लोकपाल विवाद के बावजूद वाइब्रेंट गुजरात
31-Dec-2012 06:30 PM 1234785

नरेंद्र मोदी का वाइब्रेंट गुजरात चरम सीमा पर है। यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में लोकपाल की नियुक्ति को जायज ठहराते हुए मोदी सरकार को झटका दिया है, लेकिन उसके बाद भी मोदी सिरमौर हैं।

उद्योगजगत ने उन्हें अपने सर आंखों पर बिठा रखा है। गांधी नगर में वाइब्रेंट गुजरात समिट के दौरान उद्योगपतियों की लॉबी ने मोदी को प्रदेश में अधिक से अधिक निवेश का भरोसा तो दिलाया ही उनकी तारीफों के भी पुल बांधे और इन तारीफ करने वालों में सबसे आगे थे रिलायंस इंडस्ट्रीज के मालिक अनिल अंबानी। अनिल अंबानी ने तो कुछ इस अंदाज में तारीफ की मानो वे तारीफ नहीं चाटुकारिता कर रहे हों। अनिल अंबानी के बोलने का अंदाज ऐसा था जैसे मोदी, मोदी न होकर भगवान हैं। अंबानी ने मोदी की तुलना महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके स्वयं के पिता धीरूभाई अंबानी से करने में कोई कंजूसी नहीं की। वाइब्रेंट गुजरात में बहुत से बड़े घरानों ने वर्ष 2009 की तरह ही बड़े भारी निवेश का आश्वासन दिया। वर्ष 2009 में इसी प्रकार के वाइब्रेंट गुजरात मीट में लगभग 66.8 लाख करोड़ रुपए के निवेश का वादा किया गया था, जिसमें से कुल 8.50 प्रतिशत निवेश ही हो पाया है। लेकिन निवेश की गति पहले की अपेक्षा तेज अवश्य हुई है क्योंकि राजनीतिक अस्थिरता को साधने में मोदी कामयाब रहे हैं। यह बात अलग है कि इस दौरान बिहार, मध्यप्रदेश जैसे कई राज्यों ने भी कहीं आगे बढ़कर निवेश को आकर्षित करने में कामयाबी प्राप्त की। कहा जा रहा है कि अगले तीन सालों में निवेश गुजरात की तस्वीर बदलकर रख देगा। अकेले मुकेश अंबानी ने अगले तीन वर्षों में 1 लाख करोड़ रुपए का निवेश जाम नगर जैसे जिलों में करने की घोषणा की है।
मुकेश अंबानी ने 5 सौ करोड़ रुपए की लागत से एक विशाल विश्वविद्यालय बनाने का आश्वासन भी दिया जो गुजरात सरकार के सहयोग से बनाई जाएगी। टाटा समूह ने भी 34 हजार करोड़ रुपए के निवेश का वादा किया। जिसमें ज्यादातर निवेश आटोमोबाइल क्षेत्र में किया जाएगा। मारुति सुजुकी के चेयरमैन आरसी भार्गव का कहना था कि गुजरात में वर्ष 2013 से ही उनका एक नया प्लांट बनना शुरू होगा जो कि 2015 से कारों का उत्पादन करना शुरू कर देगा। इसी प्रकार एचडीएफसी बैंक ने प्रदेश में 250 नई शाखाएं खोलने का वादा किया।
एसआर ग्रुप भी गुजरात में बड़ा भारी निवेश करने जा रहा है जो एक लाख 9 हजार 481 करोड़ के करीब होगा। इसके अलावा 14 हजार करोड़ रुपए इसी समूह द्वारा बंदरगाहों के विकास के लिए खर्च किए जाएंगे। जिनसे 15 हजार नौकरियां पैदा हो सकेंगी। अदानी समूह ने 5 हजार नई नौकरियां पैदा करने का आश्वासन दिया है। यह समूह अगले कुछ वर्षों में लगभग 15 सौ करोड़ रुपए गुजरात में लगाने जा रहा है। लार्सन एंड टर्बो ने 8 हजार करोड़ रुपए हजीरा इकाई में पहले ही निवेश कर दिए हैं। इससे कम से कम पांच हजार लोगों को रोजगार मिल सकेगा। मोदी का मुख्य फोकस प्रदश्ेा में निवेश के द्वारा श्रेष्ठतम रोजगार उत्पन्न करने का है, लेकिन राजनीतिक रूप से उनकी चुनौतियां बदस्तूर जारी हैं। गुजरात के कानून मंत्री भूपेंद्र सिंह चुडास्मा ने हालांकि लोकायुक्त के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने का आश्वासन दिया है पर यह फैसला गुजरात में किस रूप में लागू हो सकेगा इस बात पर खासी बहस की जा रही है। चुडास्मा ने इस बात को खारिज किया है कि लोकायुक्त पर सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार की पराजय हुई है। चुडास्मा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार की यह दलील मानी है कि राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह के मुताबिक काम करना है। चुडास्मा के इस बयान से इतना तो समझा ही जा सकता है कि गुजरात में जब भी लोकायुक्त की नियुक्ति होगी वह मंत्रीपरिषद की सलाह से ही होगी और लोकायुक्त नरेंद्र मोदी के इशारे पर काम करने वाले को ही बनाया जाएगा। उधर कांग्रेस ने इस मुद्दे पर राज्य सरकार को लपेटना शुरू कर दिया है। कांग्रेस का कहना है कि गुजरात में पिछले 8 साल से भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने वाले लोकायुक्त का पद ही खाली है। इससे भाजपा का दोहरा चरित्र उजागर होता है। वह केंद्र में लोकायुक्त चाहती है लेकिन गुजरात में लोकायुक्त के पक्ष में नहीं है।
दरअसल लोकायुक्त का विवाद गुजरात में उस समय उठा जब तत्कालीन राज्यपाल कमला बेनीवाल ने अपनी पसंद का लोकायुक्त राज्य में नियुक्त करवा दिया था। राज्य सरकार ने इस नियुक्ति को हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे उचित बताया तो फिर इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यद्यपि राज्यपाल मंत्रीपरिषद की सलाह पर कार्य करने को बाध्य है तथापि लोकायुक्त के मामले में गुजरात राज्यपाल का फैसला जायज है। भाजपा ने इस निर्णय से असहमति प्रकट की है। भाजपा नेता अरुण जेटली का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला लोकपाल की नियुक्तियों पर अदालतों  के लिए एक नजीर बन सकता है। उन्होंने कहा कि इस व्याख्या के अनुसार तो लोकापाल की नियुक्ति के मामले में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता सिर्फ मूकदर्शक बने रहेंगे। जेटली के विरोध के बाद अब लग रहा है कि यह विवाद आगे जाएगा। हालांकि मोदी इन सबसे अविचलित हैं।
द्यअहमदाबाद से सतिन देसाई

 

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