बंदिश में बचपन
15-Dec-2015 10:51 AM 1234799

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के तृतीय चक्र के आंकड़ों की मानें तो हम पाते हैं कि    भारत में 474 प्रतिशत महिलाओं का विवाह 18 साल के पूर्व हो गया था। प्रदेश के स्तर पर जायें तो बाल विवाका सर्वाधिक प्रचलन बिहार (690 प्रतिशत), राजस्थान (652 प्रतिशत) तथा झारखण्ड (632 प्रतिशत) में पाया गया। मध्यप्रदेश बालविवाह के संदर्भ में 573 प्रतिशत के साथ चौथे स्थान पर है। बालविवाह का सबसे कम प्रचलन गोवा (121 प्रतिशत) हिमाचल प्रदेश (123 प्रतिशत) व मणिपुर में (129 प्रतिशत) में पाया गया।

देश में बाल विवाह के खिलाफ भले ही कानून बन गया हो, शादी के लिए वैध उम्र की सीमा भले ही तय कर दी गई हो, लेकिन ये सारे बंधन परिणय सूत्र में बंधने वालों के लिए बेमानी हैं। देश में बाल विवाह अभी भी धड़ल्ले से हो रहे हैं। तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नही हो पा रहा है। अभी हाल ही में आई यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 47 फीसदी बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 22 फीसदी बालिकाएं 18 वर्ष से पहले ही माँ बन जाती हैं।
वैसे भी बाल-विवाह की चर्चा साल में एक बार अक्षय तृतीया के मौके पर हो जाती है, क्योंकि तब राजस्थान या मध्य प्रदेश के किसी इलाके से बाल-विवाह की छिटपुट खबरें आती हैं। पर्याप्त आंकड़ों के अभाव में सरकार भी इस मुद्दे से बड़ी आसानी से कन्नी काट लेती है। भारत की जनगणना-2011 के कुछ खास आंकड़े बताते हैं कि इस समय देश में 1.21 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनका बाल विवाह हुआ है। यह संख्या देश के कुल आयकरदाताओं की एक तिहाई है। बाल-विवाह के सर्वाधिक मामलों वाले राज्य क्रमश: उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और गुजरात हैं।  इन आंकड़ों का विस्तार से विश्लेषण करने वाले भोपाल के गैर-सरकारी संगठन विकास संवाद के संयोजक सचिन जैन एक चौंकाने वाले तथ्य की ओर इशारा करते हैं, भले ही बाल-विवाह की पीडि़ता के रूप में जेहन में मासूम लड़की की छवि उभरे, पर लड़कियों की तुलना में लड़के इसका ज्यादा शिकार हो रहे हैं। बाल-विवाह के भुक्तभोगियों में 57 फीसदी पुरुष और 43 फीसदी महिलाएं हैं।
ये आंकड़े इतना बताने के लिए काफी हैं कि भले ही भारत ने पोलियो, चेचक और कुष्ठ जैसे घातक रोगों पर जीत हासिल कर ली हो लेकिन, राजा राममोहन राय से शुरू हुए संघर्ष के पौने दो सौ साल बीतने के बाद भी बाल-विवाह की बीमारी हमारे सामने खड़ी है।  तभी तो मध्य प्रदेश के दमोह जिले की आरती (परिवर्तित नाम) ने ऐसा क्रांतिकारी कदम उठाया कि लोग दंग रह गए। नाबालिग आरती की शादी 30 अप्रैल, 2013 को होने वाली थी। बिना बाप की यह बेटी अपने रिश्तेदारों को जब अपनी बात न समझा सकी तो उसने प्रशासन को खत लिखकर शादी रुकवाने की मांग की। विवाह रोकने में शामिल रहीं मध्य प्रदेश बाल विकास विभाग की कर्मचारी कृष्णा विश्वकर्मा बताती हैं, लड़की ने अपनी जन्मतिथि के सबूत भी भेजे थे। ऐसे में सरकारी टीम मय पुलिस बल के गांव पहुंची। परिवारवालों को बहुत समझाया गया और जब वे नहीं माने तो कानूनी ढंग से शादी रुकवा दी गई। लेकिन यह जज्बा लड़की के लिए थोड़ा भारी साबित हुआ। परिवार के दबाव में मां-बेटी को गांव छोड़कर जाना पड़ा। कृष्णा बताती हैं कि बालिग होने के बाद आरती के मामा ने उसकी शादी उसी लड़के से कराई, जिसकी बारात तब आरती के संघर्ष के बाद लौटा दी गई थी। यूनीसेफ द्वारा दुनिया में बच्चों के हालात पर तैयार की गई 2009 की रिपोर्ट इस बात का साफ संकेत करती है कि अपने देश में बाल विवाह निरोधक कानून का किस तरह व्यापक पैमाने पर उल्लंघन हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, देश की 20 से 24 वर्ष की 47 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 वर्ष से पहले ही हो चुकी है। इनमें से 56 प्रतिशत मामले ग्रामीण इलाकों के हैं। हरियाणा में मेवात जिला अन्य सभी जिलों से आगे खड़ा है। रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि दुनिया का 40 प्रतिशत बाल विवाह भारत में होता है। मध्य प्रदेश में यूनीसेफ की प्रमुख, डॉ. तानिया गोल्डनर ने कहा, बाल विवाह बाल अधिकारों का उल्लंघन है। कम उम्र की शादी बच्चों को स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, तथा हिंसा, दुव्र्यवहार व शोषण मुक्ति से वंचित कर देती है और बचपन को निगल जाती है। एक अनुमान के अनुसार विश्वभर में हर वर्ष 10 से 12 मिलियन नाबालिक लडकियों की शादी कर दी जाती है। ऐसी ही एक भुक्तभोगी यमन की रहने वाली तहानी कहती है, वह जब भी अपने पति को देखती है, उसे घृणा होने लगती है। वह उससे नफरत करती है, पर साथ रहना और जुल्म सहना उसकी विवशता है। यमन, अफगानिस्तान, इथोपिया और ऐसे ही कुछ अन्य देशों में तो युवा या विधुर उम्रदराज व्यक्ति किसी बच्ची का बलात्कार करते है और फिर उससे विवाह करने का दावा ठोंक देते हैं। वहां की सामाजिक व्यवस्था के अनुसार उनकी शादी भी हो जाती है। भारत की बात करें, तो यहां बालविवाह पर कानूनन रोक है, लेकिन रात के अंधेरे में आज भी हजारों बालविवाह हो रहे हैं।
दरअसल यह कुप्रथा गरीब तथा निरक्षर तबके में जारी है।पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों के लोग अपनी लड़कियों कि शादी कम उम्र में सिर्फ इस लिए कर देते हैं कि उनके ससुराल चले जाने से दो जून की रोटी ही बचेगी। वहीं कुछ लोग अंध विश्वास के चलते अपनी लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर रहे हैं।जो भी हो इस कुप्रथा का अंत होना बहुत जरूरी है।वैसे हमारे देश में बालविवाह रोकने के लिए कानून मौजूद है। लेकिन कानून के सहारे इसे रोका नहीं जा सकता।बालविवाह एक सामाजिक समस्या है।अत:इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही सम्भव है। सो समाज को आगे आना होगा तथा बालिका शिक्षा को और बढ़ावा देना होगा। बाल विवाह के पक्षधरों द्वारा एक तर्क यह भी दिया जाता है कि भले ही विवाह कम उम्र में किया जाता है परन्तु पति पत्नी साथ साथ रहना तो बालिग होने के बाद शुरू करते हैं इसका खण्डन भी राष्ट्रीय सर्वेक्षण का तृतीय चक्र करता है। ऑंकड़े बताते हैं कि भारत में 15-19 वर्ष की महिलाओं में 16 प्रतिशत् या तो मॉ बन चुकी थी या पहली बार गर्भवती थी। इनमें सर्वाधिक भयावह स्थिति झारखण्ड, प6चिमी बंगाल व बिहार की है जहाँ क्रमश275, 25 व 25 प्रतिशत् महिलाये 15-19 वर्ष के मध्य माँ बन चुकी थी या बनने जा रही थी। जबकि इससे विपरीत स्थिति हिमाचल प्रदेश (123 प्रतिशत) गोवा (121 प्रतिशत)व जम्मू एवं क6मीर (42 प्रतिशत) पाई गई। यह माना जाता है कि किसी भी कुरीति को दूर करने में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान होता है परन्तु ऑकड़ों का वि6लेषण करने से ज्ञात होता है कि केरल राज्य, जहॉ शिक्षा का स्तर सर्वोच्च है, में भी 18 वर्ष से कम उम्र में 154 प्रतिशत महिलाओं की शादी हो चुकी थी व 58 प्रतिशत महिलाये 15-19 वर्ष के मध्य या तो मॉ बन चुकी थी या वे मॉ बनने जा रही थी। उधर, बाल विवाह के पैरोकार अब कहीं ज्यादा चालाक हो गए हैं। जैसे अब ज्यादातर बाल विवाह आखातीज की जगह आस-पास तारीखों मे होते हैं, जब प्रशासन उतना सख्त नहीं होता। कई मामलों में घर पर विवाह की हलचल मची रहती है, जबकि असल में विवाह कहीं और होना होता है। ऐसे में अगर पड़ोसी पुलिस को शिकायत भी कर दे तो नतीजा सिफर रहता है। बाल विवाह के समर्थकों को कौन समझाए कि वे अपने बच्चों की जिंदगी से खेल रहे हैं। यूनिसेफ चाइल्ड मैरिज इन्फॉर्मेशन शीट के मुताबिक अगर लड़की 20 साल से कम उम्र में मां बनती है तो 5 साल की उम्र तक बच्चे की मृत्यु का अंदेशा डेढ़ गुना बढ़ जाता है। इन हालात पर बालिका वधू धारावाहिक में आनंदी का वर्तमान किरदार निभा रहीं तोरल रासपुत्रा कहती हैं, बाल विवाह के ज्यादातर मामले गांवों से सामने आते हैं। यहां शिक्षा का स्तर बेहतर करने की जरूरत है। शिक्षित होकर ये युवा सोशल मीडिया पर सेल्फी डालने के अलावा ऐसी शादियों की तस्वीरें डालकर हालात बदल सकते हैं।

बाल विवाह के दर्ज मामले
ये दोनों घटनाएं गांवों की हैं और दोनों मामलों में कानूनी लड़ाई लडऩे में लड़कियों को दिक्कत आई। सचिन जैन कहते हैं, जनगणना में बाल-विवाह के 1.21 करोड़ मामले दिख रहे हैं, जबकि पुलिस के पास मुश्किल से साल में कुछ सौ मामले ही दर्ज होते हैं। यानी 99 फीसदी से ज्यादा बाल-विवाह गुप-चुप तरीके से हो रहे हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इस संबध में फरवरी 2013 में बनाई राष्ट्रीय नीति में माना कि पिछले 15 साल में बाल विवाह के मामलों में 11 फीसदी की कमी आई। यूनिसेफ के बाल संरक्षण विशेषज्ञ दोरा गिउस्ती का कहना है, इस रफ्तार से बाल विवाह खत्म करने में 50 साल और लग जाएंगे। बालिका वधू दरअसल इस बीमारी की जड़ें गहरी हैं। राजस्थान के कई इलाकों में आज भी मान्यता है कि किसी के घर में अगर मौत हो जाती है तो 13 दिन में उस घर में विवाह होना जरूरी है। ऐसा करने से मृतात्मा को शांति मिलती है और घर में सुख-समृद्धि आती है। देश में पहला बाल विवाह अदालत से निरस्त कराने वाली जोधपुर की लक्ष्मी के साथ यही हुआ था। लक्ष्मी बताती हैं, मैं बचपन में अपने ननिहाल में थी। उसी बीच नाना की मौत हो गई। नानी ने घर की सुख-शांति के लिए मेरा बाल विवाह करवा दिया। जब उसके ससुराल वाले उसे लेने आए तो उसने बगावत कर दी और अदालत से शादी निरस्त कराई। बाद में लक्ष्मी ने अपनी पसंद के लड़के से विवाह किया।
-बिन्दु माथुर

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