सरकार से नाराज है संघ...?
16-Jan-2016 11:27 AM 1234811

देश में नरेंद्र मोदी की सरकार बनवाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। केंद्र में सरकार बनाने के लिए जितनी भाजपा ने मेहनत नहीं की है, उससे अधिक संघ ने मेहनत की है। लेकिन संघ के वरिष्ठ लोग इन दिनों

थोड़ा दुखी हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि केंद्र सरकार उनके मन मुताबिक नहीं चल रही है। इस बात का संकेत संघ के नेताओं ने मप्र की व्यावसायिक राजधानी इंदौर में हुए विश्व संघ शिविरÓ दिए। हालांकि इसी शिविर में  संघ ने भाजपा संगठन और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की सराहना की।
इस विश्व संघ शिविरÓ में 45 देशों के करीब 700 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। जहां कई देशों से आए संघ के नेताओं ने मोदी की सराहना की वहीं संघ के कुछ अनुशांगिक संगठनों के नेताओं ने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल भी उठाया। दरअसल, केंद्र सरकार कुछ अलग तरह से चल रही है और संघ के लोग इसे कुछ अलग तरह से चलते देखना चाहते थे। उन्हें लगता है कि उन्होंने जिस आशा में जी-जान लगाकर सरकार बनाई, सरकार उससे कुछ अलग दिशा पकड़ चुकी है। सरकार ही नहीं भारतीय जनता पार्टी भी ऐसी दिशा पकड़ चुकी है जहां संघ का रास्ता कभी नहीं मिलता। संघ के लोग महसूस करते हैं कि जहां सारी दुनिया संघ को विश्व का सबसे बड़ा अनुशासित संगठन मानती है, वहीं कुछ लोग इसे आईएसआईएस का हिंदू स्वरूप भी कहने लगे हैं। लेकिन उन्हें इसकी चिंता नहीं है। उन्हें इस बात का गर्व है कि जब भी राष्ट्रीय आपदा आती है, तब उनके स्वयंसेवक वहां खड़े दिखाई देते हैं। उदाहरण के रूप में वे चेन्नई की बाढ़ को बताते हैं। जहां सबसे पहले उनके स्वयंसेवक लोगों को बचाते या सहायता पहुंचाते दिखाई दिए। विश्व संघ शिविरÓ आए लोगों ने इस बात का भी गर्व है कि भाजपा की सरकार कहीं रहे या न रहे, संघ के स्वयंसेवक राष्ट्रीय आपदा के समय हर जगह मुस्तैद रहते हैं। उन्हें इस बात का गर्व है कि सभी धर्मों और पथों को मानने वालों ने कभी न कभी उनकी प्रशंसा की है। इस मामले में संघ के एक पदाधिकारी कहते हैं कि संघ अगर सरकार के कार्यों की आलोचना कर रहा है तो यह अच्छी बात है। इससे आम आदमी को ही फायदा होगा, क्योंकि सरकार निरंकुश नहीं हो पाएगी।
वहीं वह कहते हैं कि विश्व संघ शिविरÓ में अमित शाह का अचानक यहां आना और संघ के नेताओं से करीब दो घंटे तक बतियाना या अपनी सफाई देना इस बात की ओर इशारा कर रही है कि मोदी शाह की जोड़ी को आरएसएस ने भी हरी झंडी दे दी है और अब नरेद्र मोदी की संघ नेताओं से मंत्रणा के बाद अमित शाह के नाम की दोबारा घोषणा हो सकती है। अमित शाह की इस यात्रा से जहां केन्द्रीय पार्टी और संघ की एकजुटता को जाहिर करना माना जा रहा है। वहीं अमित शाह ने नरेन्द्र मोदी की उस दुविधा का निराकरण संघ नेताओं से कर लिया कि वे अपने मंत्रीमंडल के फेरबदल में किन नए चेहरों को शामिल करेंगे और किसको हटाएंगे। मोदी अपने केबिनेट में फेरबदल करने की तैयारी कर रहे हैं। वहीं मध्य प्रदेश की बीजेपी की अंदरूनी राजनीति से भी अमित शाह की इस यात्रा को राजनीति से जोड़ कर देखा जा रहा हैं। अमित शाह की इंदौर यात्रा के दौरान केवल पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ही साथ थे। मध्यप्रदेश में कैलाश को ही अमित ने अपना एजेंट मानकर रखा है। अमित शाह की इंदौर यात्रा से कैलाश ने मीडिया को भी दूर रखा है और तो और उन्होंने इस पर भी नजर रखी कि कौन नेता अमित शाह से मिला है कहीं उन्हें यह डर तो नहीं था कि मेरे नंबर कम हो जाएंगे। इसी के साथ प्रदेश में भी नये अध्यक्ष  का चुनाव हो गया है और इसमें शिव की तिकड़ी ने दोबारा संगठन की जवाबदारी अपने चहेते नंदूभैय्या को भारी विरोध के बाद दिला दी है।
अब जब कि देश में राम मंदिर का मुद्दा भी उभर रहा है। इस साल राज्यों के विधानसभा के चुनाव सामने हैं। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा भी है और राज्य सभा में पार्टी का बहुमत बढ़ाना भी। ऐसे में नरेंद्र मोदी सरकार और आरएसएस  का तालमेल और भी जरूरी हो जाता है, जब सरकार विकास सबका साथ का नारा ले कर चल रही हो और आरएसएस हिन्दुत्त्व का। पार्टी अध्यक्ष तो संघ की सहमति के बगैर तो बन ही नहीं सकता, साथ ही इस मुहर से पार्टी में ये सन्देश तो गया ही कि संघ आज भी मोदी शाह की जोड़ी पर विश्वास जता रहा है। यानी पार्टी में इनका विरोध करने वाले को संघ की नारजगी तो झेलना ही होगी।
सूत्र बताते हैं कि संघ के वरिष्ठ लोगों का दर्द यह है कि जब-जब भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण सत्ता मिली, तब-तब भारतीय जनता पार्टी भटकी। भाजपा में भेजे गए संघ के लोग जान-बूझकर भटके, अनजाने में भटके, मजबूरी में भटके, लेकिन जब भी भटके उनका चरित्र देश के लोगों को अचानक कांग्रेस के मूलभूत चरित्र के समान दिखाई दिया। संघ के लोगों का कहना है कि संघ द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों पर केंद्र में अब तक दो सरकारें आईं। पहली अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, जिसे वे अस्सी प्रतिशत अपनी मानते हैं, क्योंकि वह गठबंधन सरकार थी। दूसरी नरेन्द्र मोदी की सरकार है, जो सौ प्रतिशत संघ की कोशिशों की वजह से सत्ता में आई और जिसके पास पूर्ण बहुमत है। संघ के लोग आपस में ही सवाल उठा रहे हैं कि क्या ये दोनों सरकारें, जिन्हें हमारी सरकार माना जाता है, हमारे उद्देश्यों को पूरा कर पाईं या उनकी स्थिति चिराग तले अंधेरे वाली हो गई है। संघ जलता रहे, दिये की तरह उजाला करता रहे और उसके नीचे लोग उसके उद्देश्यों के विपरीत सारे उल्टे काम करते रहें। नरेन्द्र मोदी के डेढ़ साल के शासनकाल के दौरान पाकिस्तान को गालियां देने से लेकर पाकिस्तान से हाथ मिलाने तक, वो सभी काम हुए, जो संघ की परिभाषा और मान्यता के विपरीत थे। संघ का उद्देश्य था कि भारतीय समाज जो वस्तुएं बनाता है, उन्हें संरक्षण मिले, जिससे जनता को काम या रोजगार मिले। संघ का उद्देश्य था कि सभी लोग सामाजिक समरसता से चलें, हिंदू विचार चिंतन आगे बढ़े, अयोध्या का राम मंदिर बने, पूरा देश एक हो और कॉमन सिविल कोड हो। धारा 370 हटे और कश्मीर देश कीमुख्य धारा में आए। विस्थापित कश्मीरी पंडितों को पुन:स्थापित किया जाए, लेकिन मोदी सरकार इनके विपरीत काम कर रही है। संघ के लोग कहते हैं कि मोदी ने देश में बने उत्पादों को सहारा देने और स्वदेशी माल को संरक्षण देने की जगह 15 क्षेत्रों में विदेशी निवेश (एफडीआई) के रास्ते खोल दिए। उन्होंने देश में यूरोपीय देशों सहित संपूर्ण पश्चिमी देशों के लोगों के  आने के सारे दरवाजे खोल दिए। संघ के लोगों को इस बात का दु:ख है कि जो काम कांग्रेस 65 साल में नहीं कर पाई या मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियां सन 1990 से 2014 तक जिस चीज को करने में हिचकती रहीं और नहीं कर पाईं, उसे नरेन्द्र मोदी और अरुण जेटली की सरकार ने डेढ़ साल में आसानी से कर दिया। संघ के लोग इस बात से आश्वस्त हैं कि मोदी की सरकार उनके परिभाषित उद्देश्यों के अनुरूप काम नहीं कर रही है। पूरा संघ इससे असंतुष्ट है। संघ के लोग इसके उदाहरण के रूप में संघ प्रमुख के बयानों को बताते हैं। वे कहते हैं कि संघ प्रमुख ने सिलेसिलेवार बयान अपने मन की व्यथा प्रकट करने के लिए दिए।
नंदू भैया को मिला ताज...चौथी बार भी शिव का राज
तमाम कयासों को दरकिनार करते हुए जब मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद पर नंदकुमार सिंह चौहान दूसरी बार निर्वाचित हुए तो इससे एक बात तो साफ हो गई की शिवराज सिंह का रसूख भाजपा में किसी से कम नहीं है। क्योंकि इस बार भी प्रदेशाध्यक्ष के लिए कई नेता दावेदार थे। लेकिन शिवराज ने सबको मैनेज करते हुए नंदकुमार सिंह चौहान को निर्विरोध रूप से दूसरी बार मध्यप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनवा दिया और समारोहपूर्वक पदभारग्रहण करवाया। इस मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज सहित प्रदेश भाजपा के कई दिग्गज नेता समारोह में शामिल हुए। नंदकुमार सिंह चौहान की ताजपोशी के बाद सभी नेताओं ने एक स्वर में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चौथी बार प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाने का संकल्प लिया।  अब नंदू भैय्या के सामने अपनी टीम के गठन की जिम्मेदारी है। नई टीम में कई नए चेहरे दिखाई देंगे। कुछ पदाधिकारियों की छुट्टी होगी, तो कतिपय नेताओं को निगम-मंडल में एडजेस्ट किया जाएगा। इसमें युवा एवं अनुभवी लोगों के तालमेल की संभावना है। अगले महीने तक चौहान अपनी कार्यसमिति की घोषणा करेंगे। उन्होंने फिलहाल मौजूदा टीम को पूर्ववत काम करते रहने को कहा है। अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के फौरन बाद तकनीकी रूप से पुरानी कार्यसमिति निष्प्रभावी हो जाती है, इसलिए चौहान ने अपनी पुरानी टीम को आगामी बदलाव तक काम करते रहने को कह दिया है। संभवत: मैहर चुनाव के बाद चौहान अपनी नई टीम का गठन करेंगे। टीम के भावी स्वरूप को लेकर सत्ता-संगठन के वरिष्ठ नेताओं से राय-मशविरा के दौर भी चल रहे हैं।
शाह को नया तोहफा, फिर लगी नाम पर मुहर..!
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ही पार्टी के अगले अध्यक्ष होगें, इस बात की मुहर अब इंदौर में लग ही गई। ये मुहर किसी ओर ने नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने लगाई है। हालांकि इसकी विधिवत घोषणा तो बाद में ही होगी, मगर इंदौर में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से लेकर भैयाजी जोशी तक से की गई अमित शाह की एकांत मुलाकात का यही मतलब निकाला जा रहा है। पहले दिल्ली, फिर बिहार उसके बाद मध्य प्रदेश की लोकसभा उपचुनाव फिर गुजरात के ग्रामीण क्षेत्र, मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ के नगरीय निकाय के प्रतिकूल चुनाव परिणामों के बाद इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल होने वाले राज्यों  के विधानसभा चुनाव में हार का मुहं नही देखना चाहेंगे और न ही अमित शाह लगातार तीसरे राज्य की हार का सेहरा अपने माथे बांधने के इच्छुक होगें, लेकिन हर कयास को झुठलाते हुए इंदौर में आयोजित आरएसएस के  विश्व संघ शिविरÓ  में अमित शाह की संघ के शीर्ष नेताओं की मंडली से की गई भेट से ये माना जा रहा है कि संघ ने  बीजेपी के अध्यक्ष के नाम पर मुहर लगा ही दी। वैसे भी पार्टी के अध्यक्ष के लिए अभी तक किसी गुट या नेता ने खुलकर दावेदारी  पेश नही की है। उधर प्रधानमंत्री अपनी पसंद में भी अमित शाह के नाम की हरी झंडी दे चुके हैं। पार्टी और संघ के खेमे की मानें तो इस समय जब प्रधानमंत्री देश ही नही विदेश में अपने दौरे के साथ देश की पैरवी कर, एक सकारात्मक माहौल बनाने में जुटे हैं, तो संघ भी अपने एजेंडे और विचारधारा को विश्व में प्रसारित करने में नहीं चूकना चाहता।
-इंदौर से सुनील सिंह

 

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