02-Jan-2016 07:02 AM
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यादों और नई उम्मीदों के साथ नए साल का आगाज हो गया है। हमने कई ख्वाब पाले, सरकार ने सपने दिखाए और प्रशासन ने काम करने के दावे किए। आम आदमी तकलीफों से जूझा तो तमन्नाएं पूरी होने पर मुस्कुराया भी। वर्ष

पर्यन्त कई घटनाओं ने अंदर तक हिला दिया तो कई क्षण ऐसे भी आए कि मन नाचने लगा। इन तमाम उतार-चढ़ाव के बाद देश की जनता ने वर्ष 2016 का बड़ी उम्मीद और आकांक्षा के साथ स्वागत किया है। देश की सवा सौ करोड़ से अधिक की जनता को उम्मीद है कि इस नए साल में उनके अच्छे दिन जरूर आएंगे। लोगों की उम्मीद को पंख इससे भी लग गए हैं कि आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, वैश्विक और ज्योतिषिय आंकलन भी इसका संकेत दे रहे हैं। ऐसे में देश में विकास के पर्याय के रूप में देखे जा रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का राज कसौटी पर रहेगा। वहीं कांग्रेस के लिए नया साल सुखद संदेश लेकर आया है। जहां मध्यप्रदेश में पहले झाबुआ-रतलाम संसदीय उपचुनाव में फिर वहां कुछ नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी को सफलता मिली हैं वहीं 2015 के अंतिम दिन छत्तीसगढ़ में 11 निकाय क्षेत्रों में से 8 में जीत का स्वाद चखने को मिला है। साल के अंतिम महीने में मिली ये जीत कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी पार्टी को संजीवनी दे सकती है। वहीं नया साल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के लिए भी चुनौती भरा रहेगा। अब देखना यह है कि नए साल में कौन कितने दम से अपनी पार्टी को मजबूती प्रदान करता है।
ज्योतिषियों के अनुसार, वर्ष 2016 का आगाज कन्या लग्न और फाल्गुनी नक्षत्र में हुआ है। सप्तमी तिथि के दिन शुरू हुए नव वर्ष का सूर्योदय शुक्रवार को हुआ है, शुक्र सुख-समृद्धि, वैभव देने वाला ग्रह है। इसकी अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी हैं। ज्योतिषियों के अनुसार नया साल किसानों, महिलाओं और युवाओं के लिए अच्छा रहेगा यानी बीते साल हुए नुकसान की भरपाई नए साल में होने की संभावना है। भविष्यवाणियों के अनुसार मोदी सरकार के लिए वर्ष 2016 प्रशासकीय, चुनावी, आर्थिक एवं विदेश नीति की रणनीतियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। यह वर्ष यह सिद्ध कर देगा कि मोदी का करिश्मा जारी रहेगा या पीछे की ओर फिसल जाएगा। वहीं यह वर्ष मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए भी चुनौती पूर्ण रहेगा। तीनों राज्यों में लगभग 17 करोड़ की आबादी को अभी भी अपनी-अपनी सरकारों से कई उम्मीदें लगी हुई हैं। इन सरकारों के दावे कागजों पर ही लहराते दिखे जबकि जमीन पर सूखा ही सूखा नजर आया। इन तीनों सरकारों ने अपने इस कार्यकाल के दो वर्ष पूरे कर लिए हैं लेकिन इनके चुनावी वादे अभी भी अधूरे हैं। इससे इन सरकारों पर जनता के पैमाने पर खरा उतरने की चुनौती है।
जहां तक केंद्र की मोदी सरकार की बात है तो इस सरकार को जनता के दरबार में खरा उतरने के लिए अभी मीलों का सफर तय करना है। दरअसल, मोदी सरकार ने 2014 में जिन परिस्थितियों में सत्ता संभाली थी, वे खुद उनके लिए तो चुनौतीपूर्ण थी हीं, देश भी इस दुविधा में फंसा हुआ था कि उसे किस तरह आगे बढ़ाना है। संप्रग सरकार के समय भ्रष्टाचार और नीतिगत निष्क्रियता के कारण देश में निराशा का माहौल था। 2014 के आम चुनाव में लोगों ने भारी अपेक्षाओं व उम्मीदों के साथ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को केंद्र की सत्ता के लिए निर्णायक जनादेश दिया। जनता को उम्मीद थी कि समस्याएं बुनियादी रूप से दूर होने लगेंगी और तीव्र आर्थिक विकास के साथ रोजगार के नए अवसर निर्मित होंगे। लेकिन सरकार के 20 माह के घटनाक्रम पर निगाह डालने पर यही नजर आता है कि जहां कुछ मोर्चों पर सरकार सफल हुई वहीं अनेक ऐसे मसले भी रहे, जहां उसे नाकामी का सामना करना पड़ा।
जानकारों का कहना है कि संप्रग सरकार से उसे विरासत में जो अर्थव्यवस्था, विशेषकर बुनियादी ढांचा मिला वह अनुमान से कहीं अधिक बदहाल था और इसे दुरुस्त करने में समय लगना ही है। ऐसे में आम जनता नए साल में यह देखना चाहेगी कि विकास की रफ्तार क्या है और रोजगार के कितने नए अवसर सृजित हो रहे हैं। इस दिशा में न केवल तेज गति से काम होना चाहिए, बल्कि वह आम जनता को दिखना भी चाहिए। मोदी सरकार ने आधार योजना के जरिए सब्सिडी को सीधे लाभार्थी के खाते तक पहुंचाने की पहल कर न केवल भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई, बल्कि सब्सिडी के दुरुपयोग को भी रोका है। यह पहल वास्तव में मनमोहन सरकार के समय की गई थी, लेकिन उस पर प्रभावशाली तरीके से अमल का श्रेय मोदी सरकार को जाता है। सब्सिडी में सुधार की कामयाबी के बाद अब केंद्र सरकार को बुनियादी क्षेत्र की परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने पर अपना जोर लगाना चाहिए और साथ ही जनकल्याण वाले अपने कार्यक्रमों जैसे जनधन खाते, बीमा योजना और मुद्रा योजना को लोकप्रिय बनाना होगा। मोदी सरकार जिस एक अन्य मोर्चे पर बेहद सफल साबित हुई वह है विदेश नीति में नई जान फूंकना। चाहे प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों का असर हो या नीतियों में स्पष्टता का नतीजा, हर कोई यह महसूस कर रहा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का मान-सम्मान बढ़ता जा रहा है। विश्व के प्रमुख मुद्दों पर भारत की सकारात्मक भूमिका और दखल को भी सराहा जा रहा है।
हम चीन को पछाड़ देंगे
नया साल भारत का है। भारत 2016 के दौरान विकास दर के मामले में चीन को पछाड़ देगा। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने ऐसा अनुमान लगाया। आईएमएफ के मुताबिक इस साल भारत की विकास दर 6.3 फीसदी रहेगी और 2016 में 6.5 फीसदी। आईएमएफ ने नई सरकार के आर्थिक सुधारों की उम्मीद जगाने वाला बताया, लेकिन कहा कि इन्हें लागू करना अहम है। आईएमएफ की तरफ से जारी की गई वल्र्ड इकनॉमिक रिपोर्ट अपडेट में कहा गया है कि साल 2014 में भारत की विकास दर 5.8 फीसदी रही है, जबकि चीन की 7.4 फीसदी। 2013 में भारत की विकास दर 5 फीसदी थी, जबकि चीन की 7.8 फीसदी। आईएमएफ ने कहा कि 2015 में भारत की विकास दर 6.3 फीसदी और 2016 में 6.5 फीसदी रहने का अनुमान है, जबकि चीन की विकास दर 2016 में घटकर 6.3 फीसदी रहने का अनुमान है। इसका मतलब यह हुआ कि विकास दर के मामले में भारत चीन को पछाड़ देगा।
रोजगार के लिहाज से नया वर्ष अच्छे दिन लाने वाला है। जहां वेतन में 10 से 30 प्रतिशत के दायरे में वृद्धि की उम्मीद है वहीं प्राइवेट सेक्टर में खासकर ई-वाणिज्य और मन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में तेज गति से कर्मचारियों को नियुक्त किए जाने की संभावना है। सातवें वेतन आयोग से भी तेजी आने की संभावना है। इससे सरकारी कर्मचारियों के वेतन में अच्छी-खासी वृद्धि होगी और उसका असर प्राइवेट सेक्टर में भी देखा जा सकता है। इस वर्ष में ह्यूमन रिसोर्स एक्सपर्ट ने वेतन में 12 से 15 प्रतिशत जबकि टॉप टाइलेंट को 30 प्रतिशत तक वृद्धि मिलने की उम्मीद कर रहे हैं। कुछ सर्वे में पहले ही कहा जा चुका है कि ग्लोबल लेवल पर नई नियुक्तियों के मामले में भारतीय कंपनियां नए वर्ष को लेकर ज्यादा आशावादी हैं।
राजनीतिक उथल-पुथल होगी
नए साल 2016 में सरकार कई सुधारों का एलान तो करेगी लेकिन उस पर क्रियान्वयन कम से कम इस साल भी नजर नहीं आएगा। भारत के संदर्भ में 2016 का साल, आरोपों-प्रत्यारोपों के साथ राजनीतिक भूलों के लिए याद किया जाएगा। इस साल आंदोलनों की अधिकता रहेगी। सत्तासीन लोग बयानबाजी में अपनी मर्यादा के निचले पायदान पर नजर आयेंगे। विवाद में वृद्धि होगी। वैसे राज्य जहां भाजपा की सरकार नहीं है और केंद्र के बीच टकराव बढ़ेगा। केंद्र सरकार का अडिय़ल रवैया विपक्ष को हमलावर बनाएगा। सरकार का विरोध बढ़ेगा। 2016 का कैलेंडर कई गलतियों का साक्षी भी बनेगा। सरकार कोष भरने के लोभ में जनता के कष्ट का कारक बनेगी। वादे, बड़े-बड़े होंगे पर जनता को इस साल भी कुछ हासिल नहीं होगा। किसी बड़े नेता या प्रसिद्ध व्यक्ति की क्षति होगी। शनि की मंगल के घर में मौजूदगी राज्यों के चुनाव में हिंसा का रंग दिखाएगी। पश्चिमी देशों और पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक, इरान, सीरिया जैसे देशों में आतंकवाद आंखों में आंसू भर देगा। वहां बड़ी जनहानि के संकेत 2016 के अंत तक बने रहेंगे।
मध्यप्रदेश: वादे रहे अधूरे
मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार अपनी तीसरी बार की चालीस फीसदी पारी खेल चुकी हैं। अब तक जनता से किए वादों में कुछ पूरे हुए हैं, जबकि अधिकांश बाकी है। जनता को इंतजार है कि कब सरकार अपने वादे पूरा करेगी। इस बार सरकार के चुनावी वादों में प्रमुख थे सबको आवास योजना, नई फसल बीमा योजना, मेडिकेयर पॉलिसी और छोटे मकानों की बिल्डिंग परमिशन। लेकिन हकीकत यह है कि हालात में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। 15 लाख मकान बनना है। सभी 378 शहरों का रोडमेप बन रहा। ओले-पाले और सूखे ने दो साल में किसानों की कमर तोड़ दी है। सरकार ने अलग से मेडिकेयर पॉलिसी शुरू नहीं की है। 3200 वर्गफीट तक की बिल्डिंग परमिशन आर्किटेक्ट द्वारा दिए जाने का प्रावधान किया गया है। दरअसल, वादे नहीं पूरा होने की कई वजह है। वादे पूरा होने के लिए सरकारी उदासीनता दूर होना जरूरी है। सभी को आवास के लिए 2012 में योजना शुरू, लेकिन लाभ नहीं
ड्राफ्ट बना, केन्द्र की हरी झंडी मिलते ही शुरूआत। योजना के बाद राज्य ने पॉलिसी पर ध्यान नहीं दिया। नए प्रावधान का आर्किटेक्ट विरोध कर रहे हैं।
अमित शाह के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण वर्ष
नया वर्ष भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण साबित होने वाला है। उन्हें साबित करना होगा कि राजनीति में उनकी पकड़ कमजोर नहीं हुई है। 2016 में चुनावी दृष्टि से भाजपा का बहुत कुछ दांव पर नहीं लगा है, क्योंकि असम को छोड़कर उसे किसी अन्य ऐसे राज्य में चुनाव में नहीं उतरना है, जहां उसकी मजबूत दावेदारी हो, लेकिन कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाए रखने के लिहाज से अमित शाह को हर समय सक्रिय रहना होगा। साथ ही विपक्षी एकता की संभावनाओं की काट भी खोजनी होगी। सरकार को भी आम आदमी की अपेक्षाओं को पूरा करने के मामले में सक्रियता दिखानी होगी, क्योंकि देश नए वर्ष में नई शुरुआत के साथ ही बड़े बदलावों की भी प्रतीक्षा कर रहा है।
राजस्थान: वादों की मंजिल अभी दूर
विधानसभा चुनाव के दौरान राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने बड़े-बड़े चुनावी वादे किए थे। जिसमें प्रमुख थे हर गांव-ढाणी में सड़क, पानी की किल्लत होगी खत्म, शिक्षा की अलख फैलेगी और हर हाथ को मिलेगा रोजगार। सरकार के वादे के मुताबिक प्रदेश में 20,000 किलोमीटर सड़कों का निर्माण अब भी हकीकत से कोसों दूर है। इस साल मात्र 3,000 किमी सड़कों के टेंडर हुए हैं। निवेशकों का अनमना रवैया। राज्य के 12 जिलों के 4,700 गांव डार्क जोन में हैं। 3,000 अन्य गांवों में पानी की किल्लत। 26 जनवरी, 2016 को जल संरक्षण मिशन शुरू होगा। वर्ष 2014 में स्कूल एकीकरण से विद्यार्थियों के पंजीयन में कमी आई। बाद में सरकार ने सुधार किए। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में 30 इंजीनियंरिंग बंद हो चुके। इन सब के बीच सरकार का दावा, 60,000 को नौकरियां दी जा चुकी हंै। 1.20 लाख को जल्द दिया जाएगा रोजगार। पर अब भी बड़ी सरकारी भर्तियों का इंतजार।
समस्याएं अभी भी कायम
स्वास्थ्य सेवाओं से बड़ी आबादी वंचित। डॉक्टरों की कमी। विद्युत क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का अभाव, 24 घंटे बिजली नहीं। प्राकृतिक आपदाओं में कृषकों को पर्याप्त मुआवजा नहीं। स्कूलों में शिक्षक और आधारभूत सुविधाएं नहीं। लोकायुक्त कानून मजबूत नहीं, भ्रष्टाचार से लोग त्रस्त। पुलिस एक्ट का अभी तक पूर्ण रूप से पालन नहीं। रोडवेज की हालत खस्ता, कई मार्गों पर परिवहन नहीं। महंगाई बेकाबू, जब्त दाल अब तक बाजारों में नहीं पहुंची। कर्मियों के लिए कोई स्थायी तबादला नीति का अभाव। पर्यटन की अपार संभावनाएं, पर राज्य देश में 5 वें नंबर पर।
इस वर्ष प्रदेश को मिलेंगे नए मुख्य सचिव और डीजीपी
इस साल मप्र को नए मुख्य सचिव और पुलिस के मुखिया भी मिलेंगे। वर्तमान मुख्य सचिव अंटोनी डिसा इस साल अक्टूबर में और पुलिस महानिदेशक सुरेंद्र सिंह जुलाई माह में सेवानिवृत्त हो रहे हैं। नया मुख्य सचिव कौन होगा इसको लेकर अभी से कयास लगाए जा रहे हैं। डिसा के बाद अगर कोई अफसर वरिष्ठता के आधार पर मुख्य सचिव का दावेदार है तो वह हैं 1980 बैच के पीडी मीणा। मीणा वर्तमान समय में केंद्र सरकार में सचिव हैं और ये मुख्य सचिव बनते हैं तो इनका कार्यकाल 9 माह का होगा। इनके अलावा 1982 बैच के अफसरों की दावेदारी भी है। इनमें अरुणा शर्मा, प्रवेश शर्मा, एस.आर. मोहंती का नाम है। हालांकि अरुणा शर्मा भी केन्द्र में जा रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वे डिसा के बाद सीएस बन पाएंगी। अगर ऐसा है तो उन्हें 10 माह में ही दिल्ली से वापस आना होगा। मुख्यमंत्री ने अरुणा शर्मा के नाम की सहमति इसी शर्त पर दी है कि उन्हें मध्यप्रदेश राज्य का कुछ भला करने का विभाग मिले। अगर काम के हिसाब से देखा जाए तो प्रवेश शर्मा की दावेदारी बहुत मजबूत है। परंतु उन्हें मुख्य सचिव बनाने पर कई रोड़े सामने आ सकते हैं। परंतु मुख्यमंत्री अगर चाह ले तो प्रवेश शर्मा अगले मुख्य सचिव हो सकते हैं और वह तीन वर्ष तक इस पद पर रह सकते हैं। वहीं इसी बैच के जेएस माथुर भी केंद्र सरकार में पदस्थ हैं अगर वे सीएस बनते हैं तो उनका कार्यकाल 15 महीने का रहेगा। अभी उन्हें भारत सरकार में सचिव पद पर पदस्थ नहीं किया है। इसी कड़ी में राघव चंद्रा का नाम भी था। लेकिन वे केन्द्र सरकार में सेटल हो गए हैं और उन्हें सेवानिवृत्ति के लिए तो दो ही वर्ष हैं परंतु वह सड़क विभाग में पदस्थ होने पर उन्हें तीन वर्ष की और पोस्टिंग अतिरिक्त मिलेगी। अगर इन अफसरों की दाल नहीं गली तो 1984 बैच के बीपी सिंह की मुख्य दावेदारी हो सकती है। अब देखना यह है कि भाग्य किसका साथ देता है।
वहीं प्रदेश के अगले डीजीपी के लिए वरिष्ठता के आधार पर 1981 बैच के एके धस्माना का नाम आता है, लेकिन वे केंद्र में पदस्थ हैं और उन्हें केंद्र में रॉ प्रमुख की जिम्मेदारी मिल सकती है। ऐसे में वो वापस प्रदेश नहीं लौटेंगे। इसलिए 1983 बैच के ऋषि कुमार शुक्ला की दावेदारी सबसे मजबूत है। अगर शुक्ला डीजीपी बनते हैं तो इनका कार्यकाल 2020 तक का रहेगा। परंतु 2018 में चुनाव के बाद नई सरकार उन्हें डीजीपी रखती है या नहीं यह शोध का विषय है। क्योंकि उनकी कार्यप्रणाली से सारे नेता और अफसर वाकिफ है। 1990 बैच के एसएन मिश्रा को परिवहन के साथ एक और विभाग मिल सकता है। राजेश राजौरा, अल्का उपाध्याय, प्रमोद अग्रवाल को नई जवाबदारी मिल सकती है। वहीं अभी प्रमोट हुए 1992 बैच के पंकज अग्रवाल, वीएल कांताराव, कल्पना श्रीवास्तव, अरुण कुमार पाण्डे को भी नई जवाबदारी दी जा सकती है। कल्पना श्रीवास्तव को पंचायत एवं ग्रामीण विकास का पीएस बनाया जा सकता है। इसी तरह आईपीएस अफसरों में भी भारी फेरबदल की संभावनाएं दिख रही हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री के रिव्यू के बाद आईएएस और आईपीएस में रीसफल होगा। विशेष पुलिस महानिदेशक गुप्त वार्ता का भी हटना तय माना जा रहा है।
छत्तीसगढ़: दावे नहीं दवा की दरकार
नक्सल समस्या से ग्रस्त छत्तीसगढ़ में अच्छे दिन लाने के लिए सरकार के सामने हमेशा चुनौती रही है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने गत विधानसभा चुनाव के दौरान कई वादे किए थे, जिसमें धान पर 300 रुपए प्रति क्विंटल बोनस, किसानों को 5 साल पूरी बिजली मुफ्त मिलेगी, उद्योग में 90 फीसदी स्थानीय युवाओं को काम, स्कूली बच्चियों को मिलेंगी साइकिलें आदि। लेकिन हकीकत यह है कि सूखे के भयावह हालात के बावजूद धान पर बोनस नहीं दिया गया। किसानों के लिए 9 हजार यूनिट बिजली ही मुफ्त दी जा रही है। आउटसोर्सिंग के जरिए नौकरियों में बाहरी युवाओं को तवज्जो और कई बच्चियों को साइकिलों की जगह नगद राशि बांटी गई।
दिग्गजों की साख रहेगी दांव पर
साल 2016 में भी कुछ महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव होने हैं। इन राज्यों में पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के अलावा असम, केरल और केंद्र शासित प्रदेश पॉन्डीचेरी है। साल 2011 में तकरीबन 34 वर्षों के अखंड वाम शासन के बाद ममता बनर्जी ने इस राज्य में चुनावी जीत दर्ज कर सीपीआईएम को हाशिये पर ढकेल दिया था। ममता बनर्जी अब भी राज्य की सबसे प्रख्यात नेता हैं और उनकी धुरविरोधी सीपीआईएम एक अदद जननेता की आवश्यकता महसूस कर रही है। तमिलनाडु में जयललिता ने करुणानिधि की द्रमुक को सत्ता से बेदखल कर सरकार बनाई थी। इस राज्य में बीते कई बार इन्हीं दोनों पार्टियों के बीच सत्ता की अदला-बदली चल रही है। इस लिहाज से यह देखना दिलचस्प होगा कि जयललिता अपनी सरकार बचा पाती हैं या पुरानी गाथा फिर दोहराई जाएगी। इससे उलट असम में साल 2001 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होने के बाद तरुण गोगोई के लिए ये चुनाव किसी कठिन परीक्षा से कम नहीं साबित होने वाले हैं। इसके पीछे यह भी वजह बताई जा रही है कि राज्य में कांग्रेस के कई बड़े नेता भाजपा में शामिल हुए हैं, जो उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। वहीं एंटी इनकमबैंसी फैक्टर भी उनके साथ चिपका हुआ है। केरल में कांग्रेस के ओमान चांडी ने सत्ता पर मजबूती पैर जमाए सीपीआईएम को उखाड़ फेंका था। पांच साल के भीतर राज्य के हालात काफी बदले हैं। वहां वाम दल ने फिर से खुद को मजबूत किया है, वहीं भाजपा ने भी हाल में राजधानी के निकाय चुनाव में जीत हासिल कर अपनी पैठ बनाने की कोशिशों मेंं तेजी ला दी है। पॉन्डीचेरी में कांग्रेस अलग होकर अपनी पार्टी बनाकर मुख्यमंत्री बनने वाले एनआर रंगासामी की सरकार है। इस समय उनकी पार्टी एनआर कांग्रेस एनडीए का हिस्सा है।