04-Apr-2013 06:43 AM
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संजय दत्त को सजा हुई तो बेनी प्रसाद वर्मा ने चुटकी ली कि जो नेताजी (मुलायम सिंह यादव) की संगत में रहेगा उसका यही हश्र होगा। नेताजी पर शायद बेनी प्रसाद वर्मा का यह कटाक्ष उतना लागू नहीं होता, लेकिन संजय दत्त की अंडरवल्र्ड के जिन खासÓ लोगों से निकटता थी उस निकटता ने उनका वही हश्र किया जो होना था। सुप्रीम कोर्ट ने टाडा की विशेष अदालत द्वारा दी गई छह वर्ष की

सजा में रियायत देते हुए संजय दत्त को पांच वर्ष की सजा सुनाई है। यह सजा मुंबई बम कांड के दौरान तलाशी के समय संजय दत्त के पास से बरामद एके-47 रायफल के प्रकरण में सुनाई गई है। इस बम कांड में 257 लोग मारे गए थे और यह जगजाहिर है कि याकूब मेनन से लेकर दाउद इब्राहिम तक अंडरवल्र्ड के तमाम लोग इस साजिश के पीछे थे। इनमें से कुछ ऐसे भी थे, जिनसे संजय दत्त के दोस्ताना रिश्ते रहे हैं। हालांकि यह बिल्कुल सत्य है कि मुंबई बम कांड से संजय दत्त का दूर-दूर तक कोई ताल्लुक नहीं है। लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में एके-47 बंदूक रखना एक बड़ा अपराध है। संजय दत्त अपने परिवार के सुरक्षा को लेकर चिंतित थे इसलिए उन्होंने एके-47 खरीदी। प्रश्न यह है कि उन्हें खतरा किससे था। क्या वे उन्हीं भाई लोगोंÓ से भय खा रहे थे जो उनके गले में हाथ डाला करते थे। अक्सर गले में डला हुआ हाथ गर्दन तक पहुंचने में टाइम नहीं लगता। संजय दत्त तो एक मोहरा मात्र हैं फिल्मी दुनिया में भाई लोगों ने कईयों को गले लगाया है और जो उनके गले नहीं लगे उन्हें गुलशन कुमार की तरह अंजाम तक भी पहुंचा दिया है। एक जमाने में बालीवुड के खतरनाक विलेन प्रेम चोपड़ा से लेकर बड़े-बड़े स्टार डॉन की पार्टी में ठुमके लगाते देखे गए हैं। क्या यह अपराध नहीं है? इसीलिए संजय दत्त को जब सजा हुई तो बहुत से लोग उनके समर्थन में भी जुट गए। जिनमें से प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्केण्डेय काटजू भी हैं जो राज्यपाल से गुजारिश कर चुके हंै कि संजय दत्त की सजा माफ कर दी जाए। लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति को देखें तो यह होना अब संभव नहीं लग रहा है। हालांकि संजय दत्त पुनर्विचार याचिका दायर कर सकते हैं पर उसमें भी ज्यादा गुंजाइश नहीं है इसीलिए उनके करीबी सलाह दे रहे हंै कि साढ़े तीन वर्ष का समय गुजर जाएगा। इसे गुजार लिया जाए वही बेहतर है। संजय दत्त भी रूंधे गले से प्रेस के सामने यही कह रहे थे कि वे सजा भुगतेंगे। दरअसल सुनील दत्त महाराष्ट्र की राजनीति में जिस गति से ऊपर चढ़ रहे थे और जिस तरह उन्हें मुख्यमंत्री पद के संभावित प्रत्याशी के रूप में भी देखा जाने लगा था उसे देखकर जलने वालों की संख्या कम नहीं थी। सुनील दत्त को धराशायी करने के लिए ही जब संजय दत्त का मुद्दा हाथ लगा तो कांग्रेेस ने जानबूझकर ढिलाई बरती। खासकर महाराष्ट्र में जिस तरह से उनके प्रतिद्वंदी आक्रामक रुख अपनाए हुए थे उसके चलते संजय दत्त को इम्युनिटी मिलना संभव नहीं था। इसी कारण टाडा में जो गुंजाइश हो सकती थी वह गुंजाइश भी संजय दत्त को नहीं मिली। बाद में राजग सरकार के कार्यकाल में शत्रुघन सिंहा ने मित्रता निभाते हुए राजनीतिक स्तर पर जितना भी सहयोग हो सकता था उतना किया लेकिन संजय दत्त समाजवादी पार्टी के पाले में चले गए। कांग्रेस को संजय दत्त को यह कदम पसंद नहीं आया। अब हालात बदले हुए है। संजय दत्त ने भले ही मासूमियत में हथियार जमा किए हों लेकिन भारत के संविधान के मुताबिक उन्हें सजा होना तय है। स्वयं सुनील दत्त ने यह तय करके रखा था कि वे संजय को बचाने के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाएंगे। बल्कि उन्होंने यह भी कहा था कि वे कानून का सम्मान करते हैं और कानूनी जिरह के दायरे में ही संजय दत्त का मामला सुलझना चाहिए। एक पिता होने के नाते सुनील दत्त ने 16 माह की जो लंबी लड़ाई लड़ी उसने उन्हें भीतर तक तोड़ दिया। खासकर जिस पार्टी के लिए वे काम कर रहे थे उस पार्टी से उन्हें कोई समर्थन नहीं मिला इस बात से भी वे हताश थे, उधर राजनीति मेें संजय निरुपम जैसे नेताओं ने उन्हें तंग कर रखा था। सुनील दत्त के निधन के बाद अब संजय दत्त को राजनीतिक रूप से ज्यादा तवज्जो मिलने की उम्मीद भी नहीं है। उनके प्रति जो सहानुभूति थी वह पहले की तरह होने की संभावना क्षीण हो चुकी है। इसी कारण अब संजय दत्त ने भी अपनी नियति स्वीकार कर ली है। इस मामले में टाडा कोर्ट ने बारह दोषियों को मृत्युदंड दिया था और 20 को उम्रकैद भी लेकिन उच्चतम न्यायालय ने याकूब मेमन की फासी की सजा को बरकरार रखते हुए बाकी 10 दोषियों की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। इसका अर्थ यह है कि उन्हें मृत्यु होने तक जेल में ही रहना पड़ेगा। जिन 20 दोषियों को उम्रकैद की सजा मिली थी उनमें से 17 की सजा बरकरार रखी है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि याकूब मेमन भगोड़े अपराधियों के बाद हमले का सबसे बड़ा दोषी है।
संजय दत्त को सजा के बाद फिल्मी दुनिया में सन्नाटा छाया हुआ है। संजय दत्त के अपराध ने उनसे बहुत कुछ छीना है। एक समय अमिताभ बच्चन के बाद बालीवुड का शहंशाह संजय दत्त को कहा जाता था, लेकिन जब वे शीर्ष पर थे तभी उनकी गिरफ्तारी का फरमान आ गया। कुछ ऐसा ही अभी हुआ है जब दर्जनों हिट फिल्म देने के बाद अचानक संजय दत्त सलाखों के पीछे जा रहे हैं। इससे फिल्मी दुनिया में उनके ऊपर लगे करीब 300 करोड़ रुपए साीधे-सीधे डूब जाएंगे। उधर बहुत से निर्माताओं ने संजय दत्त को ध्यान में रखकर फिल्मों की स्क्रिप्ट तैयार करवाई थी। अब उनकी योजना को भी धक्का पहुंचेगा। संजय दत्त ने कुछ समय पूर्व मान्यता से पुनर्विवाह किया था उनके दो छोटे बच्चे हैं वे पारिवारिक जीवन में रम गए थे लेकिन अब निश्चित रूप से इस खुशहाल परिवार की आकांक्षाओं को इस सजा से आघात पहुंचेगा। संजय दत्त ने परिवार का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत से माफी की याचना की थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने उन्हें रियायत देने से मना कर दिया। संजय दत्त की सजा राज्यपाल द्वारा माफ की जाएगी इस बात की संभावना भी कम ही है। क्योंकि इससे राजनीतिक विरोध बढऩे की संभावना बनी रहती है। कुल मिलाकर हालात कुछ ऐसे हैं कि मुन्नाभाई संजय दत्त को जेल में ही गांधीगिरी दिखानी पड़ सकती है और वक्त का तकाजा भी कुछ ऐसा है कि संजय दत्त ठंडे दिमाग से सजा को स्वीकार कर लें उसी में भलाई है।
इनको कब होगी सजा
मुंबई बम धमाकों में जिन खूंखार और पत्थर दिल आतंकवादियों की फांसी की सजा को न्यायालय ने उम्रकैद में तब्दील किया है उनके प्रति न्यायालय की नरमी की वजह चाहे जो हो लेकिन यह तय है कि आम जनता ने इन अपराधियों को माफ नहीं किया है। लेकिन इस बात का संतोष है कि कम से कम वे न्याय की दहलीज तक तो पहुंचे। पर कुछ ऐसे भी हैं जो भारत के पड़ौसी देश पाकिस्तान में बैठकर भारत के खिलाफ साजिश रचते रहे, लेकिन उन्हें हम अपनी अदालतों में लाने में नाकामयाब रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं दाउद इब्राहिम और छोटा शकील। 1993 में हुए बम धमाकों के मामले में 2006 में टाडा कोर्ट के फैसले के बाद दाउद इब्राहिम के गुर्गे छोटा शकील ने कानून का सामना करने की इच्छा जताई थी, लेकिन उसकी शर्त थी कि इस मामले की सुनवाई 90 दिन के भीतर खत्म हो। शकील की यह शर्त उस महिला पत्रकार ने संबंधित एजेंसियों को सुना दी थी, लेकिन उसके बाद छोटा शकील के विषय में सरकार ने क्या किया यह अभी तक ज्ञात नहीं है। मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों ने अपनी गूंज में अनेक लोगों की खुशियों को खामोश कर दिया था। 12 मार्च को उस दुखद दिन के बीस वर्ष पूरे हो गए हैं। आज भी लोगों के जहन में उस दिन की दहशत इस कदर जिंदा है कि लोग इस दिन की घटना को याद कर फिर कराह उठते हैं। दुनिया के इतिहास में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर सीरियल बम धमाके हुए थे। आज भी लोगों को इंतजार है इन बम धमाकों को कराने वाले दाऊद इब्राहिम को होने वाली सजा का। 12 मार्च 1993, दिन शुक्रवार वो तारीख है जिसे भारत के इतिहास में ब्लैक फ्राइडे के नाम से जाना जाता है। देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई इसी दिन एक के बाद एक हुए 12 सिलसिलेवार धमाकों से दहल उठी थी। धमाकों में ढ़ाई सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और सात सौ अधिक लोग जख्मी हो गए थे। इन धमाकों से लगभग 27 करोड़ से अधिक राशि की संपत्ति नष्ट हो गई थी। स्वतंत्र भारत में अब तक का यह सबसे पेचीदा मामला माना जाता है। आज तक भी इस मामले का मुख्य अभियुक्त दाऊद इब्राहिम पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद फैले दंगों में सोने की तस्करी करने वाले टाइगर मेमन का बिजनेस तबाह हो गया था। मेमन ने अपनी बर्बादी का बदला लेने के लिए मुंबई को दहलाने की साजिश रची। हालांकि पूरी दुनिया इस बात से वाकिफ है कि दाऊद आईएसआई की सरपरस्ती में कराची में ही सुकून की जिंदगी जी रहा है और उसको पाक सरकार का सरंक्षण भी मिला हुआ है। बावजूद इसके पाक सरकार इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है। सीबीआई के अनुसार मुंबई धमाकों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से दाऊद इब्राहिम ने अंजाम दिया था। दाऊद अमरीका द्वारा जारी आतंकियों की सूची में है और इंटरपोल को भी उसकी तलाश है।
अब सुरक्षा एजेंसियां भी अंदरखाने यह सवाल उठा रही हैं कि पाकिस्तान की सरपरस्ती में पल रहे हाफिज सईद, मौलाना मसूद अजहर, जकी उर रहमान लखवी और दाऊद इब्राहिम जैसे मोस्ट वांटेड आतंकियों को सरकार कैसे दबोचेगी? रक्षा विशेषज्ञ इस मामले में सरकार की ठोस योजना और मजबूत इच्छाशक्ति पर भी प्रश्न चिह्न लगा रहे हैं। पाकिस्तानी मामलों के विशेषज्ञ मारूफ रजा ने कहा कि सरकार के पास अच्छा मौका था कि जेल में बंद कसाब और अफजल के मुंह से ही पूरी दुनिया को पाकिस्तानी करतूतों की कहानी सुनाती लेकिन यह मौका गंवा दिया गया। उन्होंने सरकार की उस नीति पर भी सवाल खड़े किए जिसके तहत पाकिस्तानी न्यायिक आयोग को कसाब और बाकी गवाहों से जिरह (क्रास एक्जामिनेशन) की इजाजत नहीं दी गई थी। जानकारों ने मुताबिक, इससे आतंकी की जुबानी ही पड़ोसी मुल्क की सच्चाई बाहर आ सकती थी जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका होता लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं कर पाकिस्तान को बचने का पूरा मौका दिया। भारत के पूर्व राजदूत और कूटनीतिज्ञ विशेषज्ञ जी पार्थसारथी ने कहा है कि भारत अक्सर पाकिस्तान को अपनी मनमाफिक बात करने का पूरा मौका दे देता है। पिछले दिनों पाकिस्तान के आंतरिक सुरक्षा मामलों के मंत्री रहमान मलिक को न्यौता देकर सरकार ने यही गलती दोहराई थी। अब पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के भटके हुए युवाओं में अफजल की फांसी को शहादत का दर्जा देकर हिंसा भड़काने की पूरी कोशिश करेगा।
विशेषज्ञों की राय में यह पाकिस्तान और उससे जुड़े आतंक के मामलों में ठोस नीति नहीं होने का नतीजा है। इससे पहले एनडीए सरकार ने पाकिस्तानी सैनिक शासक परवेज मुशर्रफ को वार्ता के लिए आमंत्रित किया था जो कारगिल युद्ध का मास्टर माइंड था। इस ढुलमुल नीति के साथ पाकिस्तान में शरण ले रखे भारत के गुनहगारों तक पहुंचना निकट भविष्य में संभव नहीं दिखाता।
मुंबई से बिंदु माथुर