02-Jan-2016 06:58 AM
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कहते हैं राजनीति में एक सुखद परिणाम आगामी कई सालों तक के लिए राजनीति तय कर देती है और कुछ ऐसा ही देखने को मिला छत्तीसगढ़ कांग्रेस में। साल 2015 कांग्रेस के लिए काफी यादगार साल रहा। बात चाहे चुनावी जीत की हो या

अंतहीन गुटबाजी की। कांग्रेस हर मामले में पिछले सालों से बेहतर रही। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की लगातार हार से कांग्रेस पार्टी के भीतर प्राणवायु के लिए एक चुनावी जीत की आवश्कता थी। साल की शुरूआत में ही 4 जनवरी को नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम आए। चुनावी परिणाम में कांग्रेस को उम्मीद से अधिक सीटें मिली। वहीं साल के अंतिम दिन 11 निकाय क्षेत्रों में आए चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए सुखद रहे क्योंकि पार्टी ने 8 में जीत दर्ज की।
नगरीय निकाय चुनाव में मिली जीत ने जैसे मानों कांग्रेस के भीतर नई उमंग नई तरंग का संचार कर दिया हो और उसी का परिमाण था कि कांग्रेस ने 15 जनवरी को ही प्रदेशभर में धान के मुद्दों को लेकर आंदोलन छेड़ दिया। मगर कांग्रेस में जिस बात की लड़ाई पहले दिन से है उसी का परिणाम रहा कि नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी विरोधी कार्य करने के लिए कांग्रेस ने अपने दो-दो विधायकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाते हुए तीन अन्य को कड़ी चेतावनी दी। यह बात दीगर है कि विधायकों के निलंबन के पीछे भी कांग्रेस की गुटबाजी का ही असर दिखाई दिया। क्योंकि पार्टी से निलंबित विधायक आर.के. राय और सियाराम कौशिक दोनों अजीत जोगी गुट के माने जाते हैं। छत्तीसगढ़ कांग्रेस में गुटबाजी, ऐसा नहीं है कि कांग्रेस आला कमान इस बात से अंजान है। तभी को कहा जाता है कि साल 2003 के चुनाव को छोड़कर 2008 और 2013 के चुनाव में भाजपा की जीत नहीं बल्कि कांग्रेस की हार हुई है। प्रदेश कांग्रेस में बढ़ते गुटबाजी को कम करने के लिए आला कमान ने भूमिका निभाई और प्रदेश प्रभारी ने सार्वजनिक रूप से कहा कि अगर पार्टी में गुटबाजी रही तो आगामी दिनों में हम चुनाव लड़ भी नहीं पाएंगे। कांग्रेस प्रदेश प्रभारी के इस बयान के बाद कांग्रेस अंदरखाने में हलचल दिखाई दी और फिर नेताओं ने मुद्दों को लेकर बोलने शुरू किया।
साल के शुरू में ही हुए नान घोटाले को लेकर कांग्रेस ने प्रदेशभर में आंदोलन किया। नान के नाम पर शुरू हुए आंदोलन का असर धान के नाम पर दिखाई दिया। कांग्रेस ने बलौदाबाजार से किसान-मजदूर न्याय यात्रा निकालकर 16 मार्च को विधानसभा घेराव की कोशिश की। इसी विषय को लेकर 15 और 16 जून को कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी कोरबा पहुंचे। मगर कांग्रेस में कभी ना समाप्त होने वाली गुटबाजी का असर कोरबा में भी दिखाई दिया। मंच संचालन को लेकर भूपेश बघेल और अजीत जोगी राहुल गांधी के सामने ही भिड़ गए। जैसे तैसे राहुल गांधी का दौरा पूरा हुआ और दौरे के अंतिम समय में राहुल गांधी ने जांजगीर की सभा के बाद बंद कमरे में दोनों नेताओं को समझाइश के साथ फटकार भी लगाई। सिंतबर आते-आते कांग्रेस में एक बार हलचल तेज हुई और 12 जिलों में शिक्षा में आउटसोर्सिंग के विषय को लेकर जूनियर जोगी बनाम संगठन की लड़ाई भी चलती शुरू हुई । सितंबर में ही चुनाव आयोग ने नव गठित बीरगांव नगर निगम में चुनावी घोषणा कर दी। जिसमें कांग्रेसी जीत की रणनीति बैठाने लगे और साथ ही ऑउटसोर्सिंग के मुद्दें पर भी आंदोलन होता रहा।
बीरगांव चुनाव में प्रत्याशियों के ऐलान के बाद एक बार फिर 27 अक्टूबर को युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजा बरार के नेतृत्व में आउटसोर्सिंग के मुद्दें पर सीएम हाउस घेराव आंदोलन किया गया। मगर सीएम हाउस कूच करने से पहले मंच पर भूपेश और जोगी एक बार फिर आमने-सामने हो गए। नवबंर में बीरगांव चुनाव संपन्न हो गया। कांग्रेस महापौर पद तो नहीं जीत सकी। मगर 40 पार्षदों के निगम में 20 पार्षद जीत कर कांग्रेस ने बीरगांव अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा दी। लेकिन इस बार नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव के भावी मुख्यमंत्री को लेकर दिए बयान पर बवाल मच गया। प्रदेश के नेता से लेकर आला कमान तक ने टीएस सिंहदेव के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। खैर इस मामले का भी पटाक्षेप तो हो गया मगर उससे पहले कांग्रेस के भीतर की सत्ताप्राप्ति की लालशा दिखाई दे दी कि 2018 में होने वाले चुनाव में जीत को लेकर रणनीति बनाने के बाजाए कौन बनेगा मुख्यमंत्री की रणनीति तैयार की जा रही है।
जोगी धड़ा चला अलग राह
कांग्रेस की सबसे बड़ी परेशानी यह रही कि अजित जोगी का धड़ा हमेशा संगठन से अलग राह चलता रहा है। इस कारण कांग्रेस कभी भी एक नहीं हो सकी। जब भी कांग्रेस में एकजुटता दिखी जोगी धड़ा अपना अलग राग अलापने लगा। इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेसी कार्यकर्ता हताश होते रहे।
-रायपुर से संजय शुक्ला के साथ टीपी सिंह