04-Apr-2013 08:40 AM
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श्रीलंका में सेना की बर्बर कार्रवाई में मारे गए तमिलों का समर्थन करना भारत में एक अपराध है। ऐसा अपराध जिसके एवज में सीबीआई छापे पड़ सकते हैं। डीएमके ने जब तमिल मुद्दे पर केंद्र सरकार के ढुलमुल रवैये और संयुक्त राष्ट्रसंघ में लाए गए कमजोर प्रस्ताव के विरोध में केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो द्रमुक के मुखिया एम कुरुणानिधि के पुत्र एनके स्टालिन के खिलाफ लिमोजीन आयात पर कर अपवंचना के एक मामले में सीबीआई ने उनके निवास में सवेरे साढ़े पांच बजे छापेमारी की। यह लिमोजीन स्टालिन के बेटे उदयनिधि ने आयात की थी 20 करोड़ की इस गाड़ी के लिए आवश्यक कर नहीं चुकाया गया। इस तरह की एक दर्जन गाडिय़ां आयात की गई जिन्हें अवैध रूप से भारत लाया गया है और कर नहीं चुकाया गया। सीबीआई इस गाड़ी को तलाश रही है। दरअसल यह मामला तो पुराना है, लेकिन अचानक सीबीआई द्वारा समर्थन वापसी के 48 घंटे के भीतर सुबह मुंह अंधेरे कार्रवाई करने से यह साफ हो गया है कि कांग्रेस सीबीआई को हथियार की तरह इस्तेमाल करती है और सरकार को समर्थन दे रहे दलों को साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाकर जोड़े रखना चाहती है जो अलग होता है उसे सीबीआई देख लेती है। मुलायम और मायावती भी कमोबेश इसी कारण सरकार से चिपके हुए हैं। ममता बनर्जी जब सरकार से अलग हुई थीं तब उन्हें भी इसी तरह की धौंस दिखाई गई थी, लेकिन वे दबाव में नहीं आईं अब हालत यह है कि बंगाल की केंद्र में कोई पूछ-परख नहीं है। बहरहाल इस छापे ने कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति को गरमा दिया है। वित्तमंत्री पी. चिदंबरम और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इन छापोंं को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है और कहा है कि वे इस कार्रवाई का कड़ा विरोध करते हैं। चिदंबरम का कहना है कि कारण चाहे जो रहा हो किंतु उन्हें डर है कि इससे गलत संदेश जाएगा। यह भी कहा गया कि इन छापों की सीबीआई डायेक्टर को भी भनक नहीं लगने दी गई। बाद में उन्होंने मामले की जांच करने का भी कहा।
उधर केंद्रीय मंत्री कमलनाथ ने कहा कि सीबीआई के मार्फत सरकार किसी प्रकार का दबाव नहीं बना रही है। सीबीआई के छापे पर करुणानिधि के पुत्र एमके स्टालिन ने कहा है कि यह राजनीति से प्रेरित छापे हैं जिनका असलियत से कुछ लेना-देना नहीं है। स्टालिन ने कहा कि साफ दिख रहा है कि यूपीए सरकार खतरे में हैं इसलिए छापे पड़वा रही है। डीएमके के अन्य नेताओं ने भी इन छापों की तीव्र आलोचना करते हुए कहा कि सरकार से समर्थन वापस लेने के चंद घंटों बाद ही छापेमारी की कार्रवाई से साफ है कि सरकार तमिलों की समस्याओं के प्रति गंभीर नहीं है। तमिलनाडु में इस समय राजनीतिक माहौल श्रीलंका विरोधी हो चला है। आईपीएल में श्रीलंकाई खिलाड़ी अब तमिलनाडु में नहीं खेल सकेंगे। जयललिता ने कहा है कि भारत श्रीलंका को मित्र राष्ट्र न माने। जबसे श्रीलंका में तमिलों के दमन की खबरें मिली हैं इस दक्षिण भारतीय राज्य में मांग की जा रही है कि केंद्र सरकार श्रीलंका के खिलाफ कठोर कदम उठाते हुए जाफना में किए गए तमिल नरसंहार पर संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव लेकर आए और इन सारे मानव अधिकार उल्लंघन के मामलों की जांच करवाए। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी श्रीलंका में मानव अधिकार के उल्लंघन पर चिंता जताई है और जांच की मांग की है। भारत सरकार की दुविधा यह है कि श्रीलंका एक मित्र देश है, लेकिन श्रीलंका का लगातार विरोध करना भारत को महंगा पड़ सकता है। क्योंकि श्रीलंका का झुकाव लगातार चीन की तरफ होता जा रहा है। इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार श्रीलंका के मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है ताकि द्विपक्षीय संबंध खराब न हों, भारत सरकार की इस ढुलमुल नीति से तमिलनाडु में बेहद नाराजगी है। मुख्यमंत्री जयललिता ने कुछ समय पूर्व श्रीलंका के खिलाडिय़ों को वापस लौटा दिया था। श्रीलंका से आए राजनीतिज्ञों का भी तमिलनाडु में विरोध होता रहा है। डीएमके सरकार में शामिल है और इसी कारण उस पर यह दबाव बढ़ गया है कि वह सरकार को कठोर कदम उठाने के लिए बाध्य करे। इसी क्रम में डीएमके ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए समर्थन वापसी की घोषणा की है। डीएमके के 18 सांसद हैं और वह सरकार में कांग्रेस के अलावा सबसे बड़ी पार्टी है उसके पांच मंत्री हैं जिन्होंने इस्तीफा दे दिया है। संप्रग से डीएमके का नाता टूटने से सत्तारूढ गठबंधन की संख्या घटकर 224 रह गई है। हालांकि अभी भी बाहर से विभिन्न दलों के समर्थन के कारण सरकार के पक्ष में 281 सांसद हैं। इसीलिए सरकार की स्थिरता को फिलहाल कोई खतरा नहीं है, लेकिन आने वाले दिनों में सरकार परेशानी में आ सकती है क्योंकि द्रमुक के अलग होने के बाद सरकार को अन्य दूसरी पार्टियों पर निर्भर होना पड़ेगा। तमिल समस्या को लेकर केंद्र सरकार ने कई दशकों से कोई विशेष प्रभावशाली नीति नहीं बनाई। राजीव गांधी ने श्रीलंका में शांति सेना भेजने की नादानी की जिसके फलस्वरूप उनकी दुखद हत्या कर दी गई। श्रीलंका में तमिल उग्रवाद की समस्या जितनी जटिल थी उससे कहीं अधिक जटिल अब वहां तमिलों को मुख्यधारा में लाने की समस्या बनती जा रही है। जिस तरह जाफना में लिट्टे से लड़ाई के दौरान श्रीलंका की सेनाओं ने निर्दोष लोगों को मारा, महिलाओं से बलात्कार किया, बच्चों तक को नहीं बख्शा उन घटनाओं के कारण तमिलों में बेहद आक्रोश है और तमिलनाडु की जनता की सहानुभूति स्वाभाविक रूप से उनके साथ है।
ऋतेन्द्र माथुर