चुनावी जश्न के बाद फिर से घरों में कैद हो गई महिलाएं
02-Dec-2015 07:52 AM 1234883

बिहार विधान सभा के चुनाव के परिणाम आये, महागठबन्धन की जीत हुई और सभी चुनावों की तरह इस बार भी निर्वाचन स्थल पर जीत का जश्न मना। टेलीविजन के द्वारा जो भी जश्न के बिम्ब आ रहे थे, उसमें पुरूषों का एक पक्षीय वर्चस्व

दिख रहा था। नेताओं में एकाध महिला दिख भी जाती थी लेकिन शैम्पेन उड़ेलने की नकल की तर्ज पर एक दूसरे पर मिनरल वाटर फेंकने वाली हर्षित भीड़ में सभी मर्द ही थे, भले चुनाव में भागीदारी महिलाओं की अधिक हो। महागठबंधन की ओर से चुनाव मैदान में उतरी 25 महिलाओं में से 23 ने जीत दर्ज की, लेकिन मंत्रिमंडल में सिर्फ दो महिलाओं को जगह मिली। अनीता देवी राजद कोटे से मंत्री बनी हैं, जबकि मंजू कुमारी जनता दल (यूनाइटेड) की विधायक हैं।
बिहार में पत्नी के लिए प्रयुक्त होने वाला घरवाली शब्द से मेल बनाती महिलायें एक बार फिर जीत के समय घर में कैद हो गई। हालांकि घर-बाहर का जो द्वंन्द है, उसमें बाहरी स्पेस को पुरूष के साथ जोडऩे में कई समस्याएं हैं, क्योंकि बाजार में सेल्स गल्र्स के आने से पहले भी कच्ची सब्जी से लेकर तैयार नाश्ता का बड़ा विक्रेता समूह महिलाओं का ही रहा है। आखिर क्या बात है कि चुनावी जश्न से महिलाएं बिहार जैसी इलाकों में बाहर हो जाती है। जश्न का स्पेस जेन्डर-न्यूट्रल नहीं बन पाता है क्योंकि समाज और खास कर मर्द का मानस औरत के साथ जश्न मनाने का गैर-इरोटिक (कामेत्तर) तरकीबें ढ़ूंढ़ पाने में अभी तक बहुत कामयाब नहीं रहा है। छोटी जगहों में महिलाओं के लिए मनोरंजन के स्पेस काफी कम हो गये हैं, जो कि रामलीला और लोकगाथाओं के प्रदर्शन वाले दौर में भरपूर थे। दामिनी काण्ड के बाद जिस तरह महिलायें सड़क पर आयीं, वो छोटे शहरों और गांवों के लैंगिक भूगोल को नहीं बदल पायी। अभी तक, जब चुनाव में वोट गिराने का वक्त आता है तो चुनावी दल तरह-तरह की सवारियों के द्वारा महिलाओं को बुथ तक ले जाता है लेकिन जब चुनाव जश्न की बात होती है तो वो अधिक से अधिक टीवी के सामने फुरसतिया मर्द के गप्पों के बीच अपनी क्षीण आवाज में हाशिये पर टंक जाने वाली टिप्पणी ही दर्ज कर पाती है। फिल्म गॉडमदर का भांग पीने वाली नायिका और उनकी सहेलियों का बिम्ब होली में कभी-कभी भले दिख जाये, चुनावी जश्न में तो नहीं दिखता।
चुनाव में महिलाओं का साथ महागठबंधन को मिला था लेकिन प्रतिनिधित्व के मामले में महिलाओं का चेहरा फिलहाल पीछे नजर आ रहा है। बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को मिली एतिहासिक जीत में महिलाओं की भागीदारी भी पुरूषों से किसी की मामले में कम नहीं रही। महागठबंधन की ओर चुनावी समर में उतरी कुल 25 महिलाओं में से 23 महिलाओं ने जीत दर्ज कर सफलता का परचम लहरा दिया। विधानसभा चुनाव में महिला सशक्तिकरण और राजनीति में महिलाओं की सहभागिता बढ़ाने की बढ-चढकर दावा करने वाले सभी राजनीतिक दलों ने इस बार के विधानसभा चुनाव में महिलाओं की भरपूर उपेक्षा की थी लेकिन सीमित सीटें मिलने के बाद महिलाओं ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि यदि पर्याप्त अवसर मिलता तो वह पुरूषों के मुकाबले बेहतर परिणाम भी दे सकती थी। महागठबंधन की ओर 25 उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है और इनमें 92 प्रतिशत महिलाओं ने अपने जबर्दस्त उपस्थिति दर्ज की है। महिला आरक्षण विधेयक के तहत महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने की पुरजोर वकालत करने वाले दलों ने भी महिलाओं की इस बार कोई सुध नहीं ली और टिकट बंटवारे के समय चुप्पी साध ली। इस बार के चुनाव में कुल 272 महिला उम्मीदवार खड़ी हुई थी। इनमें 27 महिला निर्वाचित हुयी है। पिछले विधानसभा में 34 महिलाएं चुनकर आयीं थी । इनमें से 22 सतारूढ़ृ जदयू और 11 भाजपा के टिकट पर तथा एक निर्दलीय विजयी हुई थी। पिछले चुनाव में जदयू और भाजपा का गठबंधन था और उस चुनाव में जदयू ने 24 और भाजपा ने13 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया था। अकेले चुनाव लड़ी कांग्रेस ने 36 और राजद ने 10 सीट पर महिला प्रत्याशी खड़े किये थे। महिलाओं की हितैषी होने का बढ़-चढ़ कर दावा करने वाले महागठबंधन और भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने इस बार के चुनाव में टिकट बंटवारे में पुरूषों के मुकाबले महिलाओं को कोई खास तरजीह नहीं दी। इस बार जदयू ने पिछले चुनाव में जीती 13 महिला विधायकों जबकि भाजपा ने पांच महिला विधायकों का टिकट काट दिया है। पिछले चुनाव से यदि तुलना की जाये तो नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 37 महिलाओं को प्रत्याशी बनाया था लेकिन इस बार उनके नेतृत्व वाले गठबंधन से मात्र 25 महिला प्रत्याशी ही थीं। कुल मिलाकर देखा जाए तो इस बार बिहार चुनाव में महिलाओं की हर स्तर पर उपेक्षा हुई है।
-माया राठी

 

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