शिवहरे का सिंडीकेट तय करता था शराब के दाम
16-Jan-2016 10:21 AM 1234972

शराब ठेकेदारों की मूल कमाई एक परमिट पर कई ट्रक माल मंगाने पर होती है। शराब व बीयर डिस्टलरी से निकालने के लिए परमिट बनता है। इस परमिट पर ट्रक को डिस्टलरी से निकालने के समय से लेकर जिस स्थान पर ट्रक पहुंचना है वह समय भी रहता है। साथ ही किस रास्ते से जाएगा वह भी अंकित होता है, लेकिन आबकारी विभाग व पुलिस की मिलीभगत से एक परमिट पर कई ट्रक माल नंबर-2 में आ जाता है और इसी फंडे का इस्तेमाल कर शिवहरे ने शराब के धंधे में महारथ हासिल कर करोड़ों की काली कमाई की।
देसी कलारी पर 500-500 रुपए में नौकरी करके शराब के धंधे में उतरे लक्ष्मीनारायण और लल्ला शिवहरे ने 25 साल में प्रदेश में अरबों रुपए के शराब कारोबार पर एकछत्र राज कर पुराने ठेकेदारों को बाहर कर दिया है। यही नहीं शिवहरे का सिंडीकेट ही अब प्रदेश में शराब के भाव तय करता है। लेकिन कर चोरी की आदत ने इनके रसूख को मिट्टी में मिला दिया। आयकर विभाग ने पहली बार शराब के सबसे बड़े कारोबारी के 55 से अधिक ठिकानों पर एक साथ छापामार कार्रवाई कर इनकी काली कमाई का पर्दाफाश किया है। छापे के बाद मिले सबूतों से पता चला है कि शिवहरे बंधुओं के कारोबार में राजनेताओं और प्रदेश के प्रमुख अधिकारियों की काली कमाई भी लगी है। ऐसा सूत्र बताते हैं शिवहरे बंधुओं की सबसे बड़ी विशेषता है कि हर साल शराब के धंधे में करोड़ों रुपए का घाटा होने का रोना रोते हैं और अपने साझेदारों की तिजौरियां खाली करा देते हैं। इसके बाद भी प्रदेश के कई जिलों के सिंडीकेट पर इनका कब्जा है। प्रदेश के बाहर भी इनके ठेके हैं। सत्ताधारियों से भी शिवहरे बंधुओं के दोस्ताना ताल्लुकात किसी से छिपे नहीं है। पिछले 30 साल से शराब के कारोबार से जुड़े लक्ष्मीनारायण शिवहरे व लल्ला शिवहरे की काली कमाई पर पहली बार आयकर विभाग की नजर पड़ी है।
लक्ष्मीनारायण शिवहरे व लल्ला शिवहरे एक दूसरे के प्रतिद्वंदी थे और एक दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते थे। एक दूसरे की मुखबरी करने के साथ-साथ एक दूसरों को नीचा दिखाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते थे, लेकिन तेल के कारोबार से जुड़े व भाजपा नेता के भाई ने लक्ष्मीनारायण शिवहरे व लल्ला शिवहरे के बीच न केवल दोस्ती कराकर साझेदार बनवाया और धंधे के लिए पैसा भी फायनेंस किया। मध्यप्रदेश के अलावा इस समूह का कारोबार उत्तरप्रदेश, झारखंड में भी फैला हुआ है और वहां भी आयकर विभाग द्वारा कार्रवाई की गई है। शराब कारोबार के अलावा इस समूह के कॉलेज मालवा इंस्टिट्यूट के अतिरिक्त मंगलसिटी स्थित पब लेबल थ्री, शाजापुर स्थित रेगंट बियर एंड वाइन, भारतीय बिल्डकॉन व डेवकॉन के साथ तगड़ा जमीनी निवेश भी पाया गया है। इंदौर में योजना क्र. 54 स्थित निवास, शेखर प्लेनेट, शेखर रेसीडेंसी के अलावा अन्य निवास स्थानों और इस समूह से जुड़े पिंटू भाटिया उर्फ हरमिंदरसिंह के योजना क्र. 74 स्थित निवास और कार्यालयों पर भी छापे डाले गए हैं। शिवहरे परिवार लंबा-चौड़ा है, लिहाजा उनके सभी रिश्तेदारों, भाई-भतीजों के ठिकानों पर भी छापामार कार्रवाई की गई। शराब कारोबार तो इस समूह का पूरे प्रदेश में सबसे बड़ा है ही, वहीं जमीनी निवेश के अलावा शराब के कारखाने भी डाले गए और कॉलेज के अलावा अन्य गतिविधियां भी की जाती रहीं। आयकर विभाग ने जांच-पड़ताल के दौरान अरबो रुपए से अधिक की कर चोरी का अनुमान लगाया है। छापे के दौरान जो दस्तावेज, डायरी या अन्य लेन-देन के कागजात मिले हैं उनसे यह भी उजागर होता है कि एक दर्जन से अधिक पुलिस तथा आबकारी विभाग के अधिकारियों ने अपनी काली कमाई भी शराब के धंधे में खपा रखी है। आयकर विभाग छापे के दौरान मिले कागजात और डायरियों के आधार पर लल्ला के धंधे में निवेश करने वालों की सूची बना रहा है।
सबको जोड़ बनाया सिंडीकेट
शिवहरे ने शराब के बड़े कारोबारियों को जोड़ा और शराब दुकानों का सिंडीकेट बना लिया। फिर उसके इशारे पर देसी और अंग्रेजी शराब के रेट तय किए जाने लगे। इस चाल ने छोटे ठेकेदारों की कमर तोड़ दी। जिसने साथ दिया फायदे में रहा, जिसने अकड़ दिखाई वह इस धंधे से ही बाहर हो गया। आयकर विभाग की टीम ने घर-दफ्तर से जो दस्तावेज जब्त किए हैं, उनमें कुछ ऐसे दस्तावेज भी शामिल हैं, जिसमें कई बड़े शराब ठेकेदारों से संबंध उजागर हुए हैं। आयकर विभाग की टीम दस्तावेजों को खंगाल कर यह पता लगा रही है ठेकेदारों की यारी किन-किन व्यवसायों में चल रही है।
-ज्योत्सना अनूप यादव

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