16-Jan-2016 11:25 AM
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महाकाल की नगरी उज्जैन में इस वर्ष अप्रैल-मई में होने वाले सिंहस्थ के लिए प्रदेश सरकार ने खजाना तो खोल दिया है। पर यहां चल रहे निमार्ण कार्यों में 9 विभागों ने करीब 796 करोड़ 27 लाख की राशि खर्च भी कर दी है। लेकिन स्थानीय

प्रशासन की लापरवाही से कई विकास कार्य अधर में लटके हुए हैं। बताया जा रहा है कि यहां संभागायुक्त रवींद्र पस्तोर, कलेक्टर कविंद्र कियावत और मेला अधिकारी के लवानिया के बीच सामंजस्य स्थापित नहीं है। इसी के कारण यहां के विकास कार्यों पर पलीता लग रहा है। सिर्फ काम के नाम पर औपचारिकताएं हो रही हैं। जो कार्य अभी तक समाप्त हो जाना चाहिए था उसकी तो अभी छत ही पड़ी है। लगातार इस तरह की खबरें आने के बाद यहां बन रहे 450 बेड के मातृ एवं शिशु अस्पताल के निर्माण की हकीकत जानने जब स्वास्थ्य विभाग की प्रमुख सचिव गौरी सिंह व आयुक्त पंकज अग्रवाल पहुंचे तो वे यह देखकर हैरान हो गए कि सात मंजिला अस्पताल के अभी तीन ही मंजिल बन पाई है, उसमें भी कई खामियां है। प्रमुख सचिव ने तकनीकी स्टाफ के साथ करीब चार घंटे तक अस्पताल के निर्माण की हकीकत देखी। इस दौरान उन्होंने पाया कि अस्पताल में कई कार्य बिना जरूरत के भी किए जा रहे हैं।
उन्होंने जनरल डिलेवरी वार्ड व मदर वार्ड में आक्सीजन गैस लाइन डाले जाने को लेकर कहा कि इसकी जरूरत क्या है। वार्ड को छोटा कर दिया। वहीं नर्सों के लिए कमरा स्थापित किया है जिसमें वो आराम से सो सकें। वहीं ड्यूूटी डॉ. के लिए भी आरामदेह कमरा बनाया है। जिसमें वह वार्डों की बजाए अपने कमरे में आराम से रह सकें। इन सबको देखते हुए मैडम को गुस्सा आ गया उन्होंने ड्यूटी डॉक्टरों के रूम को सेमी प्राइवेट वार्ड में परिवर्तित करने को कहा वहीं ड्यूटी नर्स की टेबिल वार्ड में लगाने के आदेश दिए और बिल्डिंग की डिजाइन को लेकर दर्जनों सवाल उन्होंने उठाए। सबसे मजे की बात तो यह है कि सात मंजिला अस्पताल की तीन मंजिल ही बन पाई है। अगर एक छत को पडऩे में 20 से 25 दिन का समय चाहिए उस हिसाब से तो सिंहस्थ चालू हो जाएंगे और अस्पताल चालू ही नहीं हो पाएगा। मैडम को ऐतराज इस बात पर है कि निर्माण एजेंसी को मुंह मांगा पैसा दिया और निर्माण एजेंसी ने बगैर सूझबूझ के कुछ भी काम कर डाला। आर्किटेक्ट वैभव अग्निहोत्री को चेताया कि प्रोजेक्ट कंसल्टेंट को बता देना कि खामियां दूर नहीं हुई तो ब्लैक लिस्टेड करवा दूंगी। गौरी सिंह ने वार्ड के पानी की निकासी ठीक से नहीं होने पर ड्रेनेज सिस्टम व फ्लोरिंग के कार्य को नकार दिया। उन्होंने कहा कि फ्लोरिंग बदली जाए। पीएस ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि अस्पताल भवन में पर्याप्त उजाला नहीं है, क्या हम बिजली का बिल ही भरते रहेंगे। कंसल्टेंट से पूछा कि नार्मल डिलेवरी वार्ड में ऑक्सीजन की क्या जरूरत है। मनमर्जी से कोई भी डिजाइन बना दोगे। उन्होंने तो यहां तक कहा कि मनमर्जी से काम करने के कारण ही 50 करोड़ का अस्पताल 100 करोड़ के करीब पहुंच गया और वह भी आधा-अधूरा।
वहीं तिलमिलाते हुए जीवाजीगंज अस्पताल के निरीक्षण के दौरान कर्मचारियों के मकान निर्माण देख पीएस ने पूछा क्या सिंहस्थ बाद पूरा करके दोगे। मेला कार्यालय में अधिकारियों से चर्चा के बाद संयुक्त संचालक कार्यालय में स्वास्थ्य विभाग के सिंहस्थ कार्यों की समीक्षा की और उन्होंने आवश्यक निर्देश देते हुए निर्माण एजेंसी से लेकर अपने अधिकारियों और कर्मचारियों को चेता दिया कि अगर यह काम सही ढंग से पूरा नहीं हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं। परंतु स्थानीय विधायकों से लेकर प्रभारी मंत्री तक आए दिन सिंहस्थ के मद्देनजर समीक्षा करते रहते हैं परंतु ब्यूरोक्रेसी का यह आलम है कि वह किसी न किसी राजनीतिज्ञ का दामन पकड़कर जिलों में जमे हुए हैं ऐसे में भला सिंहस्थ मेले में आने वाले शृदलुओं की चिंता कौन करे। सारा काम राम भरोसे चल रहा है।
उधर केंद्र ने मांगे अद्र्धसैनिक बलों के लिए 25 करोड़
सिंहस्थ के दौरान सुरक्षा चाक-चौबंद करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने दस अगस्त 2015 को केंद्र सरकार को पत्र लिखकर अप्रैल-मई 2016 में उज्जैन में हो रहे सिंहस्थ की सुरक्षा व्यवस्था के लिए अद्र्धसैनिक बल की 25 कंपनियां मांगी थी। कंपनियां 12 अप्रैल 2016 से 27 मई 2016 तक के लिए मांगी गई थी। मप्र सरकार के पत्र के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि केंद्रीय अद्र्धसैनिक बल की 25 कंपनियों के लिए 25 करोड़ रूपए की राशि एडवांस के रूप में खाते में डाली जाए। इसके बाद ही अद्र्धसैनिक बल की कंपनियां उपलब्ध कराई जाएगी। एडवांस राशि न मिलने की स्थिति में कंपनियां नहीं मिलेंगी। केंद्र सरकार का पत्र मिलने के बाद मध्यप्रदेश सरकार सकते में आ गई है और तो और उन्होंने पुराने बकाया का हिसाब भी राज्य सरकार को करोड़ों में बता दिया और कहा कि यह रकम भी हमें पहुंचा दें उसके बाद ही आगे के बारे में विचार होगा।
-उज्जैन से श्यामसिंह सिकरवार