15-Dec-2015 10:32 AM
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मध्यप्रदेश में एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सूखे से परेशान किसानों को हर सुविधा मुहैया कराने की पहल में जुटे हुए हैं। किसानों को राहत देने के लिए विशेष सत्र बुलाकर राहत राशि मंजूर कराई है। वहीं दूसरी तरफ सूखे की

मार झेल रहे पहले से ही परेशान किसानों का अब फसल बीमा कंपनियां मुआवजा बांटने के नाम पर उनका मखौल उड़ा रही हैं। ताजा मामला विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के संसदीय क्षेत्र और सीएम शिवराज सिंह चौहान के गृह क्षेत्र विदिशा जिले में सामने आया है। यहां फसल बीमा के नाम पर किसानों को 3 रुपए, 5 रुपए और 13 रुपए का मुआवजा बांटा जा रहा है। मुआवजे की यह हालत देखकर किसानों का कहना है कि इतने में तो जहर भी नहीं खरीद पाएंगे। वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बीमा कंपनियों पर नकेल कसने की बात कर रहे हैं।
विगत दिनों विदिशा जिले के देव खजूरी गांव सहकारी समिति के गांव साकलखेड़ा में फसल बीमा का पैसा बांटा गया। यहां सोयाबीन और उड़द की फसल खराब हो गई है। साकलखेड़ा गांव में फसल बीमा के मुआवजे के लिए महज 68 हजार रुपए की राशि मिली है। यह राशि 259 किसानों के बीच बांटी जानी थी। औसतन 260 रुपए प्रति किसान। कई किसानों को 3 रुपए और 5 रुपए और 13 रुपए मुआवजे के रूप में दिए जा रहे हैं। आलम यह देखिए कि कुछ दिनों पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद साकलखेड़ा गांव के जिस खेत में आकर अपने आंसू बहा कर गए थे, उसे भी फसल बीमा योजना से मुआवजा नहीं मिला है। वहीं, जिले के देव खजूरी और गडला गांव के किसानों को भी मुआवजा नहीं मिला। साकलखेड़ा गांव की सहकारी समिति के अध्यक्ष सौदान सिंह ने बताया कि जिस खेत में खराब फसल देखने सीएम गए थे, उसे भी कोई मुआवजा नहीं मिला।
बीमा कंपनियों द्वारा 13 रुपए मुआवजा पाने वाले किसान जालम सिंह ने अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए कहा कि फसल पूरी चौपट हो चुकी है। मुआवजे से आस थी, लेकिन बीमा कंपनियों ने महज 13 रुपए मुआवजा दिया है। इतने में तो जहर भी नहीं मिलेगा। सूबे में फसल चौपट होने के बाद किसान आत्महत्या करने पर मजबूर होने लगे हैं। पिछले कुछ महीनों में लगभग 40 किसानों ने मौत को गले लगाया है। हालांकि सरकार हमेशा इस बात से इंकार करती रही कि किसान कर्ज और फसल खराब होने से परेशान होकर आत्महत्या कर रहे हैं। विदिशा ही नहीं इसके अलावा रायसेन, गुना, होशंगाबाद, शिवनी जैसे अन्य जिलों में भी यही हालात है। किसान फसल बीमा कराकर आश्वस्त तो हो गए कि अगर उनकी फसल खराब होती है तो उन्हें कुछ न कुछ मुआवजा तो मिल ही जाएगा लेकिन बीमा कंपनियां अब उन्हें मुआवजे के नाम पर 5 रुपए, दस रुपए, और 18 रुपए के चैक दे रही है। किसानों का कहना है कि इतने पैसे में तो वे जहर भी नहीं खरीद सकते।
दावा राशि भीख से भी कम
विदिशा के सांकलखेड़ा कला में 259 किसानों के लिए 68 हजार 957 रुपए की बीमा क्लेम राशी मिली है। अगर इसका औसत निकाला जाए को प्रत्येक किसान को औसतन 266 रुपए का क्लेम दिया गया है। जबकि किसानों से बीमा कंपनियों ने प्रीमियम के नाम पर 3 लाख रुपए जमा कराए थे। बीमा क्लेम के लिए हल्कावार औसत उत्पादन निकाला जाता है। इसी आधार पर क्षेत्र के किसानों को बीमा क्लेम की राशि का भुगतान किया जाता है। यह औसत पिछले 3 वर्षों के उत्पादन के आधार पर निकाला जाता है। जिले के कई हल्कों में पिछले 4 वर्षों से फसलें बर्बाद हो रही हैं। जिसके कारण उन क्षेत्रों का औसत उत्पादन घट गया है। इस कारण किसानों को जो दावा कम मिला है।
विदिशा के पीपलखेड़ा खुर्द के मोहर सिंह ने फसल बीमा कराया था और इस बीमे का 250 रुपए का प्रीमियम भरा था। लेकिन जब उनकी क्लेम राशी आई तो उनके होश उड़ गए। मोहर सिंह को क्लेम के रुप में मात्र 47 रुपए का चैक दिया गया। वहीं सांकलखेड़ा के बुजुर्ग किसान बिहारी कुशवाह ने डेढ़ बीघा में सोयाबीन की फसल बोई थी। जिस पर करीब 25 हजार रुपए की राशि खर्च की थी। अतिवृष्टि के कारण फसल बर्बाद होने से मात्र 6 पसेरी सोयाबीन का उत्पादन हुआ था। इस नुकसान की भरपाई के रूप में इस बार उन्हें मात्र 24 रुपए का बीमा क्लेम मिला है। विदिशा जिले के पीपलखेड़ा खुर्द गांव के कल्याण सिंह ने पिछले साल चार बीघा खेत में सोयाबीन की फसल बोई। फसल पर खाद-बीज और पानी समेत 20 हजार की लागत आई। लेकिन अतिवृष्टि से सोयाबीन की फसल बर्बाद हो गई और चार बीघा में महज 50 किलो सोयाबीन ही निकला। हालांकि वे यह सोचकर निश्चिंत थे कि उन्होंने तो 710 रुपए का प्रीमियम जमा कर खरीफ फसल का बीमा कराया है। लेकिन उनके होश तब उड़ गए जब उनके खाते में बीमा क्लेम के महज 18 रुपए 99 पैसे आए। कुछ ऐसा ही इसी गांव के बलवीर सिंह के साथ हुआ। उन्हें 250 रुपए प्रीमियम जमा करने पर महज 37 रुपए का बीमा क्लेम मिला।
फसल बीमा के नाम पर किसानों के साथ यह मजाक राजगढ़, सीहोर, हरदा, रायसेन, अशोकनगर, गुना और होशंगाबाद समेत प्रदेश के ज्यादातर जिलों में हुआ है। विदिशा कलेक्टर एमबी ओझा ने क्लेम की इतनी कम राशि मिलने पर हैरानी जताते हुए फसल बीमा दावा में संशोधन के लिए राज्य सरकार को पत्र लिखा है। जानकारों का कहना है कि फसल बीमा योजना में नियमों की विसंगतियां किसानों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई हैं। बीमा क्लेम के लिए हल्कावार औसत उत्पादन निकाला जाता है। इसी आधार पर क्षेत्र के किसानों को बीमा क्लेम की राशि का भुगतान किया जाता है। यह औसत पिछले 3 वर्षों के उत्पादन के आधार पर निकाला जाता है। जिले के कई हल्कों में पिछले 4 वर्षों से फसलें बर्बाद हो रही हैं। जिसके कारण उन क्षेत्रों का औसत उत्पादन घट गया है। इस कारण किसानों को क्लेम काफी कम मिली। इस मामले में कांग्रेस के विधायक रामनिवास रावत का कहना है कि प्रदेश सरकार केवल आंकड़ों की बाजीगरी कर रही है। प्रदेश में किसानों द्वारा लगातार आत्महत्या की जा रही है। महाराष्ट्र के बाद मध्यप्रदेश देश के किसानों की हालत सबसे खस्ता है। राज्य में जहां किसानों ने सबसे ज्यादा आत्म हत्या की है। वह कहते हैं कि सरकार ने विधानसभा में जो जवाब दिया है उसे घुमा-फिरा कर दिया है। जबकि आलम यह है कि प्रदेश में रोजाना किसान आत्महत्या कर रहे हैं। यह सरकार के दावों की पोल खोल रहे हैं।
47 रुपए में कैसे होगी भरपाई
विदिशा की लश्करपुर सहकारी समिति के पीपलखेड़ा खुर्द में मोहरसिंह के खाते में 47 रुपए आए, जबकि उन्होंने 250 रुपए प्रीमियम जमा किया था।
सांकलखेड़ा के बुजुर्ग किसान बिहारी कुशवाह ने डेढ़ बीघा में सोयाबीन की फसल बोई थी। जिस पर करीब 25 हजार रुपए की राशि खर्च की थी। अतिवृष्टि के कारण फसल बर्बाद होने से मात्र 6 पसेरी (30 किलो) सोयाबीन का उत्पादन हुआ था। इस नुकसान की भरपाई के रूप में इस बार उन्हें मात्र 24 रुपए का बीमा क्लेम मिला है।
फसल बर्बाद होने से एक किसान की हुई मौत
मप्र में फसल बर्बाद होने से किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं, लेकिन सरकार यह बात मानने को तैयार नहीं है। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस के रामनिवास रावत के सवाल के जवाब में गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने लिखित में कहा कि, मप्र में पिछले चार माह में सिर्फ एक किसान की फसल बर्बाद होने के बाद हार्ट अटैक से मौत हुई है। जबकि 193 किसान और 149 कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की। गौर ने बताया कि, एक जुलाई से 30 अक्टूबर 2015 तक कुल 2948 व्यक्तियों ने आत्महत्या की। इसमें 342 किसान और कृषि मजदूर थे। वहीं एक जनवरी से 30 जून तक 3 हजार 646 आत्महत्या हुई थी। इसमें किसान 245 और कृषि मजदूर 250 थे।
-भोपाल से कुमार राजेन्द्र