लोग स्मार्ट नहीं और हो रही है स्मार्ट सिटी की बात
18-Jan-2016 06:38 AM 1234791

आजकल स्मार्ट सिटी शब्द हर किसी की जुबान पर है। पहले चरण में अगर शहर स्मार्ट शहरों की सूची में शामिल कर लिया गया है तो लोग आशान्वित हैं कि अब जल्दी ही उनका जीवन बदलने वाला है और जो शहर इस लिस्ट में जगह नहीं बना पाए हैं, वहां के निवासी इस बात को लेकर अफसोस जता रहे हैं कि उनको कौन सी सुविधाएं नहीं मिलने वाली हैं। सरकार और नगर निगम द्वारा इस दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन स्मार्ट सिटी की परिकल्पना तभी साकार हो पाएगी जब लोग स्मार्ट होंगे। राजधानी भोपाल के जिस शिवाजी क्षेत्र को स्मार्ट सिटी बनाने की योजना है वो क्षेत्र और वहां के लोगों की कार्यप्रणाली को देखने के लिए जब राष्ट्रीय पाक्षिक अक्स की टीम गई तो यह देखकर आश्चर्य हुआ कि स्मार्ट सिटी की वकालत करने वाले लोग कितने अनस्मार्ट हैं। क्षेत्र में जगह-जगह सड़क पर कचरा फैला हुआ था। दीवारों, सड़कों और गलियों में पानी और गुटखे की पीक फैली हुई थी। ऐसे में स्मार्ट सिटी की कल्पना कैसे की जा सकती है।
हम जानते हैं कि इक्कीसवीं सदी तकनीक की है। आज हर जगह स्मार्ट फोन, स्मार्ट कार्ड और स्मार्ट सिटी जैसे शब्द पढऩे-सुनने को मिल जाते हैं। इन दिनों सबसे अधिक चर्चा स्मार्ट सिटी की है। स्मार्ट सिटी निश्चित रूप से बिजली वितरण, सीवेज सिस्टम, सड़क, पार्किंग, सार्वजनिक परिवहन, यातायात व्यवस्था, रोजमर्रा के सरकारी कामकाज पर बड़ा असर डालेगा और हर सुविधा व व्यवस्था एक नेटवर्क से जुड़ी होगी। स्मार्ट सिटी एक तरह से भविष्य के आधुनिक शहर हैं, जो नई तकनीक और सुविधाओं से लैस होंगे। यह मोदी सरकार का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है, जो अब मूर्त रूप लेने की दिशा में बढ़ रहा है। लेकिन क्या हम स्मार्ट सिटी में रहने लायक हैं। यह सवाल भी उठने लगा है।
ये सच है कि स्मार्ट लोग ही स्मार्ट शहर बनाते हैं। आज के शहरों की स्थिति सुधारने में लोगों की भागीदारी बेहद अहम है, लेकिन अभी हमारे शहर बेहद बेतरतीब बसे हैं, जहां अपराध, ट्रैफिक जाम, बिजली-पानी की किल्लत, सडकों पर आवारा पशु, अतिक्रमण और मलिन बस्तियां, पान-गुटखा खाकर थूकते लोग और मौसम के बदलते ही होने वाली बीमारियां आदि बड़ी समस्या हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि केवल तकनीक और स्मार्ट सिटी के सहारे इस सपने को कैसे पूरा किया जा सकता है। लेकिन कुछ लोग विश्वास से कहते हैं कि स्मार्ट टीवी, स्मार्ट ग्रिड, स्मार्ट स्मार्ट होम, स्मार्ट पब्लिक ट्रांसपोर्ट, स्मार्ट ट्रैफिक सिग्नल, स्मार्ट मशीनें इन समस्याओं को हल कर सकती हैं। लेकिन हम उन लोगों को कैसे सुधार सकते हैं जो इस स्मार्ट सिटी में रहेंगे। सड़क पर कचरा फेंकना, कहीं भी थूकना और पेशाब करना, सड़कों पर पानी बहाना, जब चाहे सड़क खोद देना, यातायात नियमों का पालन न करना, अतिक्रमण करना इस शहर का फैशन बन गया है। मान भी लिया जाए कि अगर शहर के किसी क्षेत्र को स्मार्ट सिटी में तब्दील भी कर दिया गया तो क्या ऐसी आदत वाले लोगों को वहां से निकाल दिया जाएगा। ऐसे ढेरों सवाल हैं जो स्मार्ट सिटी को लेकर उठ रहे हैं। स्मार्ट सिटी की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि लोग कितनी जल्दी अपने को स्मार्ट बना पाते हैं। आपको याद ही होगा 2005 में जेएनयूआरएम शुरू हुई थी जिसके तहत शहरों के बुनियादी ढांचों में सुधार करने का लक्ष्य तय किया गया था। कई जगह अच्छा काम हुआ है लेकिन कई जगहों में काम के नाम पर पैसा तमाम ही हुआ है। इसलिए आशंका जताई जाने लगी है कि स्मार्ट सिटी की योजना भी जेएनयूआरएम की तरह न हो जाए। खैर आगे क्या होगा यह तो बात में पता चलेगा लेकिन फिलहाल सभी को 26 जनवरी का इंतजार है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 100 स्मार्ट सिटी घोषित करेंगे।
लोगों की नजर में स्मार्ट सिटी
लोगों के जेहन में यह सवाल अनायास ही उठता है कि कैसा होगा स्मार्ट सिटी? दिखने में कैसा होगा और क्या सुविधाएं होंगी इनमें। स्मार्ट सिटी के नाम से जो पहली तस्वीर मन में बनती है वह है एक ऐसा शहर जो योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया हो, पार्क हों, यातायात व्यवस्थित हो, बिजली, पानी की समस्या न हो, पूरा शहर वाईफाई हो, सार्वजनिक परिवहन अव्वल दर्जे का हो, पुलिस स्मार्ट हो, गंदगी कहीं नजर न आती हो, सड़कें साफ सुथरी और अतिक्रमण से मुक्त हों, अस्पतालों में सभी जरूरी दवाएं और उपकरण मौजूद हों, सरकारी कामकाज समयबद्ध और पारदर्शी हो, खेल सुविधाएं उन्नत हों आदि ।
-भोपाल से राजेश बोरकर

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