नेशनल हेराल्ड का हंगामा और कांग्रेस का कुचक्र
15-Dec-2015 10:49 AM 1234803

संसद में कांग्रेस के अलमबरदार मल्लिकार्जुन खडग़े जब चीखकर ये कहते हैं कि विपक्ष को डराया जा रहा है और साथ में उनके साथी जिस तरह हंगामा करते हैं तो उनकी स्थिति हास्यास्पद हो जाती है। क्योंकि कांग्रेस का इतिहास लोकतंत्र और संविधान की मूल अवधारणा का उल्लंघन करने का दोषी है। देश संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर की 125वीं जयंती मना रहा है ऐसे में कांग्रेस की पूरी राजनीति को संविधान के नजरिए से समझने की जरूरत है। मौजूदा मामला नेशनल हेराल्ड केस का है। पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस के 44 सांसद मल्लिकार्जुन खडग़े के नेतृत्व में जिस तरह संसद के दोनों संदनों में हंगामा काट रहे हैं वो एक साजिश की तरफ इशारा करता है और जिसे आम जनता को अब समझना ही होगा। 2012 में जब सुब्रमण्यम स्वामी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ नेशनल हेराल्ड मामले में याचिका दायर की थी तब पहले तो कांग्रेस सत्ता में थी, दूसरी बात सुब्रमण्यम स्वामी बीजेपी का हिस्सा नहीं थे, तीसरी बात इस मामले की सुनवाई देश की किसी छोटी अदालत में अदालत नहीं हो रही थी, लिहाजा जो आदेश है वो देश के उच्च न्यायालय के आदेश हैं लेकिन कांग्रेस संसद के दोनों सदनों में हंगामा कर रही है देश की चुनी हुई सरकार के खिलाफ और आरोप लगा रही है बदले की भावना से की गई कार्रवाई का। जिसका सीधा सीधा अर्थ है कि कांग्रेस ने तय कर रखा है कि मुद्दा हो या ना हो वो संसद नहीं चलने देगी। और अगर ऐसा है तो ये देश के लोकतंत्र के लिए घातक है क्योंकि सरकारें आगे भी बनती बिगड़ती रहेंगी लेकिन जो गलत परंपरा कांग्रेस शुरू कर रही है उसका खामियाज़ा देश की जनता को भुगतना पड़ेगा।
अब एक नजर डाल लेते हैं कांग्रेस की लोकतंत्र और संविधान में आस्था को लेकर जिसकी दुहाई कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी बाबा साहेब अंबेडकर की 125 वीं जन्मशती पर लोकसभा में दे रही थीं। जिस तरह सोनिया गांधी ने लोकसभा में हंसी ठिठोली के बीच संविधान निर्माता पर अपना वक्तव्य दिया वो उनकी बाबा साहेब अंबेडकर के सम्मान को लेकर गंभीरता पर सवाल खड़ा करता है। दूसरी बात संविधान और लोकतंत्र पर बोलते हुए सोनिया गांधी को एक बार कांग्रेस के इतिहास पर भी नजर डाल लेनी चाहिए ज़्यादा नहीं तो अपनी उन सास के कालखंड पर ही नजऱ डाल लेना चाहिए जिनकी बहू होने का दंभ भरके वो किसी से ना डरने की बात कह रही हैं। देश कभी नहीं भूल सकता आपातकाल के उस दौर को जब इंदिरा गांधी ने देश के लोकतंत्र को बंधक बनाकर संविधान की मूल प्रस्तावना को ही बदल दिया था। ये ऐसा बदलाव था जिसने देश से गणतंत्र और लोकतंत्र होने का अधिकार ही छीन लिया था और विपक्ष की क्या हालत की थी इसे भी मौजूदा कांग्रेस को समझकर आत्म चिंतन करने की जरूरत है।
और सोनिया गांधी को ये नहीं भूलना चाहिए कि उनकी सरकारों ने जिस तरह राज्यपालों को मोहरा बनाकर राज्यों की सत्ता को साधने की कोशिश की है वो संविधान और लोकतंत्र के इतिहास के काले अध्याय हैं। अभी याद ही होगा लोगों को जब 1998 में कांग्रेस के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने किस तरह कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त करके जगदंबिका पाल को एक दिन का मुख्यमंत्री बनवा दिया था और दुनिया भर में देश के लोकतंत्र का मज़ाक बनवाया था हालांकि कोर्ट के दखल के बाद कल्याण सिंह फिर से मुख्यमंत्री बने। दूसरा उदाहरण तो सोनिया गांधी के सामने का ही है जब मार्च 2005 में झारखंड के राज्यपाल सिब्ते रज़ी ने एनडीए के सदस्यों को नजरअंदाज करते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा के शिबू सोरेन को कमान सौंप दी बाद में राष्ट्रपति कलाम ने सिब्ते रजी के फैसले को बदला और अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन एक ये उदाहरण था दशकों से चले आ रही कांग्रेस की उस नीति का जिसके चलते वो राज्यपालों की बिसात पर अपनी सत्ता के मोहरे चलती है। और गोवा में क्या हुआ वो भी सोनिया गांधी एंड कंपनी को समझ लेना चाहिए जब राज्यपाल ज़मीर अहमद ने 2005 में ही गोवा की बीजेपी की बहुमत वाली सरकार को बर्खास्त करके कांग्रेस के मुख्यमंत्री को सरकार में बैठा दिया था जिसको लेकर देश का लोकतंत्र और संविधान शर्मिंदा हुआ था।

पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस के 44 सांसद मल्लिकार्जुन खडग़े के नेतृत्व में जिस तरह संसद के दोनों संदनों में हंगामा काट रहे हैं वो एक साजिश की तरफ इशारा करता है और जिसे आम जनता को अब समझना ही होगा। 70 के दशक में चुनिंदा चापलूसों की कोटरी के जरिए देश की राजनीति करने वाली और बाद के दशकों में राज्यपालों के जरिए विपक्षी सरकारों को असंवैधानिक रूप से हटाकर लोकतंत्र का मजाक उड़ाती रहने वाली कांग्रेस पार्टी अब जब संसद में लोकतंत्र की दुहाई देकर रक्तपात की धमकी तक दे रही है तो उसकी बौखलाहट को समझना बेहद जरूरी है क्योंकि लोकतंत्र की आड़ में कांग्रेस कुतर्कों का कुचक्र रचकर देश की जनता को उलझाए रखना चाहती है।
-राजेश बोरकर

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