जिसने बढ़ाया आतंकवाद अब वही कर रहे साफ
02-Dec-2015 08:24 AM 1234774

आतंकवाद के खिलाफ सारी दुनिया जिस तरह से एक हो रही है, पिछले 20-25 साल में कभी नहीं हुई। संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करके सभी सदस्य-राष्ट्रों से कहा है कि आतंकवाद से लडऩे के लिए वे दुगुनी ताकत लगा दें और जो भी तरीका वे अपनाना चाहें, अपनाएं। इस प्रस्ताव पर रुस और चीन ने भी मुहर लगा दी है। प्राय: देखा यह जाता है कि जिन प्रस्तावों को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस पेश करते हैं, उनका रुस और चीन या तो विरोध कर देते हैं या तटस्थ हो जाते हैं। पेरिस-कांड ने अब राष्ट्रों को अपने राजनीतिक मतभेद भुलाने के लिए बाध्य कर दिया है। अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने मुस्लिम देशों में आतंकवादियों को सबसे ज्यादा मदद की और उन्हें इसलिए खड़ा किया कि वे अपने-अपने देशों या पड़ौसी देशों की सरकारों को गिरा दें।
अफगानिस्तान, इराक और लीबिया जैसे देशों में तख्ता पलट करने के लिए अमेरिका ने इन आतंकवादियों का जमकर इस्तेमाल किया। पश्चिमी देश इन एशियाई राष्ट्रों में या तो उनकी खनिज संपत्ति पर काबू करना चाहते थे या उनके बहाने रुसी प्रभाव को खत्म करना चाहते थे। रुस-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा ने ही सीरिया में तीन लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया। रुसी प्रभाव से लडऩे के लिए ही अमेरिका ने अफगानिस्तान में पहले मुजाहिदीन, फिर तालिबान और अलक़ायदा की भी पीठ ठोकी। चीन के उइगर मुसलमानों से भी अमेरिका ने अपनी विदेश नीति के लक्ष्य सिद्ध करवाए। उसने ही नजीबुल्लाह, सद्दाम हुसैन और मुअम्मर कज्जाफी के खिलाफ आतंकवादी ताकतों की खुली और सीधी मदद की।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तुर्की के जी-20 सम्मेलन और आसियान सम्मेलन में आतंकवाद-विरोधी विश्व मोर्चा बनाने की अच्छी पहल की है लेकिन मोदी को किसी भुलावे में नहीं रहना चाहिए। पश्चिमी राष्ट्र सिर्फ उन्हीं आतंकवादियों के खिलाफ कमर कसेंगे, जो उनके खिलाफ हैं। जो भारत और चीन के खिलाफ हैं, उन आतंकवादियों की वे अभी तक अनदेखी करते रहे हैं बल्कि वे घुमा-फिरा कर उनकी मदद करते रहे हैं। पश्चिमी राष्ट्रों की तोपों के लिए मुसलमान लोग सबसे सस्ती बारुद बन गए हैं। बेरोजगार, अशिक्षित और गरीब मुसलमान नौजवानों को इस्लाम के नाम पर बहकाना बहुत आसान है ये बहके हुए नौजवान सबसे ज्यादा अपने ही मुसलमानों को मार रहे हैं। पश्चिमी राष्ट्रों में वे यदा-कदा हमले कर पाते हैं। वे इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं। पश्चिमी राष्ट्रों ने ही इस आतंकवाद को पैदा किया है। अब ये ही इसकी दवा करेंगे।
फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने पेरिस हमले पर जो प्रतिक्रिया की है, उसने सारे पश्चिमी राष्ट्रों को एकजुट कर दिया है। ओलांद तो समाजवादी हैं लेकिन उनके साथ फ्रांस के दक्षिणपंथी और मध्यमवर्गीय नेता भी एकजुट हो गए हैं। उन्होंने आतंकवादियों के विरुद्ध बाकायदा युद्ध ही छेड़ दिया है। लगभग सभी आतंकियों ने आत्महत्या कर ली है लेकिन फ्रांस की पुलिस और गुप्तचर व्यवस्था ने भी कमाल किया है। अभी एक हफ्ता भी नहीं गुजरा है कि उसने आतंकियों की जड़ों तक को खंगाल दिया है। यूरोप में जहां से भी उन्होंने षडय़ंत्र रचा है, उन सारे ठिकानों पर छापे मार दिए हैं। इतना ही नहीं, सीरिया में फ्रांस ने जबर्दस्त बमबारी शुरु कर दी है। इस्लामी राज्य दाएशÓ की राजधानी रक्का को फ्रांस, रुस और अमेरिका ने मिलकर तबाह कर दिया है। तीनों राष्ट्रों का ऐसा गठबंधन अब से 75 साल पहले हिटलर के खिलाफ बना था। जाहिर है कि फ्रांस्वा ओलांद, ब्लादिमीर पूतिन और बराक ओबामा- ये तीनों नेता मिलकर दाएशÓ के पीछे पड़ गए तो उसकी दुर्गति अल-कायदा से भी ज्यादा हो सकती है। कुछ ही दिनों में उसका नामो-निशान ही मिट सकता है।
इन तीनों महाशक्तियों को सीरिया के शासक बशर-अल-अस्साद के साथ मिलकर काम करना होगा ताकि उसके पैदली सैनिक असली लड़ाई लड़ सकें। सिर्फ बमबारी से आतंकियों को खत्म नहीं किया जा सकता। इसके अलावा महाशक्तियों को ईरान और सउदी अरब की प्रतिस्पर्धा को घटाना होगा। इसी प्रतिस्पर्धा के कारण पश्चिम एशिया के शिया और सुन्नी लोगों में झगड़ा होता रहता है। महाशक्तियां इस विवाद की अनदेखी करती रहती हैं। उनकी नजऱ इन राष्ट्रों के सिर्फ तेल पर लगी रहती है। महाशक्तियां की नींद अब इसलिए खुली है कि दाएशÓ ने एक गोरे राष्ट्र को अपना निशाना बनाया है। जब भारत पर हमला हुआ तो ये सब राष्ट्र कोरी बयानबाजी करते रहे।
-इन्द्रकुमार बिन्नानी

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^