02-Feb-2016 06:56 AM
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मध्यप्रदेश विधानसभा का बजट सत्र 23 फरवरी से शुरू होगा। इस सत्र के दौरान सबकी निगाह वित्त मंत्री जयंत मलैया द्वारा पेश किए जाने वाले बजट पर होगी। संभावना जताई जा रही है कि सरकार अब दिल्ली की तर्ज पर अपने विधायकों

का वेतन व भत्ता लगभग दोगुना करने की तैयारी में है। सरकार ने यह निर्णय ऐसे समय लिया है जब प्रदेश पौने दो लाख करोड़ के कर्ज में डूबा है और किसान सूखे की विकराल स्थिति से जूझ रहे हैं। इस स्थिति के चलते प्रदेश का खजाना खाली हो चुका है। इसके बाद भी सरकार ने विधायकों के लिए अपना खजाना खोलने की पूरी तैयारी कर ली है।
सत्र में मंत्री-विधायकों के वेतन-भत्ते संशोधन विधेयक भी प्रस्तुत किया जा सकता है। वित्त मंत्री के पास इसकी फाइल पहुंच चुकी है। मुख्यमंत्री ने भी वेतन-भत्ते बढ़ाने को सहमति दे दी है। पहली बार मंत्री-विधायकों के वेतन-भत्तों को महंगाई भत्ते से जोड़ा जाएगा। इसके बाद बार-बार विधानसभा में संशोधन विधेयक लाने की जरूरत नहीं रहेगी। वैसे वित्त विभाग प्रदेश की आर्थिक स्थिति को लेकर प्रस्ताव पर असहमति जता चुका है, पर विधायकों के दबाव के चलते उन्हें बढ़े हुए वेतन का तोहफा मिल सकता है। मध्यप्रदेश विधानसभा में सदस्यों की संख्या 230 है और एक विधायक नामांकित है, इस तरह इनकी संख्या 231 है। अभी विधायकों का मूल वेतन 10 हजार रुपए है, जो 20 हजार हो जाएगा। निर्वाचन भत्ता भी 25 हजार से बढ़ाकर 50 हजार किया जा रहा है। आगामी विधानसभा के बजट सत्र में इस संबंध में प्रस्ताव लाया जाएगा, बढ़े हुए वेतन का फायदा 1100 पूर्व विधायकों को भी मिलेगा। वहीं एक अप्रैल से विधायकों की निधि भी बढ़ जाएगी, विधायकों को अभी क्षेत्र विकास के लिए हर साल 77 लाख रुपए और 3 लाख रुपए स्वेच्छानुदान के मिलते हैं। अब यह राशि बढ़ाकर डेढ़ करोड़ रुपए की जा रही है। उम्मीद है कि नए वित्तीय वर्ष से यानि अप्रैल 2016 से विधायकों को बढ़े हुए वेतन का लाभ मिलेगा।
बजट सत्र में मध्यप्रदेश सरकार 2016-17 के लिए बजट पेश करेगी। ये सवा लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का हो सकता है। बताया जा रहा है कि बजट में इस बार स्थापना व्यय में काफी वृद्धि होगी। दरअसल, अध्यापकों को छठवां वेतनमान, संविदा कर्मियों के मानदेय में बढ़ोतरी के साथ रोजगार सहायकों को अतिरिक्त राशि देने जैसे कदमों के लिए प्रावधान किए जाएंगे। वहीं, योजना व्यय में 10 हजार करोड़ रुपए की वृद्धि के प्रस्ताव हैं। बताया जा रहा है कि वित्त विभाग ने समस्त योजनाओं के लिए 60 हजार करोड़ रुपए की सीमा राज्य योजना आयोग को दी है, लेकिन विभागों के प्रस्ताव 72 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है, जबकि केंद्रीय मदद 28 हजार करोड़ से घटकर 15 हजार करोड़ हो गई है। आयोग के अधिकारियों का कहना है कि वित्तीय संसाधन सीमित हैं और विभागों ने सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, कृषि, ग्रामीण विकास, वन, उद्योग, सिंचाई के लिए योजना सीमा से बढ़ाकर प्रस्ताव दिए हैं। अब मुख्यमंत्री के सामने सभी प्रस्ताव रखे जाएंगे। इसके बाद ही तय होगा कि किसे कितनी राशि मिलेगी। सूखे के कारण सरकार के खजाने पर बुरा असर पड़ा है जिसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी खुद स्वीकार कर चुके हैं। केंद्र से मदद न मिलने के कारण किसानों को मुआवजा देने के लिए सरकार खुद ही अपना खजाना खाली कर रही है। हालांकि, अब करीब 2300 करोड़ की मदद सरकार को मिली है, लेकिन केंद्र सरकार से 4500 करोड़ का पैकेज मांगा गया था। ऐसे में शिवराज सरकार को कमाई के नए-नए रास्ते भी खोजने पड़ रहे हैं। इसी के चलते पिछले दिनों पेट्रोल-डीजल के दाम भी बढ़ा दिए गए और अब सरकार बजट में कई ऐसे कर लगाने की तैयारी कर रही है ताकि खाली खजाने को भरा जा सके। यानी आगामी बजट में जहां माननीयों का मान बढ़ेगा वहीं जनता टैक्स के बोझ से हलाकान होगी।
सरकार का हर दांव पड़ रहा उल्टा
वित्त मंत्री जयंत मलैया ने भी माना है कि राज्य की माली हालत ठीक नहीं है। शायद यही कारण है कि सरकार ने जनता की भारी नाराजगी के बाद भी पेट्रोलियम पदार्थों पर वैट की दर बढ़ा दी उसके बाद भी हालात नहीं सुधरे, डीजल और पेट्रोल के बड़े ग्राहकों ने मध्यप्रदेश से मुंह मोड़ लिया। मप्र से गुजरने वाले ट्रकों ने प्रदेश की सीमा पार करके डीजल लेना शुरू कर दिया। इसके चलते राज्य सरकार वैट बढऩे से फायदा होने की बजाय साल की आखरी तिमाही में करीब 200 करोड़ का घाटा होने की आशंका है।
-अजयधीर