महिलाएं कभी रिटायर नहीं होतीं
15-Dec-2015 10:37 AM 1234833

शायद नवीं या दसवीं कक्षा में थी। भइया के दोस्त अरूण भइया के घर गई थी। वहां जाकर देखा तो लोग अरूण भइया के पापा को बधाई देने आ रहे थे। कोई कह रहा था कि चलो भाईसाहब अब तो आराम मिलेगा, तो कोई कह रहा था कि चलिए अब तो भागदौड़ से छुट्टी मिली। कई अन्य लोग भी ठहाके लेकर जिंदगी की रोजमर्रा की भागदौड़ से अब सुकून मिलने की बात कर रहे थे। हर किसी के चेहरे पर मुस्कान थी। अंकल जी भी अपनी नौकरी लगने से लेकर रिटायर होते तक के किस्से सुना रहे थे, लोगों को बता रहे थे कि उन्हें कैसे यह सरकारी नौकरी मिली थी और आफिस में क्या-क्या होता था। चेहरे पर एक सुकून भी था। कुछ अन्य लोग भी अपने किस्से सुनाने में पीछे नहीं थे। शायद यह रिटायरमेंट का एक गेट टू गेदर था। इन सबके बीच आंटी जी चुपचाप बैठी थीं। मैं उस समय छोटी थी तो इन सब बातों की समझ नहीं थी लेकिन यह जरूर लग रहा था कि आंटी जी शांत हैं। तभी किसी ने आंटी जी से कहा कि आंटी जी अब आपको भी आराम मिलेगा। अब आप दोनों साथ में घूमो, फिरो, तीर्थयात्रा करो बस। वह अपनी खड़ी भाषा में बोलीं तेरे अंकल जी को घूमने का शौक ना है, इन्हें तो बस घर ही भावें। फिर बिना किसी भाव के बोलीं, महिलाओं का कहां होवे रिटायरमेंट। आदमी तो 60 साल में रिटायर भी हो जावें लेकिन औरतें तो ताउम्र रिटायर ना होवें। जब तक जान में जान रहे, तब तक चूल्हे चौके से कहां छुट्टी मिले। मैं उस समय परिपक्व नहीं थी लेकिन न जाने क्यूं यह बात मुझे हमेशा याद रही कि आखिर महिलाएं कहां रिटायर होवें। गाहे-बगाहे काम-धाम करते आंटी जी की यह बात हमेशा याद आ जाती थी।
अभी कुछ दिनों पहले भाभी की बुआ के घर जाना हुआ। दिल्ली में ही रहती हैं। सेंट्रल स्कूल के शिक्षिका पद से रिटायर हुईं हैं। अपने पति, बेटी और उनके बच्चों संग दिल्ली के लाजपत नगर में रहती हैं। उनके घर गए तो देखा कभी पानी लाती, कभी नाश्ता तो कभी कुछ और। मैंने कहा बुआ जी रहने दीजिए, हम खुद ले लेंगे, आप थक जाएंगी। कहती थीं, नहीं बेटा यह तो रोज का काम है। मैंने पूछा कि रिटायरमेंट के बाद खालीपन सा लगता होगा तो बोलीं कि नहीं बेटा मुझे तो लगता ही नहीं कि मैं कभी नौकरी भी करती थी। आज तो पूरा दिन घर के कामकाज में ही निकल जाता है। गुडिय़ा (उनकी बेटी, वह भी शिक्षिका है) सुबह बच्चों संग स्कूल जाती है, इसलिए सुबह पांच बजे ही उठ जाती हूं। सब स्कूल चले जाते हैं तब थोड़ी फुर्सत पाती हूं। कहती हैं कि मुझे तो अब समझ ही नहीं आता कि पहले नौकरी के साथ यह सब काम मैंने कैसे मैनेज किए। सोचकर यकीन ही नहीं होता अपने आप पर। घर पर रहो तो एक मिनट की फुर्सत नहीं मिलती। तुम्हारे फूफा जी तो रिटायरमेंट के बाद खूब सोते हैं ऐसा लगता है कि न जानें कब की नींद पूरी कर रहे हैं, लेकिन मेरा तो दिनभर कुछ न कुछ काम लगा रहता है। उन्हें देखकर अरूण भइया की मम्मी की वह बात फिर याद आ गई कि औरतें कभी रिटायर नहीं होतीं।

बेटों को तवज्जो देने का सिलसिला जारी है
लोगों की साक्षरता और सम्पन्नता बढऩे के बावजूद उनकी सोच नहीं बदली है। हाल ही में आए परिवार के आकार और लिंगानुपात के आंकड़ों के मुताबिक बेटा पाने की चाहत में लोग गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जांच करवाने और बार-बार गर्भधारण जैसे तरीके अपना रहे हैं। इसके मुताबिक बड़े परिवारों में लिंगानुपात में कम अंतर नजर आया। इससे पता चलता है कि जिन परिवारों में बेटे कम थे या नहीं थे वहां बार-बार प्रेग्नेंसी को चुना गया। या यूं कहें कि तब तक बार-बार गर्भधारण किया जाता है जब तक कि बेटा पैदा न हो जाए। यही वजह है कि ऐसे परिवारों की संख्या 9 लाख थी जिनमें सभी 6 लड़कियां थीं जबकि सभी 6 बेटों वाले परिवारों की संख्या महज 3 लाख ही थी।
-माया राठी

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