भगवा लहर के लिए तैयार है पश्चिम बंगाल
16-Jan-2016 11:12 AM 1234911

शारदा घोटाले में सीबीआई जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही है लिहाजा मामले में राजनीति की गुंजाइश को काफी कम किया जा सकता है। फिर भी राजनीति की गुंजाइश को नकारा भी नहीं जा सकता क्योंकि सुप्रीम कोर्ट खुद सीबीआई को केन्द्र सरकार का तोता कह चुकी है। हाल में सीबीआई ने शारदा घोटाले की जांच में जिस तरह की फुर्ती दिखाई है उससे टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी को परेशान होना लाजमी है। सीबीआई ने कुछ दिनों पहले ही टीएमसी के दिग्गज नेता और जनरल सेक्रेटरी शंकूदेव पांडा से पूछताछ की और उसके फौरन बाद ममता बनर्जी ने उन्हें पार्टी की सभी जिम्मेदारियों से मुक्त करते हुए पार्टी को सख्त निर्देश जारी कर दिया कि पांड़ा से किसी तरह का संपर्क न रखा जाए। इस पूछताछ के बाद से ही कोलकाता के लोकल अखबारों में कयास लगाया जा रहा है कि पांडा ने सीबीआई के सामने मुंह खोल दिया है और पार्टी के कई आला नेताओं का नाम अपनी सफाई में पेश कर दिया है।
गौरतलब है कि इससे पहले टीएमसी के दिग्गजों में मदन मित्रा, श्रिंजॉए बोस और कुनाल घोष पहले ही सीबीआई के हत्थे चढ़ चुके हैं। इन सभी के बयान सीबीआई के पास दर्ज हैं। मीडिया में लीक हुई खबरों के मुताबिक कुनाल घोष ने तो सीबीआई के सामने यहां तक दावा किया है कि शारदा घोटाले में पार्टी सुप्रीमों ममता बनर्जी को भी फायदा पहुंचा है। वहीं शारदा घोटाले की इस जांच के दौरान ममता के कई करीबियों ने पार्टी से दूरी भी बना ली है। इसमें खासतौर पर कभी ममता के बेहद करीबी रहे मुकुल रॉय भी थे जो पिछले 10 महीनों से पार्टी से बाहर थे और माना जा रहा था कि वह टीएमसी के जवाब में नई पार्टी बनाने की जुगत में लगे हैं। बहरहाल चुनावों के मद्देनजर ही कह लें ममता ने कुछ डैमेज कंट्रोल शुरू कर दिया है और मुकुल रॉय को वापस पार्टी में शामिल करने का संकेत देना शुरू कर दिया है।
बहरहाल, एक घोटाला जिसे देश का अब तक का सबसे बड़ा पॉलीटिकल स्कैंडल माना जा रहा है और अगर उसका पूरा ताना बाना ममता बनर्जी की टीएमसी के इर्द-गिर्द ही बुना गया है तो यह एक गंभीर मुद्दा है। इस मामले में अगर दूध का दूध और पानी का पानी होने की नौबत चुनावी बिगुल बजने से पहले आती है तो जाहिर है पश्चिम बंगाल एक बड़े राजनीतिक फेरबदल के लिए तैयार है। ऐसे में अगर केन्द्र की सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी भी इस कोशिश में रहे कि किसी संभावित उठापटक का फायदा उसे मिले और वह वामपंथ के इस पूर्व गढ़ में अपना भगवा फहरा दे, तो इसमें हर्ज ही क्या है।
ऐसे में यह साफ है कि वामदलों को पश्चिम बंगाल के मौजूदा राजनीतिक हालात से यह लगने लगा है कि आगामी चुनावों में बीजेपी एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर सकती है। लिहाजा जरूरी है कि कांग्रेस और टीएमसी का गठजोड़ तोड़ा जाए जिससे चुनावों के लिए ममता बनर्जी के पास सत्ता बचाने के लिए महज दो गठजोड़ों का विकल्प बचे। पहला, गैर-कांग्रेसी सेक्युलर दलों का या कह लें बिहार जैसा कोई महागठबंधन जिसमें कांग्रेस शामिल न हो। दूसरा, वह बीजेपी के साथ गठबंधन करे जिससे बिहार जैसे महागठबंधन में कांग्रेस और वामदल शामिल हो सकें। अब देखना यह है कि कौन क्या चौसर बिछाता है।
कांग्रेस से गठबंधन कर सकती है सीपीएम
सीपीएम ममता बनर्जी की सरकार को उखाडऩे के लिए कांग्रेस से गठबंधन कर सकती है। कांग्रेस से करार की कोशिश इसलिए की जा रही है क्योंकि राज्य में उसे ममता से बड़ी चुनौती बीजेपी से मिलने की उम्मीद है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि ममता बनर्जी ने 2011 के विधानसभा चुनावों में अपने मां, माटी और मानुष के दावे पर पश्चिम बंगाल से वामदलों का सफाया कर दिया था। इस मुकाम के लिए ममता ने 1997 में कांग्रेस छोडऩे के बाद त्रिनमूल कांग्रेस को लांच किया और कभी बीजेपी का सहारा लेकर अपना वोट प्रतिशत बढ़ाया तो कभी कांग्रेस का दामन थामकर विधानसभा और लोकसभा में अपनी सीटों में इजाफा किया। इसके बावजूद अप्रैल 2015 में सीपीएम की 21वीं कांग्रेस में पारित रेजोल्यूशन में पार्टी ने बीजेपी को अपना सबसे बड़ा दुश्मन बताया और दूसरे नंबर का दुश्मन कांग्रेस को घोषित किया है।
इंद्र कुमार

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