भारतीय विदेश नीति की अग्नि परीक्षा
15-Dec-2015 10:42 AM 1234883

सीरिया में आईएसआईएस के ठिकानों पर रूस के हमलों के बाद जब रुस के राष्ट्रपति पुतिन ने आरोप लगाये बल्कि खुलासा किया कि आईएसआईएस को अमेरिका व उसके सहयोगी नाटो देशों की तरफ से आर्थिक व सैन्य सहायता मिल रही है तभी से अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में अमेरिका का कद घटता जा रहा था। रुस को मिल रही सफलताओं व सीरिया पर हमले के बहाने अपने हथियारों का सफल परीक्षण व प्रयोग दुनिया के सामने कर उसने अपनी धमक बनानी शुरु कर दी और चीन, पाकिस्तान, अरब देश आदि उसके पाले में आते दिखने लगे।
भारत सहित एशिया व अफ्रीका के अनेक देशों में भी हलचल उठनी शुरु हो गयी थी। ऐसे में अमेरिका द्वारा अपनी वर्चस्वता बरकरार रखने हेतु कुछ न कुछ जवाबी कदम उठाने जरूरी हो गये और जब फ्रांस में 13/11 को आईएसआईएस के द्वारा आतंकी हमले किये गये तो कूटनीतिज्ञों व अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के जानकारों को समझ आ चुका था कि अमेरिका अपने सहयोगी फ्रांस व कठपुतली आईएसआईएस की मदद से अपनी चाल चल चुका है। अब पूरी दुनिया में इस्लामी आतंकवाद के विरूद्ध एक जनमत सा खड़ा हो गया है और पि_ू मीडिया नित नये दृष्टांत गढ़ अमेरिका-फ्रांस-यूके के नेतृत्व में नाटो देशों के सारे खेल जो अरब देशों में खेले गये, को जायज ठहराता जा रहा है और रुसी खेमे की स्थिति फिलहाल रक्षात्मक हो गयी है। जी-20 सम्मेलन में भी पुतिन को सीरियाई राष्ट्रपति असद का साथ न देने व अमेरिका के साथ मिलकर आईएस को तबाह करने का दबाव डाला गया जोकि निश्चित रूप से रूस नहीं मानने वाला। अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियां जिस तेजी से बदल रही हंै वे एक बड़े मानवीय संघर्ष की तरफ बढऩे का ईशारा कर रही हैं। फिलहाल ये छठी सदी से चल रहे इस्लाम व ईसाईयत के संघर्ष के उग्र होने के रूप में सामने आ रही है। सभ्यताओं का यह संघर्ष वास्तव में संसाधनों व बाजार पर कब्जे का संघर्ष भी है और अपने-अपने हथियारों के लिए बाजार तैयार करने का भी। हमें एक बड़ी तबाही के लिए मानसिक रूप से तैयार होना होगा।
इस क्रम में भारत के बिहार में भाजपा की हार एक तयशुदा खेल था। पेंटागन की रणनीति दक्षिण-एशिया में अपनी अफगानिस्तान से वापसी व पाकिस्तान से बिगड़ते संबंधों के बीच नया सैन्य आधार व मित्र देश तैयार करने की है। भारत का बढ़ता बाजार भी अमेरिका के लिए बड़ा आकर्षण है। निरन्तर मजबूत हो रही मोदी सरकार अमेरिका व नाटो देशों के अनुरूप नहीं थी। इस कारण एक निश्चित रणनीति के तहत प्रोपेगंडा ब्रिगेड की मदद से मोदी विरोधी गठजोड़ को बढ़ावा दिया गया, जिसमें संघ परिवार का मोदी विरोधी खेमा भी शामिल होता गया और परिणाम आपके सामने है। बिहार के जातीय समीकरण, विपक्षी दलों की एकजुटता, संघ की नाराजगी, अमित शाह की दबंगई, मोदी की तानाशाही व जेटली की बाजार व मीडिया पर ढीली पकड़ के बीच अपने भविष्य के प्रति असुरक्षित वसुन्धरा व शिवराज की टीम ने तो स्थितियां बिगाड़ी ही, वहीं स्थानीय नेताओं को आगे न करने, टिकट बंटवारे में गड़बड़ी से भी उनका उत्साह मंद पड़ता गया और प्रोपेगंडा ब्रिगेड ने महागठबंधन के पक्ष में माहौल बना दिया। जिस प्रकार अमेरिका यात्रा से पूर्व मोदी ने अमेरिका से रक्षा सौदों को मंजूदी दी वैसे ही बिहार की हार के बाद इंग्लैंड यात्रा से पूर्व एफडीआई की सीमा व नियमों में नाटो देशों की अपेक्षा के अनुरूप व्यापक बदलाव कर डाले।
जी-20 देशों की बैठक व इससे पूर्व इंगलैंड की यात्रा के बीच मोदी सरकार यकायक पूर्णत: अमेरिकी पाले में बैठी नजर आ रही है। यह भारत की आजादी से चली आ रही गुटनिरपेक्ष नीति से पूर्णत: पलट स्थिति है। यद्यपि यह प्रक्रिया यूपीए सरकार के समय ही शुरु हो चुकी थी किंतु मोदी अब अमेरिकी सरकार की कूटनीति के एक प्रभावी अंग व धारदार हथियार बन चुके है। विभिन्न देशों में मोदी के मेगा शो व व्यापक विदेशी दौरों के पीछे भी अमेरिका-भारत के बीच साझा समझ विकसित होने के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिका चीन के समानान्तर भारत को खड़ा कर चीन की मुश्कें कसना चाहता है और एशिया में शक्ति संतुलन में अपनी प्रभावी भूमिका बनाये रखना चाहता है। मोदी सरकार ने अमेरिकी कूटनीति की अपेक्षाओं को लपक तो लिया है, किन्तु अमेरिकी कार्यशैली व झटका तंत्र से ठीक से निपट नहीं पा रही है, और अक्सर अपमानित भी हो जाती है। मोदी को शीघ्र ही संसद सत्र में नयी चुनौतियों का सामना करना है वहीं रुस की यात्रा भी। किस प्रकार से अल्पसंख्यकों व अरब देशों के समर्थक विपक्षी दलों को मोदी साध पाते हैं और कैसे चीन व रुस को, जो अरब देशों को अपने पाले में करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं, से संतुुलन बैठा पाते हैं, देखना रोचक होगा।
कुल मिलाकर यह भारतीय कूटनीति व विदेशनीति की शीत युद्ध की समाप्ति के बाद सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा का काल है और मोदी सरकार कितनी चतुरता से इसमें राष्ट्रीय हितों को साध पाती है, प्रत्येक देशवासी की इस पर नजर रहेगी।
-इन्द्रकुमार

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