जोगी बिन कांग्रेस का भविष्य
16-Jan-2016 10:32 AM 1234785

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की राजनीति अजीत जोगी के इर्द-गिर्द घुमती है। लेकिन पिछले कुछ वर्ष से जिस तरह अजीत जोगी ने कांग्रेस के बिखराव में भूमिका निभाई है, वे संगठन की नजर में विलेन बन गए हैं। फिर भी पार्टी के नेता उनकी मनमानी सहते आ रहे थे। लेकिन अंतागढ़ ऑडियो टेप मामले ने आग में घी का काम कर दिया है और प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने विधायक अमित जोगी को पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया। जोगी पिता-पुत्र को पार्टी से निष्कासित करने का फैसला जितनी आसानी से ले लिया गया उससे लगता यही है कि कमेटी को इस कार्रवाई पर हाईकमान की सहमति प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं हुई। संगठन खेमे के नेता इस कार्रवाई के समर्थन में अपनी बात जिस विश्वास के साथ रखते सुने जा रहे हैं उससे संकेत मिलता है कि केन्द्रीय कमेटी प्रदेश कमेटी के फैसले पर मुहर लगा देगी और अजीत जोगी भी पार्टी से निष्कासित कर दिए जाएंगे। कांग्रेस में अजीत जोगी को हाशिए पर लगाने की कोशिश वर्षों से चलती आ रही है। यहां तक कहा जाने लगा था कि प्रदेश में कांग्रेस का भविष्य जोगी के पार्टी में न रहने में ही है। लगातार तीन चुनावों में हार का ठीकरा उन पर ही फोडऩेे की कोशिश होती रही। अब तक ऐसा कोई ठोस आधार संगठन खेमे को नहीं मिल रहा था जिसे हथियार बनाकर जोगी को पार्टी से बाहर कर दिया जाए। अंतागढ़ ऑडियो टेप का मामला हाथ लगा तो बिना देरी किए पिता-पुत्र को पार्टी से निकालने का निर्णय ले लिया गया। कांग्रेस का वह धड़ा जो जोगी से सद्भावना रखने वाला नहीं है, उसने इस कार्रवाई पर सरेआम खुशी मनाई। प्रदेश कांग्रेस कार्यालय के बाहर आतिशबाजी तक की गई। इस कार्रवाई से पहले ही जिला कमेटियों में निंदा और निष्कासन के प्रस्ताव पास होने लगे थे। यह पहले ही साफ हो गया था कि प्रदेश कमेटी जोगी पिता-पुत्र को पार्टी से निकालने का मन बना चुकी है। अभी ऑडियो टेप पर चुनाव आयोग द्वारा मुख्य सचिव से मांगी गई रिपोर्ट आना बाकी है। इसके बाद ही यह तय होगा कि मामले में क्या कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने इसका इंतजार तक नहीं किया।
संगठन और जोगी खेमे के नेताओं के बीच महत्वाकांक्षा की लड़ाई जगजाहिर है। दोनों एक दूसरे को पटखनी देने का कोई मौका नहीं छोड़ते। अंतागढ़ उपचुनाव और उसे लेकर ऑडियो टेपकांड दोनों खेमों में चलते आ रहे शह और मात के खेल का ही नतीजा है। वर्ष 2003 के चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद से ही जोगी को इस रूप में पेश किया जा रहा है कि उनके रहते कांग्रेस सत्ता में वापस नहीं आ सकती। कांग्रेस के ही लोग जब यह कह रहे हों तो भाजपाइयों को यह कहने में क्या जाता है कि जब तक जोगी उनके मददगार है, उन्हें चिंता करने की क्या जरुरत है। छत्तीसगढ़ की राजनीति में दो पार्टियों के बीच एक व्यक्ति जो किसी की जीत-हार का कारण माना जा रहा हो उसके प्रभाव को नजरअंदाज कैसे किया जा सकता है। जोगी परिवार पर इस बड़ी कार्रवाई का सीधा असर छत्तीसगढ़ कांग्रेस की राजनीति पर पड़ेगा। 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में अमित जोगी ने सबसे ज्यादा लीड के साथ चुनाव जीता था। पार्टी से निष्कासित होने के बाद भी अमित विधायक बने रहेंगे और इंडिपेंडेंट एमएलए के तौर पर काम करेंगे। अगले चुनाव के लिए तीन साल का समय है ऐसे में अपने अच्छे काम से वे अपना जनादेश बनाए रख सकते हैं। इस दौरान कानूनी तौर पर भी इस प्रकरण का निपटारा हो जाएगा। यदि कानून का फैसला जोगी के पक्ष में आया तो संभव है कि कांग्रेस उनका निष्कासन वापस ले ले। इस फैसले से कांग्रेस को बहुत ज्यादा फायदा होते फिलहाल नजर नहीं आ रहा है। बहुत संभव है कि पार्टी दो हिस्सों में बंट जाए जिससे कांग्रेस का जनाधार भी बंट जाएगा। पीसीसी स्वीकार करे या न करे पर प्रदेश कांग्रेस में जोगी का कद काफी ऊंचा है। यदि उन्हें कांग्रेस से निष्कासित किया जाता है तो कहीं न कहीं पार्टी को नुकसान होगा। लेकिन इस फैसले का उतना ही नुकसान जोगी को भी होगा। क्योंकि जैसे ही पार्टी उनकी गतिविधियों पर रोक लगाएगी वैसे ही उनका जनाधार भी कम होने लगेगा।
मप्र में भी कांग्रेस के लिए मुसीबत बने रहे जोगी
छत्तीसगढ़ बनने से पहले संयुक्त मध्यप्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे अजित जोगी यहा भी विवादों में रहे। कभी उन पर भाजपा उम्मीदवार की मदद का आरोप लगा तो कभी उन्होंने अपने ही राजनीतिक गुरू अर्जुन सिंह के खिलाफ बगावती तेवर अपनाए।
अब ये भी छोड़ सकते हैं कांग्रेस का साथ
जोगी परिवार में दो विधायक हैं रेणु जोगी और अमित जोगी। इनके अलावा विधायक सियाराम कौशिक, आर के राय और दिलीप लहरिया जोगी के साथ पूरी तरह खड़े नजर आ रहे हैं। कवासी लखमा भी जोगी के नजदीकी माने जाते हैं लेकिन इस बदले माहौल कवासी की भूमिका क्या होगी, इस पर अभी संशय है। पूर्व विधायकों में धरमजीत सिंह, परेश बागबाहरा, विधान मिश्रा जोगी समर्थक हैं। कई जिलों के प्रमुख नेता भी जोगी खेमे की राजनीति से सीधे जुड़े हैं। संभव है कि पीसीसी के इस फैसले के बाद ये सभी कांग्रेस का साथ छोड़ दें। अमित जोगी फिलहाल पिता पर होने वाली कार्रवाई का इंतजार कर सकते हैं। पिता-पुत्र की राजनीति एक-दूसरे से जुड़ी है। उनके साथ ही कोटा से विधायक चुनी गईं रेणु जोगी (अजीत जोगी की पत्नी) का भाग्य भी जुड़ा है। मरवाही और कोटा क्षेत्रों में जोगी परिवार का दबदबा है। संभव है वे इस क्षेत्र में अपना फोकस रखें और अगले चुनाव में इंडिपेंडेंट प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे। यह भी संभव है वे कोई नई पार्टी ज्वाइन करें या किसी अन्य स्थापित पार्टी का हाथ थामें।
-रायपुर से संजय शुक्ला के साथ टीपी सिंह

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