02-Feb-2016 07:40 AM
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ऐसे कई सबूत और लोग हैं जो विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत की बात को झुठलाते हैं और साबित करते हैं कि 1945 में हुए उस विमान हादसे के बाद भी नेताजी जिंदा थे, क्या सरकारी फाइलें इस राज से पर्दा उठा पाएंगी? हाल ही में

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते और ब्रिटेन में स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर काम रहे आशीष रे ने अपनी वेबसाइट में उस विमान दुर्घटना का जिक्र किया था जिसमें कथित तौर पर नेताजी की मौत हो गई थी। आशीष की वेबसाइट ने भी माना था कि इस विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत हो गई थी। 23 जनवरी को नेताजी की 119वीं जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक किया। इन फाइलों में 21 वर्ष पुराने 1995 के एक कैबिनेट नोट के जिक्र है जिसके मुताबिक सरकार ने यह बात मान चुकी थी कि अगस्त 1945 को ताइपै में विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत हो गई थी। इस नोट में सरकार ने कहा था कि जिन लोगों को यह बात झूठ लगती है वे तार्किक सोच की बजाय भावानात्म सोच के कारण ऐसी बात कहते रहे हैं। लेकिन फिर भी अभी भारतीय राजनीति के सबसे बड़े रहस्यों में से एक का पूरा सच सामने आना बाकी है। ऐसे कई सबूत और लोग हैं जो विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत की बात को झुठलाते हैं और साबित करते हैं कि 1945 में हुए उस विमान हादसे के बाद भी नेताजी जिंदा थे और आजादी की लड़ाई के लिए संघर्षरत भी थे। ऐसे में सवाल ये है कि क्या नेताजी से जुड़ी सरकारी फाइलें उनकी मौत से जुड़े रहस्य से पर्दा हटा पाएंगी। 1945 में नेताजी की मौत की बात को झुठलाते सबूत: ऐसी कई कहानियां और सबूत हैं जो साबित करते हैं कि 1945 में नेताजी की मौत नहीं हुई थी। 18 अगस्त 1945 को हुई विमान दुर्घटना के बाद और आजादी से पहले तीन बार रेडियो से राष्ट्र के नाम नेताजी का संदेश प्रसारित किया गया। इनमें से पहला संबोधन 26 दिसंबर 1945, दूसरा 1 जनवरी 1946 और तीसरा फरवरी 1946 में प्रसारित किया गया था। इनमें से अपने हर एक संदेश में नेताजी ने देश को आजाद कराने का संकल्प दोहराया था। अपने तीसरे और आखिरी संदेश में उन्होंने कहा था, मैं सुभाष चंद्र बोस बोल रहा हूं, जय हिंद। जापान के आत्मसमर्पण के बाद मैं तीसरी बार अपने भारतीय भाइयों और बहनों को संबोधित कर रहा हूं।
22 जुलाई 1946 को गांधीजी के सचिव खुर्शीद नैरोजी द्वारा अमेरिका की प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी में लुइस फिचर को लिखे खत में भी बोस का जिक्र मिलता है। उन्होंने लिखा था, दिल से भारतीय सेना आजाद हिंद फौज के प्रति सहानुभूति रखती है। अगर बोस रूस की मदद से आते हैं तो न तो गांधीजी और न ही कांग्रेस देश को इसके कारण बता पाने के योग्य होंगे। साथ ही अगर रूस प्रचार के उद्देश्य से खुद को एशियाई देश घोषित कर देता है तो भारत द्वारा किसी भी यूरोपीय गठबंधन को स्वीकार करने की कोई उम्मीद नहीं होगी। इस खत में नेताजी की वापसी का जिक्र इस बात की तरफ संकेत करता है कि लेखक को नेताजी के रूस में होने की संभावना का पता था।
अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने एक व्यक्ति से पूछताछ के बाद कहा था, 20 फरवरी 1946 को करीब 1345 बजे से पूछताछ की गई थी। सुभाष चंद्र बोस की संभावित वापसी के विषय में एक कहानी से संबंधित। यह व्यक्ति 1938-39 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष था और माना जाता है कि युद्ध के बाद एक विमान दुर्घटना में उसकी मौत हो गई थी। हालांकि इस बात की प्रबल संभावना है कि बोस नेहरू सरकार को कमजोर करने वाले विद्रोही गुट का नेतृत्व कर रहे हैं। अमेरिकी एजेंसी की खुफिया रिपोर्ट में उस व्यक्ति से पूछताछ का जिक्र है जो कि जानता था कि नेताजी जिंदा हैं और भारत में हैं। इतना ही नहीं खुद नेताजी के रिश्तेदार भी इस बात पर एकमत नहीं है कि 1945 में नेताजी की मौत हो गई थी।
नेताजी के एक रिश्तेदार प्रोफेसर सुगाता बोस का कहना है कि सरकारी फाइलों ने उसी बात की पुष्टि की है जो उन्हें दशकों से पता है, कि नेताजी की मौत 1945 की विमान दुर्घटना में हो गई थी। लेकिन नेताजी के एक और रिश्तेदार सूर्य बोस का कहना है, नेताजी की मौत के बारे में स्पष्ट जानकारी तभी मिलेगी जब विदेशी खुफिया फाइलें उपलब्ध हों, यह (फाइलों को सार्वजनिक करना) उस अध्याय की शुरुआत है जिससे शायद उनके गायब होने या मौत के राज से पर्दा उठ सकेगा। सरकारी फाइलों से नेताजी की मौत से जुड़ा सच सामने आ पाएगा या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन इतना तो तय है कि अभी इस राज से जुड़ी बहुत सी बातों का सामने आना बाकी है।
-इन्द्र कुमार