दूसरे बजट का उपयोग हो रहा था। उससे कई योजनाएं प्रभावित हुई हैं, उनका खामियाजा सीईओ सहित अन्य अधिकारियों को उठाना पड़ रहा है।
अभी तक स्कीमों के फंड से निकल रहा था वेतन
एक जिले के जिला पंचायत सीईओ ने बताया कि अप्रैल से बजट नहीं आने के कारण जिला प्रशासन की अनुमति से अन्य मद से वेतन दिया जा रहा है। इस बार बजट आने की उम्मीद थी। पत्र भी लिखे हैं। इसलिए अभी तक वेतन नहीं मिल सका है। वह कहते हैं की स्कीमों से वेतन देने से योजनाएं प्रभावित हो रही हैं। उधर फंड का अभाव होने के बावजूद ग्रामीण योजनाओं को आगे बढ़ाने के नाम पर कई जिलों के युवा आईएएस अफसरों को लापरवाह साबित किया जा रहा है। ये आईएएस जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी हैं। इन अफसरों के कारण सैकड़ों गरीबों को घरों के लिए मिलने वाली राशि केन्द्र सरकार ने (द्वितीय किस्त) रोक दी है। इससे नाराज पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने 8 जिलों के सीईओ को कड़ी फटकार लगाई है। चेतावनी दी गई है कि गरीबों को होने वाली क्षति की राशि उनकी जेब से वसूल की जाएगी। इन अफसरों को शोकॉज नोटिस देते हुए दो सप्ताह में जवाब मांगा है।
-राजेंद्र आगाल

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