छल-कपट की नई गाथा लिखेगा मैहर चुनाव
02-Feb-2016 07:33 AM 1234924

यूं तो त्रिकूटवासिनी मां शारदा की नगरी मैहर देवीधाम व उस्ताद अलाउद्दीन खां की कर्मस्थली के रूप में विख्यात है, लेकिन पिछले कुछ अर्से से मैहर क्षेत्र राजनैतिक रूप से भी कुख्यात हो रहा है। लोकसभा चुनाव के दौरान जिस प्रकार से नैतिकता से पल्ला झाड़कर ऐन मतदान के 48 घंटे पूर्व मैहर कांग्रेस विधायक रहे नारायण त्रिपाठी ने भाजपा का दामन थामा, उससे राजनैतिक विश्वासघात के एक नए अध्याय का सूत्रपात मैहर क्षेत्र में हुआ है। मौजूदा परिदृश्य में एक बार पुन: चुनावी बयार बह रही है और एक बार पुन: नारायण त्रिपाठी चुनावी मैदान में है, लेकिन अब उनका सिंबल बदल गया है और वे कांग्रेसी से भाजपाई हो गए हैं, लेकिन अब उन्हें भी वैसी ही चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जिस प्रकार की चुनौती लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कांग्रेस के सामने पेश की थी। फिलहाल जिस प्रकार की राजनैतिक तिकड़म मैहर क्षेत्र में की जा रही हैं, उससे ऐसा महसूस होने लगा है कि इस मर्तबा मैहर चुनाव छल-प्रपंच की एक नई गाथा लिखेगा।
क्या मैहर क्षेत्र के विकास का दम भरने वाले नेता क्षेत्रीय जनता को नादान समझते हैं? यह सवाल अलग-अलग मुखौटे लगाकर नेताओं के जनता के बीच जाने से उठ रहे हैं। यदि मौजूदा  चुनावी रणबांकुरों पर नजर दौड़ाएं तो भाजपा के प्रत्याशी एक साल पूर्व तक कांग्रेस को श्रेष्ठ पार्टी तो भाजपा को जनहित से खिलवाड़ करने वाली पार्टी बताते थे। यही प्रचारित कर वे कांग्रेस से विधायक भी बने थे, लेकिन लोकसभा चुनाव के ऐन पूर्व विधायक बनाने वाली उसी कांग्रेस को झटका देकर भाजपा का हाथ थाम लिया। आज तक वे क्षेत्रीय जनता के सामने यह स्पष्ट नहीं कर पाए हैं कि उनके भाजपा में जाने से जनता का कौन सा हित हुआ है? अब भाजपा में आकर उन्ही जुमलों का प्रयोग कांग्रेस के लिए शुरू हो गया जिन जुमलों का प्रयोग कभी नारायण त्रिपाठी भाजपा के लिए करते थे। यही कहानी मैहर क्षेत्र के मनीष पटेल ने भी दोहराई। अब तक बहुजन समाज पार्टी की राजनीति करने वाले मनीष पटेल ने पिछले दिनों कांग्रेस ज्वाइन कर ली, जबकि उनका जनाधार बसपा में था। विधानसभा चुनाव में बसपा की टिकट पर उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को कड़ी टक्कर देकर तीसरा स्थान हासिल कर लिया था। वे भी विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को नागनाथ तो भाजपा को सांपनाथ बताकर खूब तालियां बटोरते थे, लेकिन नए चुनावी समीकरण में उन्होंने बसपा के हाथी से उतरने का निर्णय लिया और अब वे कांग्रेस के खेमे में आ गए हैं। मनीष भी क्षेत्रीय जनता को यह नहीं बता पाए हैं कि आखिर बसपा से कांग्रेस में उनके जाने से कौन सा जनहित हुआ है? राजनैतिक विश्वासघात की जब बयार बह रही हो तो भला भाजपा नेता रामनिवास उर्मलिया भी कहां पीछे रह सकते थे। जब उनका हित भाजपा से नहीं सधा तो उन्होंने सायकिल की सवारी करने में देरी नहीं की और समाजवादी पार्टी से टिकट ले आए। अब तक भाजपा का गुणगान करने वाले रामनिवास अब सपा को जनता की पार्टी बता रहे हैं। उपरोक्त राजनैतिक घटनाक्रम बताते हैं कि मैहर क्षेत्र के जनप्रतिनिधि क्षेत्रीय जनता को नादान समझते हैं और जनहित के बजाय स्वहित को तरजीह देते हैं। भाजपा में तवज्जों न मिलने से सपा में गए रामनिवास उर्मलिया साम, दाम, दंड, भेद का प्रयोग कर सपा की टिकट तो ले आए हैं, लेकिन क्षेत्र में उनके पास पार्टी कार्यकर्ता ही नहीं है। हालांकि जिले में सपा का खाता खोलने का श्रेय मैहर विधानसभा क्षेत्र को ही जाता है। जिले को पहला और अंतिम सपा विधायक मैहर विधानसभा क्षेत्र ने ही दिया था और नारायण त्रिपाठी सपा से ही विधायक बने थे। बाद में नारायण ने सपा से नाता तोड़ा और कांग्रेस में गए। कांग्रेस ने विधायक बनाया तो भाजपा में चले गए और अब विधायक बनाने की बारी भाजपा की है। इन परिस्थितियों में रामनिवास उर्मलिया को जीत का दावेदार तो नहीं माना जा रहा है लेकिन राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि रामनिवास वोटकटौव्वा प्रत्याशी साबित होंगे जो भाजपा प्रत्याशी नारायण त्रिपाठी की जीत के मंशूबे पर पलीता लगा सकते हैं।
डगमगा रहा अजय का आत्मविश्वास
विंध्य की कांग्रेसी राजनीति में खासा प्रभाव रखने वाले पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल का राजनैतिक आत्मविश्वास क्या डगमगा रहा है? क्या भाजपा की लगातार चुनावी जीत व मुख्यमंत्री की जनप्रिय छवि से अजय सिंह राहुल राजनैतिक असुरक्षा की भावना से घिर गए हैं? यह सवाल अब आमजन मानस ही नहीं बल्कि कांग्रेसियों के बीच भी कानाफूसी का विषय बना हुआ है।  मैहर चुनाव को लेकर राहुल सिंह द्वारा दिखाई जा रही पालिटिकल स्ट्रेटजी को देखकर राजनैतिक विश्लेषक कुछ ऐसा ही महसूस कर रहे हैं। दरअसल यह उम्मीद लगाई जा रही थी कि अजय सिंह राहुल की लोकसभा चुनाव में हार की नींव रखने वाले नारायण त्रिपाठी को हराने के लिए वे फ्रंट पर आएंगे और बेहतर रणनीति बनाकर कांग्रेस की इस सीट को छिनने नहीं देंगे, लेकिन मैहर चुनाव में अजय सिंह राहुल की औपचारिक संलिप्तता ने राजनैतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया है। माना जा रहा है कि पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल महसूस करने लगे हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता के आगे उनकी रणनीति बौनी पड़ सकती है और उनके नेतृत्व में कांग्रेस की एक और हार उनकी राजनैतिक किरकिरी करा सकती है। संभवत: यही कारण है कि अब तक विंध्य की कांग्रेसी टिकटों के वितरण में मुख्य भूमिका निभाने वाले राहुल ने इस मर्तबा टिकट वितरण का जिम्मा सुंदरलाल तिवारी के हवाले किया ताकि कांग्रेस की हार पर वे जवाबदेही से बच सकें। यह अजय सिंह राहुल का डगमगाया आत्मविश्वास ही है कि मनीष पटेल को कांग्रेस ज्वाइन कराने के बाद भी कांग्रेस टिकट घोषित नहीं कर पाई है और विजय नारायण राय व महेंद्र पटेल जैसे कांग्रेसी अभी भी टिकट की दौड़ में हैं। फिलहाल कांग्रेस प्रत्याशी को लेकर छाएं कुहासे ने क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं को जहां  दिग्भ्रमित कर रखा है, वहीं पूर्व नेता अजय सिंह राहुल का यह औपचारिक
रवैया कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मनोबल को गिरा रहा है।
भाजपा का भितरघात जारी
मैहर के चुनावी समर में अचानक बड़ी तेजी से चर्चा में आई बसपा एक झटके में खामोशी के दायरे में चली गई है। जिस तरीके से अन्य दलों का प्रचार-प्रसार सतह पर पूरी तेजी से नजर आ रहा है वैसी स्थिति बसपा में नजर नहीं आ रही है। हालांकि इस मामले में बताया जा रहा है कि बसपा अपनी तर्ज पर घर-घर अपने वोट बैंकों तक ही पहुंच रही है। उधर भाजपा की तमाम कोशिशों के बाद भी भितरघात रुकता नजर नहीं आ रहा है। हालांकि इसे रोकने भितरघातियों को चिन्हित कर उनके साथ भाजपाईयों को लगा दिया गया है लेकिन यह कवायद भी काम नहीं आ रही है।
जातिगत आधार पर भाजपा-कांग्रेस में बराबर का मुकाबला
उत्तरप्रदेश सीमा से लगे होने की वजह से मैहर में जातिगत वोटिंग होती है। मैहर सीट में करीब 35 हजार ब्राह्मण वोटर हैं जिनको नजर में रखते हुये भाजपा ने दल बदलू के रूप में बदनाम नारायण त्रिपाठी पर दांव खेला है। पटेल (कुर्मी)  भी ब्राह्मणों के बराबर की संख्या में वोटर हैं। इसी को देखते हुये कांग्रेस ने बसपा छोड़कर आये मनीष पटेल को अपना उम्मीदवार बना रही है। ब्राह्मणों, पटेलों के अलावा मैहर विधानसभा में कुशवाह, आदिवासी और साहू समाज के वोटर हैं। इनके बाद अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के वोटरों की संख्या करीब 20-20 हजार, 12-13 हजार कुशवाहा, 8 हजार राजपूत, 8 हजार में वैश्य व अन्य समाज एवं करीब 10 हजार मुस्लिम वोटरों की संख्या है। अगर जातिगत आधार पर देखें तो यहां भाजपा-कांग्रेस में बराबरी का मुकाबला है। मैहर में सवा दो लाख मतदाता अपना विधायक चुनेंगे। मतदान के लिए चुनाव आयोग ने 290 केन्द्र बनाए हैं। जिला निर्वाचन अधिकारी संतोष कुमार मिश्र ने बताया, मैहर में पुरुष मतदाताओं की संख्या 119984 तथा महिला मतदाताओं की संख्या 108554 है। अन्य मतदाताओं की संख्या 8 तथा सर्विस वोटर की संख्या 76 है। इस तरह कुल मतदाताओं की संख्या 2,28,566 है। युवा मतदाताओं की संख्या 67 हजार 171 है। इनमें 18-19 आयु वर्ग के 4068 मतदाता हैं, जिनमें पुरुष 2671, महिला 1396 तथा एक थर्ड जेंडर है।
अपना रहे हथकंडे
कांग्रेस और भाजपा ने जीत के हर हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए हैं। बेशक कांग्रेस अभी अपना प्रत्याशी तय न कर सकी हो लेकिन उसने जीत का जो फार्मूला तैयार किया है, उससे भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बताया जाता है कि कांग्रेस ने मैहर क्षेत्र का एक वोटर्स डाटा बैंक तैयार किया है और उसमें बड़ी सूक्ष्मता से काम किया जा रहा है। मैहर क्षेत्र के मतदाताओं के उन रिश्तेदारों की फेहरिश्त तैयार की जा रही है, जो रिश्तेदार मतों को प्रभावित कर सकते हैं। इसके लिए पंचायत स्तर पर सूची तैयार की गई है। इसके अलावा संगठन ने भाजपा के उन असंतुष्टों की सूची भी तैयार की है जो विभिन्न कारणों से भाजपा से दूरी बनाए हुए हैं। उधर भाजपा मुख्यमंत्री के विकास कार्यो को आधार बनाकर चुनावी जंग में जीत का सपना संजो रही है, मगर नारायण त्रिपाठी की राजनैतिक छवि रोड़ा बन रही है। हालांकि प्रदेश संगठन मंत्री अरविंद मेनन ने असंतुष्टों को साधने के लिए मंत्र दे गए हैं। ये मंत्र कितने प्रभावी होंगे यह तो आगामी 16 फरवरी को तभी पता चल सकेगा जब ईवीएम से मतों का जिन्न बाहर आएगा।

भाजपा में शिवराज ही सबसे बड़े स्टार
दूसरी ओर भाजपा मेंं मैहर उपचुनाव के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही सबसे बड़े स्टार प्रचारक और चेहरा रहेंगे। दूसरे वरिष्ठ नेताओं, मंत्रियों व स्टार प्रचारक भी चुनाव में प्रचार करेंगे, लेकिन संभावित प्रत्याशी नारायण त्रिपाठी के पक्ष में शिवराज ही सबसे बड़े प्रचारक होंगे। अभी भी शिवराज ने ही सबसे अधिक दौरे इस सीट पर किए हैं।
जातिगत आधार पर भाजपा-कांग्रेस में बराबर का मुकाबला
उत्तरप्रदेश सीमा से लगे होने की वजह से मैहर में जातिगत वोटिंग होती है। मैहर सीट में करीब 35 हजार ब्राह्मण वोटर हैं जिनको नजर में रखते हुये भाजपा ने दल बदलू के रूप में बदनाम नारायण त्रिपाठी पर दांव खेला है। पटेल (कुर्मी)  भी ब्राह्मणों के बराबर की संख्या में वोटर हैं। इसी को देखते हुये कांग्रेस ने बसपा छोड़कर आये मनीष पटेल को अपना उम्मीदवार बना रही है। ब्राह्मणों, पटेलों के अलावा मैहर विधानसभा में कुशवाह, आदिवासी और साहू समाज के वोटर हैं। इनके बाद अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के वोटरों की संख्या करीब 20-20 हजार, 12-13 हजार कुशवाहा, 8 हजार राजपूत, 8 हजार में वैश्य व अन्य समाज एवं करीब 10 हजार मुस्लिम वोटरों की संख्या है। अगर जातिगत आधार पर देखें तो यहां भाजपा-कांग्रेस में बराबरी का मुकाबला है। मैहर में सवा दो लाख मतदाता अपना विधायक चुनेंगे। मतदान के लिए चुनाव आयोग ने 290 केन्द्र बनाए हैं। जिला निर्वाचन अधिकारी संतोष कुमार मिश्र ने बताया, मैहर में पुरुष मतदाताओं की संख्या 119984 तथा महिला मतदाताओं की संख्या 108554 है। अन्य मतदाताओं की संख्या 8 तथा सर्विस वोटर की संख्या 76 है। इस तरह कुल मतदाताओं की संख्या 2,28,566 है। युवा मतदाताओं की संख्या 67 हजार 171 है। इनमें 18-19 आयु वर्ग के 4068 मतदाता हैं, जिनमें पुरुष 2671, महिला 1396 तथा एक थर्ड जेंडर है।
अपना रहे हथकंडे
कांग्रेस और भाजपा ने जीत के हर हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए हैं। बेशक कांग्रेस अभी अपना प्रत्याशी तय न कर सकी हो लेकिन उसने जीत का जो फार्मूला तैयार किया है, उससे भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बताया जाता है कि कांग्रेस ने मैहर क्षेत्र का एक वोटर्स डाटा बैंक तैयार किया है और उसमें बड़ी सूक्ष्मता से काम किया जा रहा है। मैहर क्षेत्र के मतदाताओं के उन रिश्तेदारों की फेहरिश्त तैयार की जा रही है, जो रिश्तेदार मतों को प्रभावित कर सकते हैं। इसके लिए पंचायत स्तर पर सूची तैयार की गई है। इसके अलावा संगठन ने भाजपा के उन असंतुष्टों की सूची भी तैयार की है जो विभिन्न कारणों से भाजपा से दूरी बनाए हुए हैं। उधर भाजपा मुख्यमंत्री के विकास कार्यो को आधार बनाकर चुनावी जंग में जीत का सपना संजो रही है, मगर नारायण त्रिपाठी की राजनैतिक छवि रोड़ा बन रही है। हालांकि प्रदेश संगठन मंत्री अरविंद मेनन ने असंतुष्टों को साधने के लिए मंत्र दे गए हैं। ये मंत्र कितने प्रभावी होंगे यह तो आगामी 16 फरवरी को तभी पता चल सकेगा जब ईवीएम से मतों का जिन्न बाहर आएगा।
-सतना से लौटकर सुनील सिंह

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