15-Dec-2015 10:39 AM
1234822
मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने जिस तरह से भाजपा से झाबुआ रतलाम संसदीय सीट छीनी है, उसे वह प्रदेश में अपनी सत्ता में वापसी की कुंजी मान कर उत्साह से लबरेज हो झाबुआ जीत को प्रदेश राजनीति का टर्निंग पाईंट मान रही है। इस एक

जीत से प्रदेश में कांग्रेस के नेताओं के बीच की दूरियां भले ही कम नहीं हुई हो, मगर इस जीत के बाद वे एकजुट होकर शिवराज सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी भी करने में जुट गए हैं। अब इसकी असल परीक्षा सतना जिले के मैहर विधानसभा उपचुनाव में होगी और यकीनन यदि यह सीट कांग्रेस जीत लेती है तो बीजेपी के लिए असली खतरे की घंटी होगी। लेकिन सबसे खास बात यह है यह चुनाव भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव का भविष्य तय करेगा।
उल्लेखनीय है कि नए साल में भाजपा और कांग्रेस संगठन में कई बदलाव होने की संभावना है। सबसे पहले दोनों पार्टियों के प्रदेशाध्यक्ष बदले जाने हैं। भाजपा और कांग्रेस अपने वर्तमान प्रदेशाध्यक्षों को दोहराने के मूड में नहीं है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव को बदलने की आवाज तो पिछले कई महीनों से उठ रही है। कई बार कई नाम सामने भी आए, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने इस दिशा में अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है। हालांकि बीच में सांसद कमलनाथ का नाम चर्चा में आया था। लेकिन रतलाम-झाबुआ और देवास उपचुनाव के कारण नए प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति का मामला थम गया। वहीं अब भाजपा में नए प्रदेशाध्यक्ष के लिए लॉबिंग का दौर शुरू हो गया है। वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान को लेकर पार्टी में असमंजस की स्थिति है। एक तो इनके ऊटपटांग बोल और उस पर रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में मिली हार इनके लिए विलेन का काम कर सकती है। उधर, चौहान पुन: प्रदेशाध्यक्ष न बने इसके लिए पार्टी के कुछ नेताओं द्वारा लॉबिंग की जा रही है। दोनों पार्टियां 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए ऐसे नेता को प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाहती है जो जनता के बीच पार्टी की पैठ बना सके।
प्रदेश कांग्रेस में वर्तमान समय में अरुण यादव के विकल्प के रूप में कमलनाथ को देखा जा रहा है। नाथ ने भी संकेत दे दिए हैं कि अगर आलाकमान निर्देश देता है तो वे इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए तैयार हैं। उधर, भाजपा में प्रदेशाध्यक्ष के लिए कई दावेदार हैं। इसको देखते हुए नए अध्यक्ष के चुनाव में इस बार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सहमति निर्णायक रहेगी। जिलों के चुनाव संंपन्न होते ही दिल्ली से प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव का कार्यक्रम जारी हो जाएगा। सियासी हलकों में सवाल है कि नंदकुमार सिंह चौहान रिपीट होंगे या नहीं। पर्दे के पीछे प्रदेश के अनेक दिग्गज जोड़-तोड़ में लगे हैं। सूत्रों की मानें तो नंदकुमार के मौजूदा परफार्मेंस से संघ संतुष्ट नहीं है। इसलिए संघ की कसौटी पर खरा साबित हो ऐसे व्यक्ति को कमान सौंपी जा सकती है। रतलाम-झाबुआ लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी की हार और देवास विधानसभा में जनाधार खिसकने से संघ एवं बीजेपी के दिग्गज चिंतित हो उठे हैं। पार्टी को अगले आम चुनाव की चिंता सताने लगी है। इसलिए नए अध्यक्ष के चयन में यह मुद्दा अहम रहेगा।
पार्टी हाईकमान ने फिलहाल इस बारे में अपने पत्ते नहीं खोले हैं। सवा साल पहले चौहान की ताजपोशी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और संगठन की अनुशंसा भी थी, लेकिन दूसरी बार मौका देने के लिए उनके परफार्मेंस की समीक्षा की बात उठ रही है। अभी तक के अध्यक्षों से भी उनके कामकाज की तुलना की जाएगी। पार्टी की कमान जिसे मिलेगी उस पर प्रदेश में वर्ष 2018 का विधानसभा चुनाव कराने की अहम जवाबदारी भी होगी। वैसे प्रदेश अध्यक्ष चौहान ने अपने तईं दिल्ली के नेताओं से भी मेलजोल बढ़ा दिया है। इंदौर के महापौर एवं पार्टी के प्रदेश संगठन महामंत्री रह चुके दिग्गज नेता कृष्ण मुरारी मोघे भी सक्रिय हैं। दमोह सांसद प्रहलाद पटेल, जबलपुर सांसद राकेश सिंह और प्रदेश महामंत्री विनोद गोटिया का नाम भी प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में माना जा रहा है। मुख्यमंत्री चौहान एवं केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का झुकाव परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह के नाम पर हो सकता है। अब देखना यह है कि नया साल किस नेता के लिए शुभ संकेत लेकर आता है।
भाजपा को चाहिए
हर हाल में जीत
इधर भाजपा हर हाल में मैहर चुनाव जीतना चाहती है, लेकिन भाजपा की जीत में पंचायत प्रतिनिधि रोड़ा न बन जाएं। इसको लेकर सत्ता और संगठन दोनों चितिंत हैं। पंचायत प्रतिनिधियों ने मांगों पर विचार करने के लिए एक सप्ताह का समय सरकार को दिया है। रतलाम लोकसभा उपचुनाव में पराजय के बाद भाजपा संगठन मैहर चुनाव में प्रतिष्ठा बचाने की जमावट में जुट गया है। यही कारण है कि रतलाम चुनाव से पहले अध्यापकों को डंडा चलवाने वाली सरकार अब मैहर चुनाव से पहले आर्थिक तंगी की हालत में 1500 करोड़ रुपए के वित्तीय भार वाली मांग मानने जा रही है। सरकार ने हाईकोर्ट के दखल के बाद पटवारियों को तो काम पर वापस करा लिया है, लेकिन पंचायत प्रतिनिधि अब भी भाजपा के विरोध में है। पंचायत प्रतिनिधियों ने सत्ता और संगठन को मैहर उपचुनाव में हराने की खुली चुनौती दी है। ऐसे में भाजपा संगठन ने चुनाव के ऐलान से पहले ही जमीनी स्तर पर जमावट शुरू कर दी है, क्योंकि रतलाम चुनाव हारने के बाद संगठन के पास मैहर को लेकर जो फीडबैक आया है, उसने सत्ता और संगठन की नींद उड़ा दी है।
-बृजेश साहू