02-Jan-2016 07:51 AM
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जब भी सऊदी अरब के महिलाओं की बात होती है तो उन पर लागू सामाजिक पाबंदिया ही चर्चा का केंद्र बन जाती हैं। लेकिन इन सबके बावजूद जब सऊदी की महिलाओं में शिक्षा की बात करें तो आंकड़े चौंकाने वाले हैं। सऊदी अरब के निकाय

चुनावों में जब महिलाओं को वोट डालने और चुनाव लडऩे की इजाजत मिली तो वहां ये किसी बड़े टैबू के टूटने जैसा था। समूची दुनिया की मीडिया का ध्यान इस चुनाव पर लग गया। अब जबकि पिछले हफ्ते हुए चुनाव के नतीजे सामने आए तो साबित हो गया कि दुनिया के इस क्षेत्र में जहां बिना पुरुष के महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी है, वहां बहुत कुछ बदल रहा है। इस चुनाव में 20 महिलाओं ने जीत हासिल की। ऐसे नतीजे की उम्मीद किसी ने भी नहीं की थी। रियाद से सबसे ज्यादा चार महिलाओं ने जीत हासिल की। मुसलमानों के पवित्र मक्का शहर के मदरकाह इलाके से सलमा बिंत हिजाब अल-ओतिबी जीत हासिल करने में कामयाब रहीं। कासिम से भी एक महिला उम्मीदवार के चुनाव जीतने की खबर आई है। यह सऊदी अरब का सबसे रूढीवादी इलाका है।
सऊदी में महिलाओं की शिक्षा
जब भी सऊदी अरब के महिलाओं की बात होती है तो उन पर लागू सामाजिक पाबंदिया ही चर्चा का केंद्र बन जाती हैं। लेकिन इन सबके बावजूद जब सऊदी की महिलाओं में शिक्षा की बात करें तो आंकड़े चौंकाने वाले हैं और यह भारत के लिए भी एक सीख है। वहां महिलाओं में साक्षरता दर 91 फीसदी है। सऊदी अरब के शिक्षा मंत्रालय के एक आंकड़े के अनुसार 2009 में 59,948 लड़कियों ने स्नातक की डिग्री हासिल की जबकि पुरुषों की संख्या उनसे कम 55,842 ही रही। सऊदी में महिलाओं की उच्च शिक्षा को लेकर पहल काफी पहले 1962 में रियाद में शुरू हो गई थी। तब महिलाओं को पढ़ाई घर से ही करनी होती थी और वे केवल परीक्षा देने के लिए संस्थान में आ सकती थी। इस कार्यक्रम के जरिए कोशिश यह थी महिलाएं बेहतर शिक्षा हासिल कर अच्छी गृहणी और मां होने का फर्ज निभाएं। फिर महिलाओं के लिए कॉलेज और स्कूल खुलने लगे। यहां से उनकी शिक्षा दर में तेजी से बदलाव आया। भारत में तस्वीर इसके उलट है। 2011 के आंकड़े के अनुसार यहां महिलाओं में शिक्षा दर केवल 65.46 फीसदी है।
सामाजिक बराबरी में पिछड़ी
सऊदी महिलाएं
इसमें कोई दो राय नहीं कि शिक्षा के मामले में सऊदी अरब की महिलाएं कई देशों से आगे हैं। लेकिन इसके बावजूद उनकी प्रतिभा का सही इस्तेमाल नहीं हो सका है। जाहिर तौर पर इसका कारण वहां का रुढि़वादी समाज है। सऊदी में महिलाएं अकेले या परिवार की इजाजत के बगैर घर से बाहर नहीं जा सकती। पुरुष की इजाजत के बगैर नौकरी नहीं कर सकतीं। अजनबी पुरुषों से बात नहीं कर सकती। अपनी मर्जी से शादी या कहीं यात्रा तक नहीं कर सकतीं। यहां तक कि वहां उनके लिए गाड़ी चलाना भी अपराध है। फिर भी सऊदी का ये चुनाव वहां की महिलाओं के लिए किसी उम्मीद से कम नहीं। जब चुन कर आई कोई महिला पहली बार वहां की शासन व्यवस्था में हिस्सेदारी निभाएगी।
सऊदी में महिलाओं पर कई पाबंदी
सऊदी अरब के प्रिंस सलमान को नया किंग घोषित करने के साथ ही आधी आबादी यानी महिलाओं को उनका हक मिलने की उम्मीद जगी। जो दुनिया में सबसे कड़ी पाबंदियां झेल रही हैं। पिछले साल हुए एशियाई खेलों में सऊदी अरब सरकार ने ये कहते हुए एक भी महिला खिलाड़ी को अपनी टीम में नहीं रखा कि उनमें प्रतियोगिता में शामिल होने की क्षमता नहीं है। महिलाओं को दोयम दर्जे का समझने के मामले में सऊदी अरब एशिया ही नहीं, दुनिया में बदनाम है। इस देश के किसी भी बैंक में महिलाओं के बैंक अकाउंट उनके पति की इजाजत के बाद ही खोले जाते हैं। अविवाहित महिलाओं के लिए तो इसकी मनाही ही है। कट्टरपंथियों का मानना है कि अकेली महिला के पास पैसा होगा, तो वह गुनाह करेगी। वहां महिलाएं पुरुष रिश्तेदार के बिना कहीं आ जा नहीं सकती। ड्राइविंग नहीं कर सकतीं, दुनिया में सऊदी अरब ही ऐसा देश है, जहां इससे पहले महिलाओं ने कभी वोट नहीं दिया है। सऊदी अरब में महिलाओं के स्विमिंग करने पर भी पाबंदी है। इतना ही नहीं, वे पूल में नहाते पुरुषों की ओर देख भी नहीं सकतीं। शॉपिंग के दौरान कपड़ों का ट्रायल नहीं ले सकतीं, किसी अंडर गारमेंट्स की शॉप पर काम नहीं कर सकतीं, अन-सेंसर्ड फैशन मैगजीन नहीं पढ़ सकतीं और बार्बी नहीं खरीद सकतीं। सऊदी अरब में बार्बी को यहूदी खिलौना बताकर उसके कपड़ों को गैर-इस्लामी करार दिया गया है। महिलाएं यदि इनमें से किसी भी हिदायत का उल्लंघन करती हैं, तो वहां का विशेष पुलिस बल कार्रवाई करता है। इसे इस्लामी कानूनों का पालन करने के लिए ही बनाया गया है। इसमें लंबी दाढ़ी वाले पुरुष और पूरे हिजाब में महिला सुरक्षाकर्मी होते हैं।
-माया राठी