02-Feb-2016 07:43 AM
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देश में अफसर इतने बेलगाम हो गए हैं कि अब तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी परेशान हो गए हैं। बार-बार आ रही अधिकारियों की शिकायतों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कड़ा रुख अपनाया है। मोदी ने ऐसे अधिकारियों के खिलाफ

कठोर कार्रवाई का निर्देश दिया है। 27 जनवरी को प्रधानमंत्री ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए आदेश दिया है कि बार-बार शिकायतों के बावजूद जो अधिकारी अपना ढर्रा नहीं सुधारते उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी सचिवों से कहा है कि वे ऐसे अधिकारियों के प्रदर्शन की समीक्षा और उन पर कार्रवाई की सिफारिश करें। इस कार्रवाई में बर्खास्तगी और पेंशन में कटौती तक शामिल है। उल्लेखनीय है कि नौकरशाही का सुस्त रवैया केवल केंद्र में ही नहीं बल्कि राज्यों में भी है।
मध्यप्रदेश हो या उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ या अन्य कोई राज्य हर जगह की अफसरशाही सुस्त होने के साथ ही बेलगाम हो चुकी है। इस कारण न केवल सरकारी योजनाओं का पलीता लग रहा है बल्कि जनता का काम भी प्रभावित हो रहा है। इसको भांपते हुए प्रधानमंत्री ने पद संभालते ही अफसरों की कार्यप्रणाली में बदलाव करने का कदम उठाया था, लेकिन उसका असर पड़ता नहीं दिख रहा है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री ने अभी तक केन्द्रीय प्रशासन में कई बदलाव भी किए हैं। अफसरों की नाफरमानी इस कदर बढ़ गई है कि 27 जनवरी को खरी-खोटी सुनाने के बाद 29 जनवरी को प्रधानमंत्री ने केन्द्र सरकार की नौकरशाही में भारी फेरबदल कर डाला। प्रधानमंत्री के इस कदम से अफसरों में थोड़ा बहुत भय समाया हुआ है। लेकिन यह भय कब तक बरकरार रहता है, यह देखने की बात होगी। क्योंकि मोदी सरकार ने सत्ता संभालने के 20 महीनों के भीतर नाफमान 13 आईएएस अफसरों को बर्खास्त करने के साथ ही दो दर्जन नौकरशाहों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दिया है उसके बाद भी अफसरशाही के रवैए में कोई खास बदलाव नहीं आया है।
मध्यप्रदेश के संदर्भ में बात करें तो यहां के अफसरान इस तरह बेलगाम हो गए हंै कि वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बार-बार की हिदायत के बाद भी सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। प्रदेश में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू साल-दर-साल रिकार्ड तोड़ भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है। फिर भी भ्रष्टाचार रुकने का नाम नहीं ले रहा है। दूसरी तरफ योजनाओं का क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो पा रहा है। सरकार ने अक्टूबर में तीन दिन के लिए मुख्य सचिव सहित सारे अफसरों को जनकल्याणकारी योजनाओं की मैदानी हकीकत जानने के लिए भेजा। फीडबैक आया कि योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा है। जन समस्याओं का भी गांव में अंबार मिला। प्रदेश में कमजोर गवर्नेंस और बिगड़ी अफसरशाही राज्य सरकार के लिए भी चुनौती साबित हो रही है। हर स्तर से सुस्त प्रशासन का फीडबैक मिलने के बाद मुख्यमंत्री भी चिंतित हैं। चिंता की वजह ये है कि अफसरशाही को मौखिक रूप से बार बार चेतावनी दिए जाने के बाद भी कोई सुधार नहीं हो पा रहा है। तबादला करने, सीआर बिगाडऩे, जांच बिठाने जैसी धमकियां भी बेअसर रही हैं। इन परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकार अब कार्रवाई करने के मूड में है। लेकिन सरकार ऐसा कर नहीं पा रही है। अगर भ्रष्ट और गैर जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होती रहती तो ऐसी नौबत नहीं आती। अधिकारियों में अब भय नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। आलम यह है कि कई अधिकारियों की निष्ठा तो सरकार के प्रति संदिग्ध हो गई है। ऐसे में ये अफसर जनता के प्रति कितना समर्पित होंगे? बेलगाम अफसरशाही के चलते रोजाना ही सरकार की किरकिरी हो रही है। इस कारण अब जाकर मुख्यमंत्री कुछ सख्त हुए हैं और पिछले पांच में माह 5 कलेक्टर और एक ननि आयुक्त मैदान से हटाए जा चुके हैं। वहीं अनुसूचित जाति कल्याण के आयुक्त पद से हटाए गए जेएन मालपानी को निलंबित भी किया जा चुका है। यही हाल हरियाणा का है। यहां के दो मंत्रियों चौधरी बीरेंद्र सिंह व राव इंद्रजीत ने हरियाणा में बेलगाम अफसरशाही को लेकर मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर तक को घेरा डाला। उन्होंने यहां तक कहा कि हरियाणा में अफसर मंत्रियों की नहीं सुन रहे हैं जिससे न तो कार्यकर्ताओं के कार्य हो रहे हैं और न ही सरकार के विकास कार्यों में तेजी आ रही है जिसके चलते लगातार प्रदेश में पार्टी की किरकिरी हो रही है। वहीं केंद्र के एक मंत्री ने मुख्यमंत्री के समक्ष ऐसे अधिकारियों की भी चर्चा की जो पिछली सरकार में प्रदेश मेें मनमर्जी पोस्टिंग ले रहे थे और आज भी वे मलाईदार पदों पर तैनात हैं जिस कारण ऐसे अधिकारी न तो जनता की सुन रहे हैं और नेताओं की।
बिहार में तो कोई ऐसा विभाग नहीं हैं जहां बिना लेन-देन के पत्ता भी डोलता हो। नीतीश सरकार में अफसर बेलगाम व भ्रष्टाचार चरम पर है जबकि सरकार भ्रष्टाचार को समाप्त करने का दावा करती है। भाजपा का आरोप है कि प्रदेश में अफसरशाही चरम सीमा पर है। अफसर बेलगाम हो गए हैं। जब तक घोड़े की लगाम नहीं कसी जाएगी, घोड़ा बिदकता रहेगा। उसी प्रकार जब तक लीडरशिप सही आदमी के हाथ में नहीं होगी, अफसर बेलगाम रहेंगे। उत्तर प्रदेश के अफसरों का हाल तो अन्य प्रदेशों से बेहाल है। यहां की अफसरशाही दो वर्गों में बंटी हुई है। एक को सरकार का समर्थन प्राप्त है और वह जमकर मनमानी कर रहे हैं। अफसरशाही के रवैए पर समाजवादी पार्टी के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भी सवाल उठा चुके हैं। यादव का कहना है कि पिछली बसपा संस्कृति के प्रदूषण से बहुत से अफसर बेलगाम हो गए थे। उनकी आदतें बिगड़ी हुई थी। धीरे-धीरे अब इनमे बदलाव भी हो रहा है। भ्रष्टाचार पर रोक लगी हैं। अधिकारी डरने लगे हैं। मुख्यमंत्री के लिए सुझाव है कि वे कुछ बड़े अधिकारियों के दोषी पाए जाने पर कड़ी कार्यवाही करें। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश एक बड़ा प्रदेश है। इसलिए एक बार ब्यूरोक्रेसी की ओवर हालिंग होनी चाहिए। मुलायम की इस सलाह और तथाकथित धमकी के बाद भी अफसरों की चाल नहीं बदली है। बेलगाम अफसर अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के गले की हड्डी बन गए है।
छत्तीसगढ़ में तो दागदार अफसरों को ही कई प्रमुख कार्य सौंप दिया गया है। इस कारण वहां भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह अफसरों को बार-बार हिदायत दे रहे हैं, लेकिन अफसर इस कदर बेलगाम हो गए हैं कि वे मुख्यमंत्री के निर्देशों को भी दरकिनार कर रहे हैं। राजस्थान में अफसरों की कार्यशैली से भाजपा सरकार की छवि बिगडऩे लगी है। आम जनता की समस्याएं सुलझ नहीं पा रही हैं। नौकरशाही को लेकर खूब शिकायतें मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे तक पहुंचने लगी हैं। यही हाल देश के अन्य राज्यों का है जहां अफसरों के कारण जनता हालाकान हो रही है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस प्रकार जनवरी के अंतिम दिनों में अफसरों की कार्यप्रणाली को लेकर कड़ा रूख अपनाया है उससे आस दिखी है की आने वाले समय में अफसरशाही का रूख सकारात्मक हो सकता है।
ये तो सड़क पर उतरकर धरना-प्रदर्शन पर हो गए उतारू
मप्र की बेलगाम नौकरशाही का उदाहरण इससे भी मिलता है कि सरकार ने दो भ्रष्ट आईएएस अधिकारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाया तो वे सरकार के खिलाफ ही आंदोलन पर उतारू हो गए। दोनों नेताओं ने दलित संगठनों के साथ मिलकर राजधानी में धरना देकर सरकार को जमकर खरी-खोटी सुनाई। आईएएस रमेश थेटे व निलंबित आईएएस डॉ. शशि कर्णावत ने दलित होने के कारण उनके खिलाफ दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई करने का आरोप लगाया है। दोनों अफसरों के आरोपों को दरकिनार करते हुए वित्तमंत्री जयंत मलैया ने 28 जनवरी को इनसे मुलाकात की। मुलाकात के बाद डॉ. शशि कर्णावत ने तो हनुमंतिया टापू पर होने वाली कैबिनेट के दिन जल समाधि लेने की घोषणा भी कर दी है। कर्णावत के जल समाधि लेने के बयान पर सरकार ने नाराज होकर निलंबन भत्ता 75 प्रतिशत करने का आदेश निकालने से इंकार कर दिया। विरोध स्वरूप उन्होंने मौन व्रत ले लिया है। अब आदेश नहीं निकलने के बाद मामले में नया मोड़ दो फरवरी तक आएगा। उल्लेखनीय है कि वित्तमंत्री जयंत मलैया ने आईएएस रमेश थेटे को कह दिया कि जब समझौता हो गया तो फिर इस तरह की बयानबाजी क्यों? मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इस पर नाराजगी जताई। इसके बाद वित्त मंत्री ने 75 प्रतिशत भत्ते का आदेश निकालने के लिए शर्त रख दी कि पहले कर्णावत जल समाधि का बयान वापस लें। इससे डॉ. कर्णावत ने दो फरवरी तक का मौन व्रत ले लिया। अपनी बातें कहने के लिए कर्णावत ने थेटे को अधिकृत कर दिया। सरकार की शर्त पर अब थेटे ने आश्वासन दिलाया है कि दो फरवरी तक कर्णावत कोई कदम नहीं उठाएंगी। न ही जल समाधि लेंगी, लेकिन दो फरवरी के बाद न्याय नहीं मिलने पर डॉ.कर्णावत के किसी कदम की जिम्मेदारी लेने से इंकार किया है। इससे घटनाक्रम में नया मोड़ आ गया है। दलित आईएएस और सरकार दोनों ओर से वेट-एंड-वॉच की स्थिति बनी हुई है। इन अफसरों का कहना है कि हम दलित हैं इसलिए हमें भ्रष्टाचार में फंसाया गया है। सवर्ण अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
सहयोग नहीं कर रहे नौकरशाह
महाराष्ट्र में तो खुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस अफसरों की कार्यप्रणाली से परेशान हैं। इस बात का खुलासा उन्होंने मीट द प्रेस कार्यक्रम में किया। मुख्यमंत्री ने सूबे के नौकरशाहों पर सरकार के साथ पूर्णतया सहयोग नहीं करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि इन्हीं कारणों से नीतियों के क्रियान्वयन में दिक्कत आ रही है। ऐसे में सरकार ने 800 नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई की। अब वे सरकार के साथ काम कर रहे हैं। सूबे के करीब 70 फीसदी वरिष्ठ नौकरशाहों ने अब अपने कार्य करने के ढंग में सुधार किया है, जबकि शेष अब भी उपेक्षापूर्ण रवैया अपना रहे हैं। गत एक वर्ष से भाजपा-शिवसेना सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में करीब 50 फीसदी (नौकरशाह) दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। यही वजह है कि राज्य सरकार ने 800 नौकरशाहों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की। इसमें उनका निलंबन और 50 अधिकारियों को बर्खास्त करना भी शामिल है।
-भोपाल से अजयधीर