माननीयों का इमोशन बवाल किसानों की समस्या दरकिनार
15-Dec-2015 11:02 AM 1234771

आपदा ग्रस्त किसानों को राहत देने, उनकी समस्याओं पर चर्चा करने तथा उसका समाधान निकालने के लिए मध्यप्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र मुख्यत: आयोजित किया गया। लेकिन इस सत्र में किसानों के मुद्दे पर चर्चा सबसे कम हुई और बेवजह के मसलों को उठाकर हंगामा खड़ा किया गया। इससे न केवल विधानसभा का वक्त जाया हुआ बल्कि कई महत्वपूर्ण मसलों पर चर्चा भी नहीं हो सकी। पूरवर्ती सत्रों की तरह इस सत्र की शुरूआत भी हंगामे के साथ हुई। दरअसल, सत्र शुरू होने से पहले ही कांग्रेस को किसानों को नकली और हल्की खाद की आपूर्ति तथा बड़वानी आंखफोड़वा कांड का मुद्दा हाथ लग गया था। इनको लेकर कांग्रेसियों ने पहले ही दिन हंगामा किया। विपक्षी दल कांग्रेस ने प्रश्नकाल के दौरान प्रदेश सरकार पर किसानों का संकट बढ़ाने का आरोप लगाते हुए सदन से वॉक आउट कर दिया। उसके बाद कोई भी दिन ऐसा नहीं रहा जिस दिन कांग्रेसियों का इमोशनल और पॉलिटिकल ड्रामा नजर न आया हो।
पूरे सत्र के दौरान कांग्रेस द्वारा जनहित के नाम पर सदन में बेवजह के मुद्दे उठाकर कार्रवाई को बाधित किया गया। इसी प्रकार का एक मुद्दा कांग्रेस विधायक आरिफ अकील ने उठाया, जिसके कारण सदन की कार्यवाही बाधित हुई। दरअसल, सीएम हाउस में सर्वधर्म समभाव की परंपरा का निर्वहन सभी धर्मों के त्यौहारों-पर्वों पर किया जाता है। सिख धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार गुरुनानकदेव का जन्म दिवस प्रकाश पर्व भी मुख्यमंत्री आवास पर मनाया गया। इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस आयोजन में हाथ में तलवार लेकर सिख धर्म की परंपरा का पालन किया। मुख्यमंत्री की हाथ में तलवार वाली फोटो विभिन्न अखबारों में प्रकाशित हुई। इसको लेकर कांग्रसियों ने सदन में सवाल खड़े किए, जो सर्वथा उचित नहीं था। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि कांग्रेसियों के सवाल पर जब मंत्री जवाब देने खड़े हुए तब भी हंगामा खड़ा किया गया।
इस सत्र में वित्त वर्ष 2015-16 के लिए तृतीय अनुपूरक बजट पेश किया गया था। बजट में 5889 करोड़ रुपए से अधिक का प्रावधान किया गया है। इसमें पंचायती राज संस्थाओं को वित्तीय सहायता देने के लिए सबसे ज्यादा 1843 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। अनुपूरक बजट में अगले वर्ष उज्जैन में होने वाले सिंहस्थ को ध्यान में रखते हुए उसके खर्चों के लिए 800 करोड़ रुपए रखे गए हैं। विकास कार्यों के ऋण की ब्याज अदायगी के लिए बजट में 345 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। अनुपूरक बजट में सिंहस्थ, बिजली, सड़क, सिंचाई, कृषि सहित अन्य कामों के लिए राशि के प्रावधान किए गए। कांग्रेस विधायकों ने इस अनुपूरक बजट को भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला बताया। कांग्रेसियों का कहना था कि बजट की आड़ में सरकार प्रलोभन देकर जनता को ठग रही है। ज्ञात हो कि सूखा राहत के लिए राशि जुटाने सरकार ने एक दिन का विधानसभा सत्र बुलाया था। इसमें 3 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान सूखा राहत के लिए विभिन्न विभागों की योजनाओं की राशि काटकर किया गया था।
विधायको को वेतन की चिंता
प्रदेश सूखे की चपेट में है, सीएम चर्चा पर चर्चा क रहे हैं, अफसर समीक्षा में लगे हैं और किसान आत्महत्या का आंकड़ा कम होने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसे में प्रदेश के विधायकों को अपना 71 हजार रुपए मासिक वेतन भी कम लग रहा है और अब वे 1 लाख रुपए महीने का मासिक वेतन मांग रहे हैं। यह मांग दिल्ली मेंं विधायकों के वेतन में चार गुना वृद्धि के बाद और ज्यादा तेज हो गई है। विधायक निधि और वेतन-भत्ते बढ़ाने की मांग को लेकर बीजेपी, कांग्रेस और बसपा विधायक एकजुट होकर सीएम से मिले। सदन की कार्यवाही के बीच बीजेपी विधायक रमेश मेंदोला, सुदर्शन गुप्ता, अनिल फिरोजिया, सत्यपाल सिंह सिकरवार, कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी, मधु भगत सहित लगभग 20 विधायकों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से उनके चेंबर में मिले। विधायकों ने पड़ोसी राज्यों में ज्यादा विधायक निधि मिलने की बात रखते हुए कहा कि इसे पांच करोड़ तक बढ़ाया जाए। इसी तरह स्वेच्छानुदान 7 लाख से बढ़ाकर 25 लाख रुपए किया जाए। अभी प्रदेश में विधायकों को 77 लाख रुपए क्षेत्र विकास निधि मिलती है। विधायकों ने वेतन-भत्ते बढ़ाने की मांग भी मुख्यमंत्री के सामने रखी। कुछ विधायकों ने प्रोटोकॉल में मुख्य सचिव से ऊपर होने का हवाला देते हुए उनसे अधिक वेतन-भत्ते देने की बात कही, तो कुछ ने कहा कि जिला और जनपद अध्यक्षों को हमसे ज्यादा पावर है, वे हमारी सुनते तक नहीं हैं। मुख्यमंत्री ने विधायकों को भरोसा दिलाया कि अफसर राज नहीं आने दूंगा, आपका सम्मान और स्थान बरकरार रहेगा। ज्ञात हो कि विधानसभा समिति ने महंगाई भत्ते से जोड़ते हुए वेतन-भत्ते तय करने का प्रस्ताव सरकार को दे दिया है।
विधानसभा समिति ने विधायकों के वेतन-भत्ते 71 हजार से रुपए से बढ़ाकर एक लाख रुपए की अनुशंसा की है। राज्य में सूखे की स्थिति को देखते हुए सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं किया है। निर्णय मुख्यमंत्री को लेना है। सीएम की हरी झंडी के बाद कैबिनेट की मोहर और फिर विधानसभा में संशोधन विधेयक लाया जाएगा। 13 साल पहले यानी वर्ष 2001 तक विधायकों को कुल 10 हजार रुपए वेतन मिलता था। इसमें सभी वेतन-भत्ते शामिल थे। इसके बाद 25 हजार और फिर 35 हजार रुपए वेतन किया गया। फिर 50 हजार 250 और अब 71 हजार रुपए वेतन विधायकों को मिल रहा है। उनकी मांग है कि इसे बढ़ाकर एक लाख रुपए किया जाए।  कमेटी ने प्रस्ताव दिया है कि विधायकों के वेतन को महंगाई भत्ता (डीए) से जोड़ दिया जाए। अधिकारी-कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढऩे के साथ ही उनका भी वेतन बढ़ जाएगा। ऐसे में बार-बार वेतन बढ़ाने के लिए कमेटी गठित करने और सरकार तक फाइल भेजने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वेतन-भत्ता अन्य खर्च समिति के अध्यक्ष एवं विधानसभा उपाध्यक्ष राजेन्द्र सिंह का कहना है कि समिति ने अपनी रिपोर्ट स्पीकर को सौंप दी है। विधायकों का वेतन डीए से जुड़ जाएगा, तो अधिकारी-कर्मचारियों के साथ उनका वेतन भी बढ़ जाएगा। विधायकों का कहना है कि उन्हें विकास कार्यों के लिए जो राशि मिलती है वह पर्याप्त नहीं है। अनुपूरक मांगों पर हुई बहस के दौरान कांग्रेस के जीतू पटवारी ने मामले को सदन में उठाया। उनका कहना था, कि राशि की मांंग को लेकर साथी विधायकों के साथ वह सीएम से मिले थे। लेकिन अधिकारियों ने सीएम की स्वेच्छानुदान की राशि बढ़ा दिया। बावजूद इसके विधायकों को नजर अंदाज कर दिया गया। इस दौरान उन्होंने बेजा चर्चा पर कटौती की मांग करते हुए सरकार द्वारा प्रस्तावित दिल्ली में दो फ्लैट खरीदने व मुंबई स्थित भवन के मेंटीनेंश पर खर्च किए जाने वाले 2.50 करोंड़ रूपए राशि की जांच कराए जाने पर जोर भी दिया। बाद में मीडिया से चर्चा करते हुए पटवारी ने बताया, कि क्षेत्र के विकास व जनता को राहत देने के लिए आवश्यक है, कि न केवल विधायक निधि बल्कि स्वेच्छानुदान में भी बढ़ोत्तरी की जाए। कांग्रेस के ही सुखेंद्र सिंह बन्ना ने इस संबंध में बताया, कि इस तरह का प्रकरण समिति के सामने विचारार्थ रखा है। जिसमें विधायक निधि को 0.77 करोड़ के बजाय 1.85 करोड़ व स्वेच्छानुदान 15 लाख करने का प्रस्ताव है। रीवा जिले के मनगवां से भाजपा विधायक गिरीश गौतम का कहना है कि विकास कार्यों के लिए विधायक द्वारा प्रदान की गई राशि से भी क्षेत्र में निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाते हैं। उनका आरोप था, कि वर्ष 2015-16 में मऊगंज में सुलभ शौचालय निर्माण के लिए 7 लाख 42 हजार रूपए प्रदान किए गए थे। इसका कार्यादेश भी 1 जुलाई को जारी किया गया, लेकिन अब तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है। इसके लिए वह ई-टेंडरिंंग की प्रकिया को जिम्मेदार ठहरा रहे थे। क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है, कि निर्माण की लागत कम पडऩे पर आवश्यक राशि किस एजेंसी से ली जायेगी और यदि राशि ज्यादा हो गई, तो यह किसी को वापस प्रदान की जाएगी। उधर कुछ विधायक विकास के लिये आने वाली राशि को अपर्याप्त मानते हैं।

आंखफोड़वा कांड के पीडि़तों का उड़ाया मजाक?
बड़वानी आंख फोड़वा कांड पर विधानसभा के भीतर हंगामा हुआ, वहीं बाहर कांग्रेसियों ने इस कांड का मजाक उड़ाया। कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी आंखों पर पट्टी बांधकर और हाथों में स्टीक लेकर विधानसभा पहुंचे। वे ब्लाइंड व्यक्ति की तरह चलते हुए विधानसभा पहुंचे थे। इधर विधानसभा के भीतर इसी मुद्दे पर दूसरी बार हंगामा होने पर सदन स्थगित कर दिया गया। सोशल मीडिया पर कांग्रेसियों की यह तस्वीर वायरल होते ही कमेंट्स की कतार लग गई। बड़वानी आंख फोड़वा कांड के पीडि़तों के प्रति सहानुभूति रखने वाले कांग्रेस के इस प्रदर्शन से काफी नाराज दिखे, उनका कहना था कि विरोध का यह कौन सा तरीका है। यह तो ब्लाइंड व्यक्तियों का मजाक उडाया जा रहा है। कई लोगों ने सोशस मीडिया पर कांग्रेस के इस विरोध प्रदर्शन की तीखी आलोचना की है। इसी मुद्दे पर विधानसभा के बाहर आंखों पर पट्टी बांधे कांग्रेस ने जमकर प्रदर्शन किया। पुलिसकर्मियों के साथ झूमा झटकी की गई। धारा 144 के उल्लघंन करने पर युवक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुणाल चौधरी समेत कई कांग्रेस कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया।
अपना हित साधने अफसरों को बना दिया खलनायक
सत्र के दौरान विधायकों ने अफसरों को खलनायक सिद्ध करने की भरपूर कोशिश की। भोपाल नगर निगम कमिश्नर तेजस्वी नायक  विधायकों के निशाने पर रहे। बहाना बनाया गया स्मार्ट सिटी की बैठक में बुलाने वाले नगर निगम कमिश्नर ही वहां नदारद थे। आरिफ अकील की अगुवाई में बीजेपी के विश्वास सारंग, रामेश्वर शर्मा और विष्णु खत्री सहित मुकेश नायक भी पीछे नहीं रहे। स्मार्ट सिटी की चर्चा तो एक तरफ छूट गई और आयुक्त बन गए टारगेट। बीजेपी कांग्रेस नेताओं ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर तेजस्वी नायक मामले पर चढ़ाई की। मामले को ऐसी ऊंचाई पर ले जाया गया कि बात विशेषाधिकार हनन तक के प्रस्ताव की बात तक पहुंच गई। टेलीफोन अटैंड नहीं होने से लेकर टेलीफोन टैप कराए जाने तक के मामलों को इन विधायकों ने एकजुटता के साथ उठाया। विधानसभा उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह के मामले को भी जोड़ते हुए नायक विहेवीयर को गंभीर रूप देने की कोशिश की गई। जब विधानसभा कार्यवाही के बीच नायक को खलनायक के तौर पर पेश किया जा रहा था तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सदन में नहीं थे और न ही जयंत मलैया ही वहां थे। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीताशरण शर्मा ने विधायकों को लिखित सूचना देने का कहते हुए शांत किया। वहीं भाजपा विधायक बेल सिंह भूरिया ने अपने क्षेत्र के एक टीआई का मामला उठाया। उन्होंने कहा कि सरकार ने नौकरशाहों को ढील दे रखी है। इसलिए ये टीआई मेरा फोन भी नहीं उठाता है। कांग्रेस विधायक कमेश्वर पटेल ने सीधी का एक मामला उठाते हुए कहा कि उनके क्षेत्र के एक पत्रकार ने वन विभाग में चल रही धांधली को उजागर किया था, पर उस पत्रकार को ही झूठे मामलों में फंसा दिया गया।
-अक्स ब्यूरो

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