02-Feb-2016 06:53 AM
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बिहार के बक्सर जिले के एक चिकित्सक के बेटे प्रशांत किशोर देश की राजनीति की दिशा तय करने करने वाले बन जाएंगे किसी ने सोचा भी नहीं था। डॉ. श्रीकांत पांडे के इस पुत्र की काबिलियत को सबसे पहले नरेंद्र मोदी ने पहचाना और
उनके इस चुनाव सलाहकार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने कब्जे में लेकर मोदी को बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हीं के हथियार (किशोर की सलाहियत) से मात दी। अब प्रशांत किशोर की सलाहियत का दायरा बढ़ गया है, इसलिए चुनौतियों में भी इजाफा होना तय है। अभी तक वो चुनावी मुहिम की रणनीति पर सलाहकार हुआ करते थे। अब वो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विकास की नीतियों और उन पर अमल के तौर तरीकों पर औपचारिक तौर पर अपनी राय देंगे। अब तक वो चुनावी राजनीति की दशा और दिशा तय करते रहे हैं अब सरकार के लिए नीतियों और उनके क्रियान्वयन में भी उनकी भूमिका रहेगी। उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल होगा, लेकिन वो कैबिनेट की मीटिंग में शामिल नहीं होंगे।
नीतीश के लिए प्रशांत चुनाव से पहले ही नहीं उसके बाद भी लगातार काम करते रहे हैं। चुनावी मुहिम के दौरान प्रशांत का रोल सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रहा कि कहां-कहां पोस्टर और बैनर लगेंगे या फिर उन पर क्या स्लोगन लिखा जाएगा। मीडिया में आई खबरें और चर्चाएं बताती हैं कि उम्मीदवारों के चयन तक में उनका सीधा दखल रहा। ऐसे कई नेता रहे जिन्हें उनके पैरामीटर में फिट नहीं होने के चलते टिकट नहीं मिला। ये सब भी इतना अहम नहीं था। गठबंधन के लिए सीटों के बंटवारे पर जब-जब पेंच फंसा प्रशांत ने ही मामला सुलझाया। लालू और नीतीश के बीच वो हर कदम पर महत्वपूर्ण बने रहे। लालू को पता था कि नीतीश के लिए प्रशांत काम कर रहे हैं, मगर उन्हें ये भी समझ आ रहा था कि गठबंधन के इंटरेस्ट में प्रशांत की बातों को किसी पूर्वाग्रह के चलते नजरअंदाज करना महंगा पड़ सकता है।
चुनाव के बाद प्रशांत ने नीतीश के लिए असम का दौरा किया। शपथ लेने से पहले से ही नीतीश असम में महागठबंधन की कोशिश में जुटे रहे - और इसमें भी उन्होंने प्रशांत की मदद ली। कुल मिलाकर देखें तो प्रशांत किशोर अब नीतीश कुमार के चीफ ट्रबल-शूटर होंगे - पद का नाम और जॉब रिस्पॉन्सिबिलिटी की भाषा जो भी हो। इसके साथ ही पंजाब में कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कैप्टन अमरिंदर सिंह की चुनावी मुहिम प्रशांत की ही टीम संभाल रही है। वैसे तो मैदान में मौजूदा मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और बीजेपी गठबंधन भी होगा, लेकिन असली लड़ाई फिलहाल कैप्टन और केजरीवाल के बीच मानी जा रही है जो एके बनाम पीके के नाम से सुर्खियों में है। अगर पंजाब में कैप्टन अमरिंदर को जीत हासिल होती है तो ये प्रशांत किशोर की हैट्रिक होगी। वैसे नतीजा जो भी हो प्रशांत के लिए ये असाइनमेंट खुद उनके करियर में बड़ा रोल निभा सकता है। फिलहाल प्रशांत के दोनों हाथों में लड्डू है। एक तरफ वो कैप्टन का कैंपेन संभाल रहे हैं तो दूसरी तरफ
उन्हें नीतीश सरकार में सलाहकार बना दिया गया है। अगर कहीं पंजाब के नतीजे लोक सभा और बिहार जैसे नहीं होते तो? तो फुल टाइम राजनीति का ऑफर तो उनके पास है ही। चर्चा तो ये है ही कि जेडीयू कोटे से उन्हें राज्य सभा भेजा जा
सकता है!
अब सवाल ये होगा कि खुद प्रशांत का रुझान किस ओर है? क्या वो चुनावी रणनीतिकार ही बने रहना चाहते हैं या फिर फुल टाइम राजनीति का हिस्सा होना चाहते हैं? मोदी के चुनाव जीत जाने के बाद खबर आई थी कि प्रशांत कोई बड़ी जिम्मेदारी या बड़ा ओहदा चाह रहे थे। लेकिन पार्टी में कई लोगों को ये मंजूर न था। ऐसी खबरों में ये बातें भी आईं कि नतीजों के बाद प्रशांत बेकाबू से होते जा रहे थे। बीजेपी के जो नेता प्रशांत को इस नजरिये से देखते थे वो उनके कट्टर विरोधी बन गये और फिर बात नहीं बनी। प्रशांत अपना डेरा डंडा लेकर चलते बने। अरविंद केजरीवाल आंदोलन के रास्ते राजनीति में आए हैं और प्रशांत किशोर बतौर विशेषज्ञ राजनीति में दाखिला ले रहे हैं। दोनों के अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं।
प्रशांत की चुनौतियां
फिलहाल नीतीश को प्रशांत की जरूरत है। इसलिए बदले में उन्हें बहुत कुछ मिल सकता है। प्रशांत ने नीतीश के लिए वही काम किया जो वो मोदी के लिए कर चुके थे, लेकिन बीजेपी में उनकी बात नहीं बनी। लेकिन एक्सचेंज पर आधारित ये रिश्ता कितना लंबा चलेगा, वो भी राजनीति में? किसी भी खिलाड़ी या कप्तान के लिए हर मैच जीतना मुश्किल नहीं बिलकुल नामुमकिन होता है। जरूरी नहीं कि प्रशांत उस अपेक्षा पर हमेशा खरे उतर पाएं जो नीतीश को है। राजनीति में बने रहने के लिए किसी भी नेता के लिए जनाधार जरूरी होता है। मनमोहन सिंह से बेहतर इसकी मिसाल कौन हो सकता है? एक कोच ओलंपियन तो बना देता है लेकिन अगर मेडल जीतने की बारी आए तो जरूरी नहीं कि वो पा सके। प्रशांत को चुनाव जिताने का अनुभव तो हो चुका है, लेकिन अब तक खुद वो मैदान में नहीं उतरे हैं। अरविंद केजरीवाल ने बहुत ही कम समय में अपना जनाधार सबके सामने ला दिया है। प्रशांत किशोर को भी कम से कम अपने लिए वैसा ही जनाधार बनाना होगा। एके के बाद पीके की पॉलिटिक्स की सबसे बड़ी चुनौती यही है।
-कुमार विनोद