16-Jan-2016 11:23 AM
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राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को लेकर प्रदेश भाजपा में असंतोष दिन पर दिन फैलते जा रहा है। कैडर से बंधे आरएसएस और बीजेपी के नेताओं को वसुंधराराजे की महारानी वाले अंदाज की कार्यशैली से हमेशा शिकायत रही।

वर्तमान समय में प्रदेश में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए वसुंधरा ने जो तरीका अपनाया है उसको लेकर संघ सबसे अधिक चिंतित है। उधर, कमाल देखिए कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह वसुंधरा राजे को बीजेपी का सबसे अच्छा सीएम मानते हैं और उनकी तारीफों का पुल बांधते हैं। जानकार मानते हैं कि पार्टी का हृदय परिवर्तन अचानक नहीं हुआ। 2008 से अब तक पार्टी को अच्छी तरह एहसास हो गया था कि राजस्थान में वसुंधरा राजे का अकेला विकल्प वो खुद ही हैं। राजनीतिक विश्लेषक राजीव गुप्ता बताते हैं कि बीजेपी के पास वसुंधरा राजे का कोई विकल्प था ही नहीं। राजे समर्थक नेता राजेंद्र राठौड़ कहते हैं कि राजस्थान में बीजेपी वसुंधरा राजे से ही शुरू होती है। राजस्थान में हर हाल में वसुंधरा का साथ देने वाले ऐसे कट्टर समर्थकों की कमी नहीं है।
राजपूत इलाके में सिंधिया खानदान की बेटी यानी राजपूतानी और जाटों के असर वाले इलाके में धौलपुर जाट राजघराने की बहू यानी जाटनी और गुर्जरों के इलाके में बेटे दुष्यंत की गुर्जरों में हुई शादी की वजह से समधिन भी हैं। राजस्थान में असर रखने वाली तीन प्रमुख जातियों से ये रिश्ता वसुंधरा राजे ने 2003 में चुनाव प्रचार के वक्त बनाया था। राजपूतों से वो कहती थीं कि बेटी की लाज रखो। जाटों से कहतीं थीं कि बहू को ताज दो और गुर्जरों से कहती थीं कि समधिन चुनरी का मान रखेगी, आरक्षण का हक दिलाएगी। 2003 में राजस्थान में बीजेपी पहली बार अपने दम पर सत्ता में आई। इसे वसुंधरा राजे का ही कमाल माना गया। अभी भी प्रदेश में भाजपा को सत्ता में वापस लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है।
बीजेपी में वसुंधरा राजे की मजबूत स्थिति समर्थकों की फौज से ही नहीं बनी। बल्कि वो आम लोगों के बीच खासी लोकप्रिय हैं। ये लोकप्रियता ही उनकी ताकत का आधार तैयार करती है, जिसके बीज बतौर मुख्यमंत्री वसुंधरा के पांच साल के शासन काल में पड़े। पांच साल में बेहतर शासन की वजह से बनी वसुंधरा की लोकप्रियता का आलम ये है कि नरेंद्र मोदी और बीजेपी से परहेज करने वाला मेव अल्पसंख्यक समुदाय भी वसुंधरा राजे के साथ खड़ा है। अल्पसंख्यक नेता पीर मोह मद मानते हैं कि वसुंधरा राजे ने अच्छी सरकार चलाई है, अच्छा राज चलाया है। वहीं नवाजुद्दीन कहते हैं कि वसुंधरा राजे ने गरीबों के लिए काम किया। इस लोकप्रियता की वजह चुनावी वादे को पूरा करने में मिली कामयाबी है। दरअसल, 2003 में वसुंधरा ने मुख्यमंत्री बनते ही शासन के परंपरागत तरीके को बदल दिया और इस बार भी वह उसी नक्से कदम पर चल रही हैं। पहले खुद के लिए किसी कॉरपोरेट कंपनी के दफ्तर की तरह नया सीएमओ बनवाया। सचिवालय की अंदर और बाहर की तस्वीर बदल दी। फाइलों में उलझे अफसरों को लैपटॉप और काम पूरा करने का टारगेट थमा दिया। अफसरो को प्रेजेंटेशन देने पड़ रहे थे। लालफीताशाही को भूल कर सरकारी कर्मचारी काम में डूबे दिखने लगे, दूसरी तरफ काम की गुणवत्ता में सुधार के लिए उन्होंने सप्ताह में पांच दिन काम करने की कार्य संस्कृति भी शुरू की।
पूर्व आईएएस आर एस गठाला कहते हैं कि वसुंधरा राजे हार्ड वर्किंग तो शुरू से हैं। मैं जब कलेक्टर था तब देखा कि किस तरह आम आदमी की समस्याओं को लेकर वह सीरियस थीं। खुद वसुंधरा राजे ने सरकार की ब्रांडिग शुरू की। कभी सरकारी डेयरी के दूध की ब्रांडिग के लिए विज्ञापन करती नजर आई तो कभी कोटा में बुनकरों की कोटा डोरिया साड़ी की ब्रांडिग के लिए कैटवॉक किया। डिजायनरों को काम सौंपा। साड़ी ब्रांड बन गई। खेलों को बढ़ावा देने, निशानेबाजी को प्रमोट करने के लिए खुद शूटिंग रेंज में निशाना लगाते दिखीं तो कभी टेनिस कोर्ट में टेनिस खेलते। पानी को तरसते राजस्थान में स्पेशल इकोनोमिक जोन बनने लगे, तरक्की का रास्ता दिखने लगा। छात्रों और महिलाओं से लेकर हर तबके में उनकी लोकप्रियता मजबूत हो गईं। वसुंधरा राज में पानी को लेकर हुए किसान आंदोलन और आरक्षण की मांग को लेकर हुए गुर्जर आंदोलनों ने भी उनकी छवि पर दाग लगाया। दोनों आंदोलनों को काबू में करने के लिए पुलिस को गोलियां दागनी पड़ी। इसके बावजूद ये महारानी के राजनीतिक कौशल का ही कमाल था कि गुर्जर आंदोलन छेडऩे वाले नेता किरोड़ी सिंह बैंसला खुद बीजेपी में शामिल हो गए। बीजेपी नेता कैलाशनाथ भट्ट का दावा है कि वसुंधरा राजे का लोगों से जीवंत संपर्क है।
-धर्मेंद्र कथूरिया