02-Feb-2016 07:29 AM
1234819
भाजपा और शिवसेना के बीच कलह की खबरे तो लगातार आती रहती हैं, लेकिन पिछले दो साल से जिस तरह के हालात बन रहे हैं उससे दोनों के बीच तीन दशक पुराने गठबंधन में गांठ पड़ गई है और यह गांठ अब मुंबई म्युनिसिपल

कॉर्पोरेशन चुनाव से पूर्व और बड़ी होती जा रही है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि इनकी अंदरूनी कलह से कांग्रेस दोबारा जीवित हो रही है। मुंबई मनपा चुनाव को देखते हुए दोनों दलों के बीच बयानबाजी और तेज होने के आसार नजर आ रहे हैं। इसकी संभावना अब और इसलिए बढ़ गई है कि शिवसेना के मुखपत्र दोपहर का सामनाÓ के पूर्व कार्यकारी संपादक प्रेम शुक्ला भाजपा में शामिल हो गए हैं। प्रेम शुक्ला मुंबई भाजपा अध्यक्ष आशीष शेलार और पार्टी नेताओं की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हुए। प्रेम शुक्ला ने कहा कि वो पार्टी को मजबूत करने के लिए काम करेंगे। साथ ही वो पार्टी में किसी भी तरह की जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार हैं।
गौरतलब है कि 31 दिसंबर को प्रेम शुक्ला ने शिवसेना और उसके मुखपत्र दोपहर का सामनाÓ के कार्यकारी संपादक के पद से इस्तीफा दे दिया था। बताया जा रहा है कि प्रेम शुक्ला पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे से काफी समय से नाराज चल रहे थे। प्रेम शुक्ला उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जनपद के मूल निवासी हैं। पता चला है कि उन्हें भाजपा की राष्ट्रीय इकाई में प्रवेश दिया जाएगा। शुक्ला को राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय कर भाजपा देश के अलावा मुंबई के हिंदी भाषी समाज में भी इस्तेमाल करना चाहेगी। शिवसेना के कई नेता पार्टी छोड़कर राकांपा, कांग्रेस और मनसे में जा चुके हैं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि शिवसेना में दरार पड़ चुकी है? ऐसा ही रहा, तो आने वाले दिनों में मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन चुनाव में पार्टी को भारी नुकसान हो सकता है, जिसे देखकर पहले से ही भाजपा सतर्क है और मनसे के साथ अपनी दोस्ती बनाए रखना चाहती है। इन सबके बीच उद्धव ठाकरे नेे भाजपा को सलाह दी है कि वह गठबंधन धर्म का पालन करे। शिवसेना को भाजपा और मनसे के बीच अंदरूनी गठबंधन का डर सता रहा है। वास्तविकता यह भी है कि शिवसेना बालासाहेब ठाकरे की मृत्यु के बाद से कमजोर होती जा रही है। भाजपा चाहती है कि शिवसेना और मनसे दोनों के साथ उसका संबंध बना रहे। नरेंद्र मोदी का 2002 गुजरात दंगों पर प्रफुल्ल पटेल और सुप्रिया सुले ने पक्ष लिया था और कहा था कि उनको कोर्ट से जब क्लीन चिट मिल गई है, तो उन्हें दोषी ठहराना ठीक नहीं है। इधर शिवसेना को एनसीपी और मनसे के साथ भाजपा की बढ़ती नजदीकियां भी कहीं न कहीं शिवसेना को परेशान कर रही हैं। संजय राऊत ने कहा था कि भाजपा का कोई नेता राज या शरद पवार का समर्थन करता है या मुलाकात करता है, तो इससे गठबंधन प्रभावित हो सकता है। एनडीए के लोगों को बाहरी लोगों की बखान नहीं करनी चाहिए। शिवसेना जहां भाजपा पर लगातार हमले बोल रही है, वहीं भाजपा कह रही है कि हमारा गठबंधन मजबूत है, इसे कोई खतरा नहीं है। लेकिन ऐसा तो नहीं है कि अंदर ही अंदर शिवसेना और भाजपा के बीच दरार पड़ चुकी है?
आमतौर पर यही माना जाता है कि शिवसेना का उदय उत्तर प्रदेश और बिहार के भैया, गुजरातियों और कन्नड़ों खासकर शेट्टिïयों जैसे बाहरी लोगों से स्थानीय मराठी लोगों के हितों की बात करने वाले के तौर पर हुआ। मगर तथ्य यही है कि 1966 से 1980 के दशक के मध्य तक मुंबई और निकटवर्ती ठाणे को छोड़कर मराठियों को बाहरी लोगों से कभी कोई खतरा नहीं दिखा। इसलिए शिव सेना का प्रभाव इन दोनों इलाकों तक ही सिमटा रहा, पुणे, नागपुर और सोलापुर जैसे दूसरे बड़े शहर बाद में इसकी जद में आए। वास्तव में 1980 के दशक में ही शिवसेना को नजर आने लगा था कि मुंबई में भी उसका वजूद सिमटने पर है लेकिन कांग्रेसी खेमे से मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की अफवाहों ने उसे फायदा पहुंचाया। 1985 में बंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के चुनाव में शिवसेना ने इतनी धमाकेदार जीत हासिल की, जो उसे दक्षिण भारतीय विरोधी अपने अभियान के चरम पर भी नहीं मिली थी। अगर यह स्थापित करना हो कि शिवसेना मुख्यत: शहरों की पार्टी रही तो इसके सुबूत मिल जाएंगे। बीएमसी को अपने कब्जे में लेकर शिवसेना ने अपनी सियासी ताकत बढ़ाना शुरू की और इसके लिए मुंबई और उसके आसपास के इलाकों को निशाना बनाया गया, जहां विकास की गतिविधियां निजी कवायद के तौर पर होने लगी। कई सेवाएं मुहैया कराने में राज्य को दरकिनार किया जाने लगा। शिव सैनिकों ने इस खाई को भरा और यह लोगों को भ्रष्टाचार से निजात दिलाने के अलावा कई तरीके से संरक्षण दिया। इससे महाराष्ट्र में शिवसेना का जनाधार बढ़ा। लेकिन अब शिवसेना को एक साथी की जरूरत है जो भाजपा के रूप में उसके साथ है, लेकिन दोनों के बीच बढ़ती तकरार इस गठबंधन के लिए अशुभ संकेत है।
-मुंबई से बिन्दु माथुर