02-Feb-2016 07:00 AM
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बुंदेलखंड न केवल अपनी बदहाली बल्कि यहां के राजनीतिक पाखंड के लिए भी चर्चा में बना रहता है। स्थानीय नेताओं के साथ ही केन्द्रीय नेता भी यहां अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने आते हैं। उत्तरप्रदेश में आगामी साल होने वाले विधानसभा

चुनाव को देखते हुए एक बार फिर से नेताओं को बुंदेलखंड के निवासियों का दुख-दर्द नजर आने लगा है। बिलखते बुुंदेलखंड में राजनैतिक रोटी सेंकने का सिलसिला शुरू हो गया है। इसी कड़ी में कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने एक रोड शो कर यहां के बेहाल लोगों का हम दर्द बनने का प्रदर्शन किया। इस दौरान उन्होंने न केवल केंद्र सरकार को खरी-खोटी सुनाई बल्कि यूपीए सरकार द्वारा दिए गए बुंदेलखंड पैकेज के भ्रष्टाचार की गाथा भी बताई।
करीब 9 साल पहले भी इसी तरह राहुल ने सूखा-भुखमरी और अकाल जैसे संकटों से जूझ रहे बुंदेलखंड में एक रोड शो किया था। उन दिनों राहुल के राजनीतिक दौरे की लिस्ट में बुंदेलखंड सबसे ऊपर था। इसके बाद राहुल ने बुंदेलखंड में ताबड़तोड़ कई दौरे किए। लेकिन यह राजनीति का रोड शो खूब चर्चित हुआ था। इस बीच काफी कुछ बदला, लेकिन बुंदेलखंड आज भी गरीबी, भुखमरी और सूखा जैसे संकटों से जूझ रहा है। किसानों के सिर पर कर्ज का बोझ और ज्यादा बढ़ गया है। अकेले बांदा जिले में कुल 1 लाख 22 हजार 262 किसानों के सिर पर 19 बैंकों का 13 अरब 96 करोड़ 44 लाख का कृषि ऋण है। मंडल को देखे तो कर्ज का यह आंकड़ा करीब 25 अरब के आसपास होगा। साहूकारों की जगह अब बैंकों ने ले ली है। अदालतों के डर से बैंक वसूली के नोटिस बिना दिए ही किसानों के घर पहुंचकर धमकाने लगे हैं। परेशान किसानों की अकाल मौतें जारी हैं। लेकिन सरकारें इन मौतों को उनकी बदहाली और कर्ज से जोड़कर मानने को तैयार नहीं हैं। 72 सौ करोड़ के बुंदेलखंड पैकेज का बंदरबांट हो चुका है। किसानों को कुछ मिला या ना मिला हो लेकिन सभी जिलों में बड़ी-बड़ी अनाज की मंडियां बनवा दी गई हैं। अनाज है नहीं और मंडियां खड़ी अन्नदाता को मुंह चिढ़ाती नजर आ रही हैं। जमीनें बर्बाद हुईं और पैसा बर्बाद हुआ। रही सही कसर पुरानी योजनाओं में पैकेज को खपाने से कर दी गई। इन हालातों में 9 साल बाद राहुल फिर बुंदेलखंड में रोड-शो को लेकर चर्चा में हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार रोड शो को लेकर यहां की गरीब जनता कम और खुद पार्टी कार्यकर्ता ज्यादा उत्साहित हैं। बुंदेलखंड में राजनैतिक सरगर्मियां जितनी रहीं, उतना फायदा बुंदेलखंड को नहीं मिला। कांग्रेस के भानु सहाय कहते हैं कि राहुल गांधी ने कोशिश की, लेकिन दूसरे लोगों ने इसे राजनैतिक प्रयोगशाला बना दिया। यहां के विकास को कदम आगे नहीं बढ़ाए। बुंदेलखंड पहाड़ी इलाका है। लंबी पर्वत श्रृंखलाओं के इस इलाके में खनन किया जाता है। अवैध खनन यहां बड़ी समस्या बन चुका है। बांदा में नदी के बहाव को रोक माफियाओं ने पुल बना दिया और इस पर से खनन करने जैसा मामला सामने आ चुका है। अनेक पहाड़ों को काट मैदान में तब्दील कर दिया गया। भू-गर्भ, जल विभाग के एमके श्रीवास्तव इसे बेहद घातक बताते हैं। पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री रहे राहुल गांधी के करीबी प्रदीप जैन आदित्य कहते हैं कि राहुल गांधी ने प्रयास किया, लेकिन योजनाओं का क्रियान्वन राज्य सरकारों ने नहीं किया। बुंदेलखंड के लिए विकास प्राधिकरण राज्य सरकारों ने नहीं बनने दिया। मॉनिटरिंग कमिटी भी नहीं बनने दी। राज्य सरकारों ने विकास नहीं होने दिया। खनन, सिंचाई में भ्रष्टाचार जैसी गतिविधियों में सरकारें अब भी व्यस्त हैं। झांसी के समाजसेवी जीतेंद्र तिवारी सवाल करते हैं कि आखिर सरकारों ने बुंदेलखंड की नब्ज को पकडऩे की कोशिश क्यों नहीं की। वह कहते हैं कि बुंदेलखंड चर्चित रहता है, लेकिन नेताओं ने चर्चा में रहने के लिए ही बुंदेलखंड का इस्तेमाल किया।
पैकेज मिला, नतीजा नहीं
राहुल गांधी ने 2009 में 7,266 करोड़ का पैकेज बुंदेलखंड को दिलाया। इतनी बड़ी राशि मदद के लिए पहली बार दी गई। उम्मीद थी कि बुंदेलखंड बदलेगा, लेकिन स्थिति और खराब हो गई। भ्रष्टाचार इसकी बड़ी वजह रहा। भ्रष्टाचार के चलते पैकेज का लाभ लोगों को नहीं मिला। कूप निर्माण योजना सहित कई योजानाएं विफल हो गई। कुछ दिन पहले ही कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी ने माना था कि पैकेज की मॉनिटरिंग कांग्रेस नहीं कर सकी। इसलिए असफलता मिली। इसी तरह राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली धनराशी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है।
-जबलपुर से धर्मेंंद्र सिंह कथूरिया