नेपाल संग दरकते रिश्ते भारत के लिए खतरनाक!
15-Dec-2015 10:43 AM 1234771

भारत और नेपाल के बीच भले की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध रहे हों, लेकिन दोनों देशों के बीच इतनी खटास कभी नहीं रही। रविवार को नेपाल ने भारत के दो सीमा सुरक्षा के जवानों को हथियार लेकर सीमा में दाखिल होने की वजह से गिरफ्तार कर लिया। ये गिरफ्तारी एक तरह से बंधक बनाने के जैसी थी। सरकार के हस्तक्षेप से जवान वापस तो भारत में आ गए लेकिन जैसा वाकया 29 नवंबर 2015  रविवार को हुआ ऐसा दोनों देशों के इतिहास में कभी नहीं हुआ।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या मोदी काल में भारत नेपाल संबंधों की यह दूरी ऐतिहासिक है और क्या नेपाल से दूरी भारत के लिए सीमा सुरक्षा के लिहाज से एक नई चुनौती और खतरा है? ऐसे में हमने नेपाल को लेकर कुछ विशेषज्ञों और राजनीतिक चिंतकों से बात की। सूबे के प्रसिद्ध समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा के अनुसार नेपाल भारत से अलग एक पृथक राष्ट्र होने के बावजूद भारत का अभिन्न अंग रहा है। लंबे समय से दोनों देशों ने एक-दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करते हुए दो भाइयों के रिश्ते को निभाया है। लेकिन जिस तरह से नेपाल के साथ रिश्ते विषम हो रहे हैं, वह दुखद है। सिन्हा के अनुसार देश के समाजवादी आंदोलन में नेपाली कांग्रेस के सदस्यों की बड़ी भूमिका थी। वहीं नेपाल में राजसत्ता के साथ संघर्ष में भारतीय राजनेताओं की अहम भूमिका थी। हालत यह थी कि यहां के समाजवादियों ने नेपाल में 1960 के बाद हुए राजनीतिक आंदोलनों में न केवल नेपाल का साथ दिया बल्कि कई मायनों में नेतृत्व भी किया। इसके अलावा नेपाल के भूतपूर्प प्रधानमंत्री बी पी कोईराला ने तो अपना दूसरा आवास ही पटना में बना रखा था। आज भी पटना के गांधी मैदान के पास बीपी कोईराला मार्ग भारत और नेपाल के बीच रिश्ते का सजीव प्रमाण है। वहीं सूबे के जाने माने गांधीवादी डॉ. रजी अहमद के अनुसार नेपाल के साथ रिश्ते का दरकना ने केवल बिहार बल्कि पूरे भारत के लिए खतरनाक है। यह इसलिए भी क्योंकि अन्य पड़ोसी देशों यथा पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश आदि के साथ रिश्ते पहले से खराब हैं। पहले नेपाल ही एकमात्र देश था जिसपर भारत आंख मूंदकर विश्वास कर सकता था। अब जबकि नेपाल में चीन का हस्तेक्षप बढ़ता जा रहा है तो यह भारत के  हितों के लिहाज से खतरनाक है। यह इसलिए भी क्योंकि चीन अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती अंतरंगता को लेकर पहले से विषम भूमिका का निर्वाह कर रहा है।
डॉ. अहमद ने बताया कि मधेसियों द्वारा अलग राज्य की मांग वाजिब है। वाजिब इसलिए है क्योंकि मधेस अस्तित्व में 4 मार्च 1816 को अस्तित्व में आया था। तब ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के शासक के बीच सुगौली पैक्ट हुआ था। इसके तहत नेपाल ने तराई के कुछ इलाके ब्रिटिश हुकूमत को दिया था और बदले में उन्हें बिहार के मैदानी इलाके दिये गये थे। हालांकि इसके लिए उन्हें एक निश्चित राशि लगान और फौज के लिए अच्छी ऊंचाई के हाथियों की आपूर्ति करने की जिम्मेवारी थी। साथ ही इस पैक्ट में गोरखा सिपाहियों को फौज में शामिल करने के प्रस्ताव पर भी सहमति बनी थी। अलग और स्वतंत्र मधेस का सवाल तब सवाल बना जब भारत आजाद हुआ। मधेस के लोगों ने कहना शुरू किया कि जब ब्रिटिश रहे ही नहीं तब सुगौली पैक्ट भी अस्तित्वहीन हो गया। हमें भी अलग अस्तित्व मिलना चाहिए। हालांकि उन्होंने यह मांग नेपाल और भारत दोनों देशों के सरकारों से की थी। परंतु उनके इस मांग को कभी संज्ञान में नहींलिया गया।  वहीं नेपाल में चल रहे संकट के मद्देनजर समाजवादी कार्यकर्ता और नेपाल मामलों के विशेषज्ञ माने जाने वाले अशोक प्रियदर्शी के मुताबिक नेपाल बिहार का प्राकृतिक सहयोगी है।
बिहार आने वाली सभी महत्वपूर्ण नदियां नेपाल से आती हैं। हालांकि कोसी जैसी नदियों के आने से बाढ़ की स्थिति बन जाती है, परंतु यह बाढ़ सही मायनों में अभिशाप नहीं बल्कि पूरे कोसी क्षेत्र के लिए वरदान सरीखा है। अलबत्ता यह कहना अधिक तर्कसंगत है कि इक्कीसवीं सदी में भी हमने जल प्रबंधन और नदी प्रबंधन का वैज्ञानिक और मानविक तरीका नहीं इजाद किया।
प्रियदर्शी के अनुसार नेपाल के नये संविधान में मधेसियों की उपेक्षा एक बड़ा सवाल है, लेकिन उससे भी बड़ा सवाल वहां के समस्त नागरिकों से जुड़ा है। लेकिन यह भी सही है कि नेपाल एक बार फिर अत्यंत ही महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहा है। वहां नये संविधान को लागू किया जा रहा है, जिसका पुरजोर विरोध भी समांतर तरीके से जारी है। ऐसे में नेपाल और भारत के बीच रिश्ते का मधुर बने रहना विश्व शांति के लिए अनिवार्य है।
-विशाल गर्ग

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^