सर क्रीक पर क्यों मुखर हुए मोदी
30-Nov-2012 06:30 PM 1234789

गुजरात विधानसभा चुनाव में सब कुछ ठीक चल रहा था मोदी ने मेहनत करके विकास के मुद्दे को ही केंद्र में रखा हुआ था।

सोनिया और राहुल गांधी की सभाएं भी इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द केंद्रित थी। यहां तक कि गुजरात के दंगों का जिक्र सांप्रदायिक परिप्रेक्ष्य में नहीं बल्कि अन्याय के परिप्रेक्ष्य में किया जा रहा था। किंतु प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की एक सभा ने गुजरात का चुनावी रंग बदल दिया। मनमोहन ने कहा कि गुजरात में अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं। मनमोहन के इस कथन के बाद मोदी का काउंटर अटैक बहुत जानदार था। मोदी ने इस बात के उत्तर में पहले तो इरफान पठान जैसे क्रिकेटर को अपने मंच पर आमंत्रित करके विरोधियों को झकझोर दिया और बाद में उन्होंने पीएमओ को एक पत्र लिख डाला जिसमें कहा गया कि भारत सरकार सर क्रीक लाइन को पाकिस्तान को सौंपने की हिमाकत न करें। ऐसा करना देश की संप्रभुता के साथ खिलवाड़ होगा। मोदी ने सोच-समझ कर एक तीन से कई निशाने साधे उन्होंने चुनाव आयोग की तिरछी नजर से बचने के लिए आम आदमी की हैसियत से प्रधानमंत्री को यह पत्र भेजा और यह पत्र भी भेजा गया, पाकिस्तान के विदेश मंत्री के भारत आगमन से कुछ दिन पूर्व। ताकि जनता में यह संदेश जाए कि मोदी चुनाव में अपनी गद्दी बचाने के लिए ही बेचैन नहीं हैं बल्कि वे तो देश को बचाने के लिए भी उतने ही बेचैन है। सर क्रीक को भारत पाकिस्तान को नहीं सौपेगा इस बात में कोई संदेह नहीं है फिर भी मोदी ने यह संदेह पैदा किया उनके पत्र ने खलबली मचाई। प्रधानमंत्री कार्यालय बौखला गया और इस आरोप को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि यह दावा शरारत भरा है। क्योंकि मोदी ने गुजरात चुनाव में मतदान के पहले ऐसा कहा है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने पत्र के जवाब में कहा कि इस कथित तथ्य पर नरेंद्र मोदी की और से निकाले गए निष्कर्ष भी वास्तविक नहीं हैं। पत्र की विषय वस्तु और इसे सार्वजनिक किए जाने का समय इस मुद्दे के पीछे मोदी के मकसद पर सवाल उठाता है। पीएमओ ने कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री ने भारत सरकार से इससे जुड़े तथ्य जानने की कोशिश किए बगैर ही यह आरोप लगाए हैं।
मोदी ने जिस शैली में यह पत्र लिखा था उससे साफ जाहिर था कि वे इस मुद्दे को सनसनीखेज बनाना चाहते थे, जिसकी बानगी उस चुनावी सभा में दिखी जिसमें मोदी ने उनके पत्र के जवाब में पीएमओ की सफाई पर कई कटाक्ष किए। इसीलिए उन्होंने प्रधानमंत्री को आगाह किया कि सर क्रीक मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ बातचीत तुरंत स्थगित की जानी चाहिए। सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने मोदी की इस हरकत पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि मोदी अपने खिसकते वजूद को सहारा देने के लिए इस तरह की ओछी राजनीति कर रहे हैं और उन्होंने एक काल्पनिक मुद्दे को उछाला है। यदि मनीष तिवारी का आरोप पूरी तरह सही न होकर आंशिक रूप से भी सही है तब भी मोदी का यह पैंतरा कई सवाल खड़े कर रहा है। मोदी चुनाव जीत रहे हैं इस बात की संभावना पूरी तरह जताई जा रही है। मीडिया से लेकर सारे सर्वेक्षण की भी यही राय है, लेकिन बात यहीं तक नहीं है। सांप्रदायिकता को केंद्र में रखने की कांग्रेस की रणनीति को अब मोदी हर हाल में तोडऩा चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने सर क्रीक जैसा मुद्दा उठाया है और कहा है कि उस पर कोई भी समझौता भारत के लिए एक रणनीतिक पराजय होगी। 9 हजार वर्ग किलोमीटर का सर क्रीक एरिया भारत और पाकिस्तान के बीच गुजरात में समुद्री सीमा से प्रारंभ होकर लंबे क्षेत्र तक जाता है। सौ वर्ष पहले कच्छ और सिंध के शासकों के बीच विवाद बढ़ा था तो इस पर एक समझौता किया गया था। इसी समझौते के आधार पर सर क्रीक लाइन अस्तित्व में आई जिसे भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के द्वारा मान्यता मिली हुई है। छुट-पुट घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो सर क्रीक लाइन पर कोई बड़ी घटना आमतौर पर सुनने में नहीं आती है। मोदी का कहना है कि पाकिस्तान सर क्रीक लाइन को संवेदनशील बनाने में जुटा हुआ है और कुछ माह पूर्व पाकिस्तान की सेना एयरफोर्स तथा नेवी ने सीस्पार्क-12 नामक युद्धाभ्यास भी इसी सीमा के निकट किया था। प्रश्न यह है कि मोदी को यह किसने बताया कि भारत सर क्रीक लाइन पर कोई विशेष समझौता करने जा रहा है। मोदी ने यह भी आशंका जताई कि एक्सकलूसिव इकोनॉमिक जोन पर कोई भी फैसला सौराष्ट्र और कक्ष क्षेत्र के मछुआरों के हितों को नुकसान पहुंचाएगा। मोदी की इस सियासी चाल के कई माइने हंै सरकार सर क्रीक लाइन को लेकर कोई बात कर रही है अथवा नहीं यह तो ज्ञात नहीं है, लेकिन मोदी पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद को केंद्र में रखकर गुजराती जनमानस के मन में खलबली पैदा करना चाहते हैं ताकि इसका चुनावी लाभ मिल सके। यह लाभ विधानसभा के साथ-साथ लोकसभा चुनाव में भी उनकी वैतरणी पार लगा सकता है। इस बात से वे अच्छी तरह वाकिफ हैं। इसी कारण गुजरात चुनाव में राजनीतिक हथकंडों का दौर तेजी से चला और इसकी लपट अब देश की राजनीति पर पडऩा तय है। यह तो सत्य है कि 20 दिसंबर को जब यह लेख आपके समक्ष पहुंचेगा मोदी की किस्मत का फैसला हो चुका होगा और यदि कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो नतीजे उन्हीं अनुमानों के इर्द-गिर्द घूमेंगे जो पहले लगाए जा रहे थे। चुनावी विश्लेषकों का यह कहना है कि मोदी राजनीति की पिच पर टिक कर खेल रहे हैं। कहां आक्रामक होना है और कहां डिफेंसिव यह उन्हें अच्छी तरह पता है। इसी कारण आक्रामकता के साथ-साथ उन्होंने चुनाव के दौरान कई बार लचीला रुख भी दिखाया, लेकिन मोदी का आत्मविश्वास देखकर लगता है कि फिलहाल भारतीय जनता पार्टी गुजरात में पराजित नहीं हो सकती। कांग्रेस तथा विपक्ष के पास किसी चेहरे का अभाव होना भी इसका एक कारण है। चुनावी नतीजे थोड़े बहुत निकट हो सकते हैं, लेकिन ज्यादा अनापेक्षित नहीं होंगे यह तय है और इसके लिए मोदी को कुछ श्रेय तो उस कथित पीआर कंपनी को भी देना होगा जो कथित रूप से सारे विश्व में मोदी की छवि का निर्माण कर रही है। देखना यह है कि मोदी को यह पीआर कंपनी पीएम के पद पर कब पहुंचा पाती है?
द्यअहमदाबाद से सतिन देसाई

 

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