19-Mar-2013 10:19 AM
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उत्तरप्रदेश में सियासी तूफान चल रहा है। कुंडा के बलिपुर गांव में डीएसपी जियाउल हक की नृशंस हत्या के बाद बाहुबलि राजा भैया ने उत्तरप्रदेश के खाद्य एवं रसद मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। राजा भैया से यह इस्तीफा इसलिए लिया गया है क्योंकि जियाउल हक की मौत से उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी के महत्वपूर्ण मुस्लिम वोट बैंक के दिवालिया होने का खतरा उत्पन्न हो गया है। जियाउल हक को पहले तो बुरी तरह पीटा गया और बाद में उनकी सर्विस रिवाल्वर से उन्हें ही गोली मार दी गई। पुलिस कह रही है कि एक गोली मारी गई जबकि अपुष्ट सूत्र कह रहे हैं कि जियाउल हक को तीन गोलियां लगी थीं, लेकिन दो गोली पुलिस ने राजा भैया के दबाव में निकाल दीं। देखा जाए तो यह पुलिस से मुठभेड़ का मामला लगता है डीएसपी हक राजा भैया के अपराध के साम्राज्य को ध्वस्त करने की लड़ाई लड़ रहे थे, कुंडा में चल रहे काले कारनामे उनके बर्दाश्त के बाहर थे वे कई बार अपने परिवार से कह चुके थे कि मेरी जान को खतरा है क्योंकि कुंडा में राजा भैया की सहमति के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता है जो कोई राजा भैया के विरोध में खड़ा होता है उसे सजा-ए-मौत मिलती है। जियाउल हक इसके बाद भी लड़ते रहे जिस दिन उनकी हत्या हुई उस दिन रात के करीब 8 बजे उन्हें ग्राम वलीपुर में दो गुटों के बीच फायरिंग की सूचना मिली। जब वे घटनास्थल पर पहुंचे तब तक ग्राम प्रधान नन्हे यादव और उसका छोटा भाई सुरेश गोलियों का शिकार हो चुका था। बदमाशों ने डीएसपी को भी घेर लिया और उनकी रिवाल्वर छीनकर तीन गोलियां दाग दी जिनमें से एक गोली जियाउल हक के फेफड़े को चीरते हुए निकल गई।
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि दोनों ही घटनाओं में राजा भैया का ड्राइवर गुड्डू शामिल है। गुड्डू और एक अन्य आरोपी राजीव को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। एफआईआर में राजा भैया व

उनके तीन करीबियों के नाम डीएसपी की पत्नी परवीन आजाद ने दर्ज कराए हैं। परवीन का कहना है कि राजा भैया के इशारे पर ही उसके पति को मारा गया है। क्योंकि राजा भैया के काले कारनामों को उसका पति अंजाम तक नहीं पहुंचने देता था। राजा भैया उसे अपनी राह में बहुत बड़ा रोड़ा मानते थे। राजा भैया का आतंक इतना है कि उनकी राह में जो भी आता है वह या तो मौत की नींद सुला दिया जाता है या फिर उसका स्थानांतरण ऐसी जगह हो जाता है कि जहां उसका कैरियर पूरी तरह तबाह हो जाता है। परवीन के रुख के बाद ही राजा भैया के खिलाफ सरकार हरकत में आई। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने डीएसपी के परिजनों को 50 लाख रुपए की सहायता और परिवार के दो सदस्यों को सरकारी नौकरी की पेशकश भी की, लेकिन इससे बात नहीं बनी। परवीन आजाद न्याय के लिए अड़ गई और उन्हीं की सख्ती का नतीजा है कि अखिलेश यादव को न केवल राजा भैया की मंत्रीमंडल से विदाई करनी पड़ी बल्कि इस घटना के सीबीआई जांच के आदेश भी दिए गए। हालांकि बाद में परवीन सरकार से सौदेबाजी करती भी नजर आई। उधर ग्राम प्रधान के परिवार को मात्र 20 लाख रुपए मिलने से यादवों में रोष है। इस घटना ने राज्य सरकार को बुरी तरह हिलाकर रख दिया है। पिछले 11 महीने के दौरान 11 से अधिक सांप्रदायिक दंगे राज्य में भड़क चुके हैं। अल्पसंख्यकों की संपत्ति जलाई गई है तथा कुछ हिंदूवादी नेताओं की हत्या भी हुई है। कुंभ में अव्यवस्था के कारण भगदड़ भी मची तथा श्रद्धालुओं को भारी तकलीफ भी उठानी पड़ी, लेकिन सबसे ज्यादा बढ़कर यूपी में पनपता गुंडाराज है। जिसके चलते उत्तरप्रदेश में आम आदमी भयभीत है। अखिलेश यादव ने जब उत्तरप्रदेश में प्रचार किया था तो उन्होंने जनता को आश्वासन दिया था कि वे प्रदेश में भयमुक्त शासन देंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। जिसका खामियाजा समाजवादी पार्टी को आगामी लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है और सत्ता में वापसी के सपने देख रही समाजवादी पार्टी की नैय्या लोकसभा चुनाव के समय डगमगा भी सकती है। इस मुद्दे पर देश की संसद में भी हंगामा हुआ। उधर विधानसभा में भी मायावती ने सरकार की खिंचाई की। बलीपुर में मारे गए डीएसपी जियाउल हक की पत्नी परवीन आजाद ने अपने पति के शव को लेकर धरना भी दिया और आरोपी राजा भैया को तत्काल गिरफ्तार करने की मांग की। परवीन ने तो आत्महत्या की धमकी भी दी थी जिसके कारण स्वयं मुख्यमंत्री को उनके घर जाकर उन्हें मनाना पड़ा। इस मामले पर राजनीति भी जमकर होने लगी है। कांग्रेस राज्य में मुस्लिमों के बीच जनाधार बढ़ाने का भरसक प्रयास कर रही है और कांग्रेस के ही इशारे पर जामा मस्जिद के शाही इमाम सैय्यद अहमद बुखारी ने जियाउल हक के पैतृक गांव नूनखार का दौरा किया। इससे सियासी तापमान और गर्मा गया है। समाजवादी पार्टी ने कुछ माह पूर्व विधानसभा चुनाव के समय सभी वर्गों में अपनी पहुंच बनाते हुए धमाकेदार जीत हासिल की थी। ठाकुरों, मुस्लिमों, यादवों के अलावा पिछड़े वर्ग में भी समाजवादी पार्टी को पसंद किया गया, लेकिन राजा भैया प्रकरण ने सपा के लिए नई मुश्किलें पैदा कर दी हैं। यदि राजा भैया की गिरफ्तारी होती है तो एक बहुत बड़ा समुदाय समाजवादी पार्टी से रूठ भी सकता है। उधर राजा भैया को प्रश्रय देने की स्थिति में मुस्लिम समुदाय का वोट बैंक 5-10 प्रतिशत गड़बड़ा सकता है और यह समाजवादी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका साबित होगा। वैसे राजा भैया के अलावा भी बहुत से बाहुबलि प्रदेश में सक्रिय हैं। जिस वक्त मायावती सत्ता में थीं उस समय उन्होंने राजा भैया सहित कई बाहुबलियों पर लगाम लगाने की कोशिश की थी, लेकिन समाजवादी पार्टी के सत्तासीन होते ही गुंडागर्दी तेजी से बढ़ गई। यहां तक की राज्य की पुलिस स्वयं को असुरक्षित महसूस करने लगी। पीपीएस एसोसिएशन के अध्यक्ष जुगल किशोर तिवारी ने फेसबुक पर अपनी भड़ास निकालते हुए लिखा है कि जब तक भ्रष्ट, सत्ता के गुलाम, जातिवादी और अपुंसक, बदत्तमीज अधिकारी शीर्ष पर रहेंगे, उनके हाथों में नेतृत्व रहेगा, उन्हें पुरस्कृत किया जाता रहेगा, तब तक स्थिति में कोई सुधार होने वाला नहीं है। तिवारी के इस कथन में उत्तरप्रदेश पुलिस की सच्चाई छुपी हुई है। उत्तरप्रदेश में पुलिस का मुराल बहुत नीचे जा चुका है। वह बाहुबलि विधायकों से लेकर अपराधिक रिकार्ड वाले मंत्रियों की सुरक्षा करने को विवश हैं। जिन लोगों के हाथ में हथकड़ी होना चाहिए उन्हीं के हाथ में सत्ता की बागडोर है ऐसे में पुलिस स्वतंत्र रूप से भला काम कैसे कर सकती है। इसी कारण उत्तरप्रदेश की राजनीति में अखिलेश यादव सरकार की किरकिरी हो रही है। प्रतापगढ़ में फायरिंग में मारे गए ग्राम प्रधान और उनके भाई के परिजन भी सरकार को लानत-मलानत भेज रहे हैं। उत्तरप्रदेश में अखिलेश सरकार पर भेदभाव के आरोप लगते रहे हैं। तांडा में रामबाबू गुप्ता की हत्या में विधायक अजीमुल हक पर आरोप लगा था लेकिन उस मामले में अखिलेश सरकार ने कोई तत्परता नहीं दिखाई। योगी आदित्यनाथ के तांडा पहुंचने की आशंका भर से प्रशासन ने उन्हें गाजियाबाद में उतरवा लिया था। प्रतापगढ़ के हत्याकांड की पृष्ठभूमि में भी आठ माह पुरानी एक बड़ी घटना है जिसमें 10 साल की एक दलित बच्ची को बलात्कार के बाद मार दिया गया। इस घटना के जिम्मेदार 2-3 मुस्लिम युवकों को पकड़ा गया लेकिन उन्हें जमानत मिल गई। समझा जाता है कि हाल ही में मारे गए डीएसपी जियाउल हक ने इस मामले की तफ्तीश की थी और कथित रूप से भदेभाव तफ्तीश करने के कारण राजा भैय्या के समर्थक भड़के हुए थे।
बाहुबलियों का साम्राज्य
अतीक अहमद- बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के आरोप में जेल में बंद। हत्या, लूट और रंगदारी के करीब 35 मुकदमें दर्ज। इलाहाबाद में दहशत का दूसरा नाम अतीक अहमद को माना जाता है।
बृजेश सिंह- पूर्वांचल ही नहीं कई राज्यों में संगठित अपराध का मास्टर माइंड। उड़ीसा से गिरफ्तार। पहचान छुपाकर भुवनेश्वर में रियल स्टेट का व्यवसाय करता था माफिया डॉन। बताते हैं कि कॉन्ट्रेक्ट किलर ब्रजेश सिंह हत्या करने के लिए सिंगापुर से भुवनेश्वर पहुंचा था, लेकिन उससे पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ गया।
धनंजय सिंह: बीएसपी से जौनपुर के सांसद। हत्या, लूट और रंगदारी जैसे कई संगीन मुकदमे दर्ज। मायावती से बताया था जान का खतरा। मायावती ने पार्टी से निकाल दिया था। लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र नेता के तौर पर अपना जीवन शुरू करने वाले धनंजय सिंह का साथ पहले लखनऊ के माफिया अरूणशंकर शुक्ल उर्फ अन्ना के अलावा अम्बेडकर नगर के माफिया अभय सिंह ने दिया। हालांकि बाद के दिनों में इन तीनों ने अपना साम्राज्य अलग-अलग कर लिया।
डी.पी.यादव- शराब माफिया। कई संगीन आरोप। बेटे विकास यादव, नीतीश कटारा की हत्या के आरोप में जेल में बंद।
हरिशंकर तिवारी- पूर्वांचल का ये ऐसा माफिया है जो सत्ता में बने रहने के लिए कभी भी और कहीं भी पाला बदल सकता है। पहले कांग्रेस में थे, फिर बीजेपी और उसके बाद एसपी का साथ दिया और अब इनका पूरा कुनबा बीएसपी में हैं। इनके खिलाफ 26 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए। इसमें हत्या, हत्या की कोशिश, एक्सटार्शन, सरकारी काम में बाधा, बलवे जैसे मामले भी शामिल हैं।
मुख्तार अंसारी- कौमी एकता दल से मऊ से विधायक। पूर्वांचल का अहम बाहुबली। भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या आरोप। लूट, अपहरण, रंगदारी जैसे कई मामले दर्ज। बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसके अफसरों तक को धमकियां दी जा रही थीं।