15-Dec-2015 10:57 AM
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मध्यप्रदेश का स्वास्थ्य विभाग एक ऐसा पारस का पत्थर है कि जो जिस भी अधिकारी या मंत्री को स्पर्श करता है वह तर जाता है। पिछले सालों का इतिहास देखें तो इस महकमें में कई अफसर रातों-रात कुबेर हो गए। हर साल बजट का एक

बड़ा हिस्सा खर्च करने के बावजूद प्रदेशवासियों का स्वास्थ्य कितना सुधरा यह बात दीगर है, लेकिन महकमें से जुड़े अफसरों, कर्मचारियों और नेताओं की आर्थिक स्थिति ऐसी सुधरी है की उनके घरों में करोड़ों रूपए तो बिस्तर से निकल जाते हैं। दरअसल, विभाग में भ्रष्टाचार, घोटाला, घपला और कमीशनखोरी इस कदर है कि बिना कमीशन के सरकारी अस्पताल में तो सूई भी नहीं लगती। ऐसे में सहज में ही अनुमान लगाया जा सकता है कि दवा और उपकरण खरीदी का क्या आलम होगा? इसी कमीशनखोरी का परिणाम है बड़वानी आंखफोड़वा कांड।
बड़वानी आंखफोड़वा कांड में 47 लोगों के आंखों की रोशनी चली गई है। इनका कसूर बस इतना है कि इन्होंने सरकारी अस्पताल और वहां की व्यवस्था पर विश्वास किया। मप्र विधानसभा में कांग्रेस विधायकों ने तो इस कांड के लिए स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा को दोषी मानते हुए उनसे इस्तीफ मांगा। लेकिन नरोत्तम मिश्रा ने नैतिकता दिखाते हुए इस्तीफा देने से मना कर दिया। अगर स्वास्थ्य मंत्री इस्तीफा दे देते तो निश्चित रूप से एक अच्छा संदेश जाता। जानकार बताते हैं कि स्वास्थ्य मंत्री इस्तीफा देकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहते हैं। दरअसल, प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग में जो व्यवस्था बन रही है, जो कुछ भी खरीदा जा रहा है उसमें स्वास्थ्य मंत्री और उनके निज सचिव पांडे की भूमिका रहती है। अगर देखा जाए तो नरोत्तम मिश्रा जब से स्वास्थ्य मंत्री बने हैं तब से विभाग में अमानक दवा खरीदी के मामले लगातार सामने आ रहा है। बड़वानी कांड में 47 लोगों की आंखों की रोशनी चले जाने के बाद स्वास्थ्य विभाग कठघरे में खड़ा हो गया है। बावजूद इसके, स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा पूरी हकीकत को बड़ी साफगोई से झुठला रहे हैं। उन्होंने विधानसभा में कहा कि भोपाल से चवन्नी की भी खरीदी नहीं होती है, जबकि हकीकत ही कुछ और है। हालात यह हैं कि प्रदेशभर में 80 फीसदी से ज्यादा खरीदी भोपाल से ही हो रही है। इसकी पुष्टि सीएमएचओ कर रहे हैं जिनका कहना है कि दवा की खरीदी और उसका भुगतान सीधे भोपाल से हो रहा है। अब सवाल यही है कि मंत्री सच्चे हैं या सीएमएचओ। नवीन औषधि क्रय नीति 2009 में लागू की गई थी। विभाग ने वर्ष 2010-11 और 2011-12 में तमिलनाडु मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन के सहयोग से खरीदी की दरें निर्धारित की थीं। 2012-13 में बदलाव किया गया। विभाग द्वारा सीधे खरीदी शुरू की गई। बाद में एमपीएचसीएल बनाया गया। इस कार्पोरेशन के माध्यम से खरीदी होती है। विभाग का दावा है कि जिलों से 80 और राज्य स्तर से 20 फीसदी की दवा खरीदी होती है। कार्पोरेशन की कमेटी आपूर्ति के लिए टेंडर बुलाती है। दवा की दरें तय कर देती है। खरीदी के लिए एक कंपनी तय करती है। कागजों पर सीएमचओ और मेडिकल कॉलेज खरीदारी करते हैं, जबकि हकीकत में कार्पोरेशन सिर्फ एक कंपनी का ही विकल्प देता है। पड़ताल में सामने आया कि 388 दवाइयों की सूची कंपनियों के नाम और खरीदी की मात्रा के साथ भेजी गई। सीएमएचओ के लिए कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा गया। जो एक बड़े भ्रष्टाचार की ओर संकेत दे रहा है। मध्य प्रदेश के स्वाथ्य विभाग में भ्रष्टाचार इस कदर पैठ गया है कि हर साल सैकड़ों लोगों की मौत केवल अमानक और नकली दवाओं से हो रही है। कभी गर्भाशय कांड, कभी नसबंदी कांड तो अब बड़वानी का आंखफोड़वा कांड इस बात का प्रतीक है कि विभाग में किस तरह फर्जीवाड़ा चल रहा है। अभी तक की जांच पड़ताल में जो तथ्य सामने आया है उसमें पाया गया है कि प्रदेश के ऑपरेशन थियेटर बदहाल अवस्था में हैं। विभाग ने बड़वानी के जिला अस्पताल में आंखों के ऑपरेशन के बाद लोगों की आंख खराब होने के लिए ऑपरेशन करने वाले डॉ. आरएस पलोड़, ओटी इंचार्ज लीला वर्मा, नर्स माया चौहान, विनीता चौकसे, शबाना मंसूरी व नेत्र सहायक प्रदीप चौकड़े के अलावा बड़वानी के सिविल सर्जन डॉ. अमर सिंह विश्नार को निलंबित कर दिया गया है। ऐसे में कौन और कैसे काम करेगा? प्रदेश में मरीजों के साथ सरकारी अस्पतालों में किस तरह अमानक दवाएं देकर उनकी जान से खिलवाड़ किया जा रहा है। इसका खुलासा महालेखाकार की रिपोर्ट से भी हुआ है। जिसमें दवा खरीदी से लेकर उसकी जांच तक में लापरवाही बरतने की बात कही गई है।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा यह दवाएं स्थानीय वितरकों से खरीदी गई हैं। खास बात यह है कि इन दवाओं का निधारित मानकों पर टेस्ट ही नहीं कराया और बगैर जांच कराए अस्पतालों में भेज दिया। जिसका परिणाम यह है प्रदेश में लगातार भ्रटाचार के मामले सामने आ रहे हैं, लेकिन मंत्री की चुप्पी इसे और संदिग्ध बनाती है।
दागी को बना दिया सीएमएचओ
बड़वानी कांड में स्वास्थ्य विभाग ने वहां के तात्कालीन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) को दोषी मानते हुए उन्हें हटा दिया गया और उनकी जगह डॉ. रजनी डावर को पदस्थ किया गया जिनके खिलाफ पहले से ही भ्रष्टाचार का मामला दर्ज है और मामले में प्रकरण चलाने की अनुमति दस महीने से नहीं मिली। डॉ. डावर के खिलाफ जो मामला बना है, वो जननी सुरक्षा और मोबिलिटी वाहनों को किए गए अतिरिक्त भुगतान को लेकर है।
-विकास दुबे