16-Jan-2016 11:00 AM
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भोपाल में अगर आप सुबह 6 बजे एमपी नगर जाएंगे तो वहां अगर कुछ दिखेगा तो वह है लड़कियों का हुजूम। पीठ पर बैग लटकाए लड़कियां किसी न किसी कोचिंग संस्थान की ओर भागती दिखेंगी। दोपहर 12 बजे इस भीड़ में लड़के भी

दिखेंगे, लेकिन शाम 6 बजे से रात 8 बजे तक फिर केवल लड़कियां ही दिखेंगी। ये दृश्य इस बात की ओर इशारा करते हैं कि हमारे समाज में अब लोग लड़कियों को पढ़ाने, प्रतियोगी परीक्षाओं के मोर्चों पर लड़ाने की मानसिकता बना चुके हैं। आलम यह है कि आज शहरों में पढऩे, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने और नौकरी करने आने वाली लड़कियों में से अधिकांश छोटे शहरों और गांवों की होती हैं। इस सुखद बदलाव के बीच आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज हमारे समाज में ऐसे लोग हैं जो लड़कियों को नाकुशाÓ नाम दे देते हैं। महाराष्ट्र में यह प्रथा जोरों पर है। नाकुशा का मतलब है अनचाही और जैसा कि नाम से जाहिर है, इस प्रथा को चलाने वालों का मानना है कि लड़के की चाह में जब बार-बार लड़की होती जाए तो उसे कुछ नाम देने से अच्छा है नाकुशाÓ बुलाया जाए। हालांकि 2011 में राज्य के सतारा जिला परिषद ने इस कुरीति से लडऩे का बीड़ा उठाया और इन लड़कियों का नामकरण करने की शुरुआत की।
खैर, एक दिन इस बारे में घर पर काम में हाथ बंटाने वाली अनीता से चर्चा कर रही थी तो पता चला कि उसकी बहन ने भी अपनी छोटी बेटी का नाम राम भतेरीÓ रखा है। बता दूं कि हरियाणा में भतेरीÓ का मतलब होता है बहुतÓ और अनीता की बहन, दो लड़कियों के बाद एक और और लड़की का दुखÓ उठाने के लिए तैयार नहीं थी इसलिए उसने अपनी दूसरी बेटी के नाम के आगे भतेरीÓ लगा दिया यानि अब और नहीं। वैसे एक सहेली ने भी बताया कि उसके घर भी सबसे छोटी बहन को प्यारÓ से भतेरी बोला जाता था। इन दोनों की बात सुनकर मुझे मेरी नानी याद आ गईं जो तीन बहनों में सबसे छोटी थी और उनका नाम घरवालों ने धापलीÓ रखा था। हरियाणा, राजस्थान में इस्तेमाल होने वाले इस धापलीÓ शब्द का मतलब होता है पेट भर जानाÓ और सोचिए जब आज के जमाने में लोगों को लड़की भतेरीÓ लगती है तो फिर तो वो नानी का जमाना था। इसी तरह बातों-बातों में एक और दोस्त ने बताया कि उसके दादा उसे कड़कोÓ नाम से बुलाते थे। वजह एक तो लड़की, ऊपर से महीने के आखिर में पैदा हुई, जरूर किसी दुश्न की बद्दुआ लगी होगी। ऐसे ही पिछले दिनों एक अखबार में हरियाणा के मेवात जिले के नीमखेड़ा गांव की खबर आई थी। सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि हरियाणा में अब पढ़े लिखे लोग ही पंचायत चुनाव लड़ सकेंगे। रिपोर्ट में नीमखेड़ा गांव की पंचायत के बारे में बताया गया जिसमें ज्यादातर सदस्य औरतें ही हैं और पढ़ी लिखी नहीं है। यहां तक की गांव की सरपंच भी औरत ही है जिनका नाम है अशुभी..Ó
अब जरा बिहार चलते हैं, एक दोस्त के घर शादी का कार्ड आया जिस पर नजर पड़ी तो दुल्हन का नाम था चिंता देवी। बात करने पर पता चला कि बिहार में कई लड़कियों के नाम चिंताÓ रखे जाते हैं, इसकी वजह बताने की जरूरत तो है नहीं। लिस्ट यहीं खत्म नहीं होती, एक परिचित की पांच बेटियां हैं जिसमें से सबसे छोटी बेटी का नाम एक पड़ोस वाली आंटी ने आचुकीÓ रख दिया था क्योंकि उन्हें लगता था कि जितनी (लड़कियां) आनी थीं, आ चुकी, अब और नहीं। एक काफी पढ़े लिखे परिवार की दादी ने अपनी पोती का नाम भंवरी रखा क्योंकि उसके सिर में भंवर था और बकौल दादी जिसके सिर में भंवर होता है अगली बार उसको भाईÓ होता है। इतिश्रीÓ और मुक्तिÓ इसी विचारधारा के साथ रखे गए नाम हैं। बचपन में एक कहानी पढ़ी थी नाम बड़ा या काम। बात भी सही है कि नाम में क्या रखा है आदमी की पहचान उसके काम से होनी चाहिए, लेकिन जिस समाज को सिर्फ लड़कों से ही काम हो और लड़की उन्हें हमेशा ज्यादा लगें वहां ध्यान जाना स्वाभाविक है। हो सकता है जो माता-पिता अपनी लड़की को भतेरी बुलाते हों कल को वो ही उनकी जिंदगी में भतेरा सुख लाए। जो लड़की चिंता नाम से पुकारी जाती हो वहीं अपने परिवार को चिंता से मुक्ति दिलाए। वैसे यह हाल सिर्फ भारत का ही नहीं होगा और भी कई पितृसत्तात्मक देश होंगे जहां लड़कियों के लिए इस तरह के नाम रखना बड़ी सामान्य सी बात होगी। इतनी सामान्य की कई बार तो हमारा-आपका इस तरफ ध्यान भी नहीं जा पाता। शायद ध्यान देना जरूरी भी नहीं है क्योंकि अगर सिर्फ निर्भयाÓ नाम रख देने से लड़कियों का भला हो पाता तो बात ही क्या होती।
-माया राठी