उत्पीडऩ और शोषण का केंद्र बने उच्च शिक्षण संस्थान
02-Feb-2016 07:06 AM 1234820

हैदराबाद में रोहित वेमुला के सुसाइड का दर्द अभी भर भी नहीं पाया था कि तमिलनाडु में तीन मेडिकल की छात्राओं ने भी सुसाइड कर लिया। 23 जनवरी की रात में एक कुंए से तीनों छात्राओं के शव बरामद किए गए। तीनों छात्राएं एसवीएस मेडिकल कॉलेज ऑफ नैचुरोपैथी एंड योगा साइंसेज में पढ़ती थीं। तीनों छात्राओं की खुदकुशी के मामले में पुलिस ने सुसाइड नोट बरामद करने का दावा किया है। इसमें कथित रूप से कॉलेज प्रबंधन पर आरोप लगाए गए हैं, विशेष रूप से इसके प्रमुख पर। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक सुसाइड नोट से मैनेजमेंट द्वारा उगाही का पता चलता है और यह भी पता चलता है कि छात्राओं को मूलभूत सुविधाओं के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा था। छात्राओं के परिजनों का आरोप है कि कॉलेज प्रशासन उन्हें प्रताडि़त कर रहा था। दरअसल, देश के उच्च शिक्षण संस्थान उत्पीडऩ और शोषण का केंद्र बनते जा रहे हैं। पिछले कुछ साल से ऐसी घटनाओं के लिए कोटा शहर बदनाम हो रहा है। यहां देशभर से प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग करने आने वाले कई छात्र आत्महत्या कर चुके हैं।
तमिलनाडु की यह घटना हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के दलित छात्र रोहित वेमुला के सुसाइड करने के सात दिन बाद हुई है। रोहित और उसके चार साथियों को एबीवीपी के एक नेता से मारपीट के आरोप में हॉस्टल से निलंबित कर दिया गया था। इसके बाद ही रोहित ने सुसाइड कर लिया था। इस मामले में भी कॉलेज प्रशासन की तरफ से रोहित और उसके दोस्तों को प्रताडि़त करने के आरोप लग रहे हैं। रोहित वेमुला सुसाइड मामले में केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा है। आरोप है कि उन्होंने छात्रों पर कार्रवाई करने के लिए कॉलेज पर दबाव बनाया था। कथित तौर पर दत्तात्रेय ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी को चि_ी लिखकर रोहित और उसके दोस्तों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहा था। इसके बाद मंत्रालय ने कॉलेज को चि_ी लिखकर दलित छात्रों के खिलाफ कार्यवाही करने की बात कही थी। शोध छात्र रोहित वेमुला ने अपनी जान दी, तो जाते-जाते वह पांच पन्ने के अपने सुसाइड नोट में बहुत कुछ कह गया। रोहित के आखिरी खत में बातें तो बहुत-सी हैं, लेकिन इसका मर्म कैंपस में दलित छात्रों के साथ हो रहे अन्याय में ही छिपा है। उसे पिछले सात महीने से जूनियर रिसर्च फेलोशिप (जेआरएफ) के तहत बकाया पौने दो लाख रू का वजीफा भी नहीं मिला था जो वह अपने परिवार को दिए जाने की इच्छा जाहिर कर गया है। इसी पैसे से वह दिहाड़ी मजदूरी करने वाली अपनी मां और छोटे भाई की मदद किया करता था। इस मौत ने देश को हिलाकर रख दिया। हैदराबाद विश्वविद्यालय से लेकर दिल्ली में मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के घर और दफ्तर तक जबरदस्त प्रदर्शन हुए। वैसे, रोहित की मौत इस तरह की इकलौती मौत नहीं है। अकादमिक जगत के लोग इस तरह की घटनाओं के लिए प्रशासन की संवेदनहीनता और दलित छात्रों को आर्थिक मदद पहुंचाने की कारगर व्यवस्था न होने की तरफ इशारा करते हैं। ऐसी वजहों से कई दलित छात्रों को पढ़ाई बीच में ही छोडऩी पड़ती है। नाम न छापने की शर्त पर एक शिक्षाविद् कहते हैं, 1974 में हैदराबाद विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर आज तक यहां का प्रबंधन किसी वंचित तबके के शख्स के हाथ में नहीं आया। ओपी जिंदल स्कूल ऑफ  गवर्नमेंट ऐंड पब्लिक पॉलिसी में प्रोफेसर और सामाजिक अध्येता शिव विश्वनाथन कहते हैं, रोहित की खुदकुशी विश्वविद्यालय की स्वायत्तता के झूठ का पर्दाफाश करती है। यह दिखाती है कि छात्र कैसे एक-दूसरे के परस्पर सहारे से जीते हैं। वह एक अद्भुत सख्स था जो कार्ल सैगान की तरह लिखने और सितारों के सफर का सपना देखता था।
इससे पहले भी हैदराबाद विश्वविद्यालय में दलित छात्रों की मौत हुई है लेकिन उन पर किसी का ध्यान नहीं गया। सलेम के एक छात्र सेंथिल कुमार ने 2008 में आत्महत्या कर ली थी, तब विश्वविद्यालय ने इस शोध छात्र को सुपरवाइजर उपलब्ध नहीं कराया था। इस मौत की जांच करने वाली समिति ने दलित छात्रों के खिलाफ गंभीर भेदभाव की बात कही थी। इसके बाद 2013 में एम. वेंकटेश नामक एक छात्र ने आत्महत्या कर ली। तीन साल तक गुहार लगाने के बाद भी विश्वविद्यालय ने वेंकटेश को गाइड और लैब नहीं मुहैया कराया था। उसकी मौत के बाद बनी एक समिति ने वंचित तबके से आने वाले छात्रों का ध्यान न रखे जाने और उनसे संवेदनहीन व्यवहार किए जाने के मामलों को पाया था। शिक्षाविदों का मानना है कि छुआछूत और जात-पात एक तबके के दिमाग में गहरी जड़ें जमाए है जो समय-समय पर अपना असर दिखाता रहता है।
दलित एक्टिविज्म का उभार
इन ज्यादतियों की वजह से वर्ष 2000 के बाद से दलित और आदिवासी छात्र आंदोलन में नई ऊर्जा आई है। हैदराबाद में रहने वाले सामाजिक नृविज्ञानी पी जयप्रकाश राव कहते हैं, हमारे बेहतर अकादमिक संस्थानों के नए मुखर समूह जैसे-जैसे विकसित होते जाएंगे, उनकी आवाज बुलंद होती जाएगी, क्योंकि इन प्रतिष्ठित संस्थानों में वे सबसे मेधावी छात्रों की तुलना में उम्मीद से कम कामयाबी हासिल कर पाते हैं। यह संभवत: अगले दो दशकों तक जारी रहेगा, जब तक कि साधनहीन तबकों की इन नई पीढिय़ों में मुकाबला करने की ज्यादा काबिलियत नहीं आ जाती।
-राजेश बोरकर

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^