चेन्नई के संकेतों ने दुनिया को हिलाया
15-Dec-2015 10:46 AM 1234772

चार दिन की आफत ने चेन्नई में जहां 3 सौ से अधिक लोगों की जान ले ली वहीं करीब 75 हजार करोड़ रुपए का नुकसान भी पहुंचाया है। लेकिन इस आफत में पूरे विश्व को संकेत दे दिया है कि अगर अब भी हम नहीं चेते तो आने वाले दिनों में हम जल समाधि में समाते जाएंगे। चेन्नई में जो हुआ वह केवल भारत के लिए ही नहीं पूरे विश्व के लिए खतरनाक संकेत है। चेन्नई पर मंडराए बाढ़ के खतरे ने पेरिस में पर्यावरण को बचाने के लिए जुटे दुनिया के तमाम चौधरियों का ध्यान खींचा।
पर्यावरण विद मानते हैं कि इन शहरों में की बनावट में प्लानिंग की तो दिक्कत है ही, लेकिन उससे भी भयावह संकेत पर्यावरण के बदलने का है। सवाल यह है कि चेन्नई के बाद भारत सहित दुनिया के कई ऐसे शहर हैं, जो डूब सकते हैं।  दुनिया भर के अनेक शहरों और देशों पर समुद्र का जलस्तर बढ़ते जाने से लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। चेन्नई की बाढ़ जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों का एक भयावह उदाहरण तो है ही, इससे हुई तबाही ने मानव समाज की खतरनाक गलतियों के नतीजों को भी रेखांकित किया है। हाल के वर्षों में उत्तराखंड, कश्मीर समेत देश के विभिन्न इलाकों में बाढ़ की त्रासदी का कहर लगातार बढ़ा है। तेज शहरीकरण और विकास की आपाधापी में सरकार और समाज प्राकृतिक तंत्रों को बेतहाशा बरबाद कर रहे हैं। नदियां और ताल-तलैया स्वाभाविक निकास के रास्तों के जरिये अतिरिक्त बारिश के पानी को समेट लेने की क्षमता रखते हैं। पर, शहरों के विस्तार ने इन जल निकायों, रास्तों और संग्रहण क्षेत्र पर बस्तियां बसा दीं। लचर प्रशासनिक प्रबंधन, नेताओं-अफसरों के भ्रष्टाचार, बिल्डरों की लालच और समाज की लापरवाही ने कोई वैकल्पिक व्यवस्था करना भी आवश्यक नहीं समझा। ऐसे में आपदा के लिए प्रकृति को दोष देना बेमानी है।  अकसर वैज्ञानिक हमें चेताते रहते हैं कि धरती का तापमान बढ़ रहा है। उनके आकलन के मुताबिक, पिछले सौ वर्षों में औसत वैश्विक तापमान में कमोबेश एक डिग्री की बढ़ोतरी हुई है। सिर्फ एक डिग्री! हमारे देश में गर्मियों में तापमान 40-45 डिग्री पर पहुंच जाता है, और सर्दियों में 4-5 डिग्री तक गिर जाता है, और इसे हम बखूबी झेलते हैं। ऐसे में वैश्विक तापमान में महज एक डिग्री की बढ़ोतरी हमारे लिए कितना मायने रखती है, यह शोध का विषय है।  लेकिन, इतना जरूर है कि महज एक डिग्री वैश्विक तापमान के बढऩे से एक वक्त में कितनी बारिश होगी या नहीं होगी, यह बता पाना थोड़ी मुश्किल है। आप अगर गौर करें, कोई भी प्राकृतिक घटना होती है, तो लोग कहते हैं कि यह मौसम में बदलाव के कारण हुई है।  मैं समझता हूं कि यह कहना उतना सही नहीं है और अगर जलवायु परिवर्तन की व्याख्या हमें करनी है, तो थोड़ी दूर-दृष्टि अपनानी होगी। प्राकृतिक आपदाएं अगर जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हुई हैं, तो इसके लिए हम अकेले कुछ भी नहीं कर सकते, न कोई शहर इससे बचने के लिए कुछ कर सकता है और न ही कोई देश कुछ कर सकता है। जलवायु परिवर्तन के लिए पूरे विश्व को एकजुट होना पड़ेगा और खास तौर से विकसित देशों को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी, जिनका इस तापमान को बढ़ाने में सबसे ज्यादा योगदान है। अर्बन प्लानिंग (नगरीकरण) को लेकर देश में गंभीरता से सोचना होगा, तभी हम चैन्नई जैसी विभीषिका से लड़ पायेंगे। हालांकि इस दिशा में पेरिस सम्मेलन से एक अच्छी शुरूआत हो गई है। लेकिन इसका असर कब तक रहेगा यह आने वाला समय ही बताएंगा।

केन्द्र की पहल और सेना की सतर्कता से मिली राहत
चेन्नई में मुसलाधार बारिश के बीच आई बाढ़ से लाखों लोग अभी भी प्रभावित हैं। इस आपदा के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय सेना ने जिस तरह सतर्कता दिखाई है, उसी का परिणाम है कि चेन्नई इस आपदा से धीरे-धीरे उबर रहा है। चेन्नई की नगरीय व्यवस्था और उससे उपजी इस विभीषिका से हमें सबक सीखने की जरूरत है। इसके लिए तीन महत्वपूर्ण सबक हैं और कोई नये सबक नहीं हैं, हम इसे अच्छी तरह से जानते हैं। सौ साल पहले इंजीनियर इसको पढ़ते-समझते थे, लेकिन आज पूंजीवादी व्यवस्था के चलते अपने व्यापारिक हित साधने के लिए निर्माण-व्यवस्था में लगे लोग इसे अनसुनी कर देते हैं। पहला सबक तो यह है कि पानी अपना रास्ता खुद बनाता है। उस रास्ते के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। दूसरा यह कि पानी अलग-अलग मौसम में अलग-अलग तरह से रास्ता बनाता है।  उसका कोई एक रास्ता नहीं है। इसलिए आप ऐसा नहीं कर सकते कि पानी के बनाये जानेवाले रास्ते का आपने औसत निकाल लिया और उसके मुताबिक अपना निर्माण कार्य कर लिया। पानी द्वारा रास्ता बनाने का एक रेंज है, एक फैलाव है, उसमें भी न्यूनतम और अधिकतम फैलाव को देखना होगा कि कोई नदी अपने पानी द्वारा कितना फैलाव करती है। इन दोनों चीजों को लेकर समझना होगा, औसत का लेकर आप नहीं चल सकते। तीसरा और आखिरी सबक यह है कि पानी के बहाव के साथ आप काम कीजिए, बहाव के विपरीत नहीं। आज के इंजीनियरों को इन तीन सबक को अच्छी तरह से याद कर लेना चाहिए, ताकि वे निर्माण करते समय प्रकृति के विरुद्ध काम न करें।
-नवीन रघुवंशी

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